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समुद्र की ख़ामोश तबाही: 2050 तक डूब सकते हैं मालदीव के कई द्वीप, लक्षद्वीप भी है खतरे में

ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे भयावह असर हिंद महासागर के दो खूबसूरत द्वीपों मालदीव और भारत के लक्षद्वीप पर पड़ रहा है। मालदीव, जो समुद्र तल से सिर्फ 1.5 मीटर ऊपर है, धीरे-धीरे डूबने की कगार पर पहुंच चुका है।

शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक दिन हमारी बनाई हुई तकनीक, विकास और आराम की लालसा हमारी ही धरती को निगलने लगेगी. लेकिन आज, जब हम पृथ्वी दिवस मना रहे हैं, यह सवाल ज़हन में कौंधता है क्या हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस नीले ग्रह को उसी तरह देख पाएंगी जैसे हमने देखा?

भारत के पड़ोसी देश मालदीव और भारत का खूबसूरत द्वीप समूह लक्षद्वीप, आज समुद्र के बढ़ते जलस्तर से एक चुपचाप लेकिन विनाशकारी जंग लड़ रहे हैं. एक तरफ, छुट्टियों का 'स्वर्ग' माने जाने वाला मालदीव हर दिन डूबने के करीब पहुंच रहा है, तो दूसरी ओर भारत के सबसे छोटे केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप के कुछ द्वीप भी पानी में समाने की कगार पर हैं.

मालदीव जो हर दिन डूब रहा है

मालदीव, एक ऐसा नाम जो सुनते ही समुद्र की लहरें, सफेद रेत और नीले आसमान की छवि आँखों के सामने तैरने लगती है. लेकिन इस खूबसूरती के पीछे एक भयानक सच छिपा है. मालदीव दुनिया का सबसे नीचा देश है, जिसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई महज 1.5 मीटर है. इस देश के 1190 द्वीपों में से 80% द्वीप, समुद्र तल से एक मीटर से भी नीचे हैं.

जलवायु वैज्ञानिकों की रिपोर्ट डराने वाली है. 1901 से 2018 के बीच, समुद्र का जलस्तर 15 से 25 सेंटीमीटर तक बढ़ चुका है. पहले यह दर 1 से 2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष थी, लेकिन अब यह 4.62 मिमी/वर्ष तक पहुंच गई है. इस तेजी से बढ़ते जलस्तर का मतलब है कि आने वाले वर्षों में मालदीव का अधिकांश हिस्सा समुद्र में समा सकता है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक मालदीव के कई द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो सकते हैं. यह न सिर्फ वहां के 5 लाख लोगों के लिए संकट है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है.

भारत का लक्षद्वीप भी संकट में

मालदीव की तरह ही, भारत का 'छोटा स्वर्ग' लक्षद्वीप भी खतरे में है. लक्षद्वीप 36 द्वीपों का समूह है, जो अरब सागर में फैला हुआ है. यहां का जीवन समुद्र से जुड़ा है मछली पकड़ना, नारियल, और पर्यटन ही यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. आईआईटी खड़गपुर और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग ने एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा किया है कि लक्षद्वीप के द्वीपों को भी समुद्र निगल सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, यहां 0.4 से 0.9 मिमी/वर्ष की दर से जलस्तर बढ़ रहा है. भले ही यह संख्या छोटी लगे, लेकिन इसका असर बेहद बड़ा है.

अमिनी और चेतलाट जैसे छोटे द्वीपों के तटों का 60-80% हिस्सा आने वाले दशकों में गायब हो सकता है. मिनिकॉय और कवरत्ती जैसे बड़े द्वीपों को भी 60% तक तटीय क्षेत्र खोने का खतरा है. यहां की जनसंख्या और उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी सीधे तौर पर इस संकट से जुड़ी है.

यह सिर्फ प्रकृति नहीं, एक मानवीय त्रासदी है

यह खतरा सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है. यह एक मानवीय त्रासदी बनने जा रहा है. इन द्वीपों में रहने वाले लोग जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, फिर भी सबसे पहले वही इसकी मार झेल रहे हैं. जिन फैसलों का असर न्यूयॉर्क, बीजिंग या दिल्ली में लिया गया, उसका दर्द मालदीव और लक्षद्वीप के तटीय गांवों में महसूस किया जा रहा है.

लहरें सिर्फ जमीन को नहीं निगलतीं, वे पहचान, संस्कृति और जीवनशैली को भी साथ बहा ले जाती हैं. लोग अपने घरों से विस्थापित होंगे, मछुआरे अपनी रोज़ी-रोटी खो देंगे, बच्चों के स्कूल और मंदिरों-मस्जिदों तक को समुद्र लील जाएगा.

पृथ्वी दिवस सिर्फ पौधा लगाने या सोशल मीडिया पर हरियाली की फोटो पोस्ट करने तक सीमित नहीं होना चाहिए. यह वह दिन है जब हमें धरती की सच्ची तस्वीर देखने और समझने की ज़रूरत है. जब मालदीव और लक्षद्वीप जैसे द्वीप संकट में हैं, तो यह मान लेना गलत होगा कि बाकी दुनिया सुरक्षित है. अगर आज हमने जलवायु परिवर्तन पर गंभीर कदम नहीं उठाए, कार्बन उत्सर्जन नहीं घटाया, समुद्रों को प्रदूषण से नहीं बचाया तो वह दिन दूर नहीं जब धरती के नक्शे से कई देश और द्वीप गायब हो जाएंगे.

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