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चीन और पाकिस्तान को झटका, भारत के लिए खुला UNSC की स्थायी सदस्यता का रास्ता!

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार का आह्वान करते हुए भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन किया है। मैक्रों ने सुरक्षा परिषद को अधिक प्रभावी और प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने की जरूरत पर जोर दिया। भारत लंबे समय से UNSC की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है, क्योंकि वर्तमान ढांचा 21वीं सदी की आवश्यकताओं से मेल नहीं खाता। हालांकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत की दावेदारी का विरोध करते हैं।

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27 Sep 2024
( Updated: 11 Dec 2025
12:16 AM )
चीन और पाकिस्तान को झटका, भारत के लिए खुला UNSC की स्थायी सदस्यता का रास्ता!
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की बात लंबे समय से चल रही है, और अब यह मुद्दा फिर से चर्चा में है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक बार फिर भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन में एक मजबूत बयान देकर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान, मैक्रों ने सुरक्षा परिषद के विस्तार की वकालत करते हुए भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन किया। उनके इस बयान के बाद चीन और पाकिस्तान जैसे देशों में हलचल मच गई है। 

वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य देश हैं - रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका। इन देशों के पास वीटो का अधिकार है, जिससे वे किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव को रोक सकते हैं। इसके अलावा, 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। साल 1945 में स्थापित इस 15 सदस्यीय परिषद का ढांचा आज की 21वीं सदी के उद्देश्यों और वास्तविकताओं से मेल नहीं खाता। वैश्विक शक्ति संतुलन बदल चुका है, और भारत जैसे देश, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक है, अब अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत सुरक्षा परिषद में लंबे समय से सुधार की मांग कर रहा है, और उसका मानना है कि वह स्थायी सदस्यता का हकदार है। भारत की दलील है कि संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था में उसका प्रतिनिधित्व आवश्यक है, क्योंकि भारत दुनिया की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक शांति और सुरक्षा के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाता है।

जिसके बाद अब इमैनुएल मैक्रों ने स्पष्ट रूप से कहा, “हमारे पास एक सुरक्षा परिषद है जिसे हमें और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है। हमें इसे और अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण बनाना होगा।” यह बयान ऐसे समय पर आया है जब विश्वभर में सुरक्षा परिषद की संरचना और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सुरक्षा परिषद का वर्तमान ढांचा 20वीं सदी की वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर तैयार किया गया था, लेकिन आज के समय में वैश्विक शक्ति संतुलन पूरी तरह से बदल चुका है। उनका बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि फ्रांस न केवल भारत, बल्कि जर्मनी, जापान और ब्राजील को भी सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाना चाहता है।  मैक्रों का यह समर्थन वैश्विक संस्थानों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह संकेत मिलता है कि फ्रांस उन देशों के साथ खड़ा है जो वैश्विक शक्ति के नए मानचित्र में प्रमुख भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं।
चीन और पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका
मैक्रों के इस बयान के बाद चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की प्रतिक्रिया का इंतजार है, क्योंकि दोनों देश नहीं चाहते कि भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिले। चीन, जो पहले से ही सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, भारत की दावेदारी का विरोध करता रहा है। वहीं, पाकिस्तान भी इस बात से चिंतित है कि अगर भारत को स्थायी सदस्यता मिलती है, तो यह उसके लिए कूटनीतिक और सामरिक रूप से बड़ा झटका होगा।
प्रधानमंत्री मोदी और UNSC में भारत की सक्रियता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 'भविष्य के शिखर सम्मेलन' को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया था कि वैश्विक शांति और विकास के लिए संस्थानों में सुधार आवश्यक हैं। उनका यह बयान सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी को और मजबूत करता है। भारत हमेशा से शांति बनाए रखने, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, और सतत विकास के लिए प्रतिबद्ध रहा है। भारत की स्थायी सदस्यता की मांग सिर्फ कूटनीतिक नहीं है, बल्कि यह वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, आतंकवाद हो या वैश्विक आर्थिक सुधार।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी सुरक्षा परिषद के सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सुरक्षा परिषद की संरचना और कार्यप्रणाली में बदलाव नहीं किया गया, तो यह अपनी विश्वसनीयता खो देगा। गुतारेस का यह बयान वैश्विक नेताओं और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के लिए एक चेतावनी है कि मौजूदा प्रणाली में सुधार की तत्काल जरूरत है। गुतारेस ने कहा, “हम अपने दादा-दादी के लिए बनाई गई प्रणाली के साथ अपने पोते-पोतियों के लिए भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते।” उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं को भी समय के साथ बदलने की जरूरत है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का समर्थन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता है, लेकिन यह केवल शुरुआत है। भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए अभी लंबी राजनीतिक और कूटनीतिक यात्रा करनी होगी। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का विरोध भारत के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है, लेकिन वैश्विक शक्ति संतुलन और भारत की बढ़ती भूमिका को देखते हुए यह दिन दूर नहीं जब भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनेगा।

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