एक झटके में खत्म हो गई 345 राजनीतिक दलों की मान्यता, बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग का बड़ा एक्शन, जानें क्यों किया गया डीलिस्ट
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव से पहले देश के 2,800 से अधिक RUPPs पंजीकृत दलों में से 345 की मान्यता समाप्त कर दी है. बिहार चुनाव से पहले आयोग द्वारा उठाए गए इस कदम से हड़कंप मच गया है.

भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने देश की राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और स्वच्छ बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. आयोग ने करीब 345 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (Registered Unrecognized Political Parties - RUPPs) को अपनी सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. ये वे दल हैं, जो वर्ष 2019 के बाद से किसी भी लोकसभा, राज्य विधानसभा या उपचुनाव में हिस्सा नहीं ले पाए हैं और जिनके कार्यालयों का भौतिक रूप से कोई अस्तित्व नहीं पाया गया है. इस कार्रवाई को राजनीतिक प्रणाली में सुधार और निष्क्रिय दलों को हटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. हालांकि आयोग ये सुनिश्चित करेगा कि किसी के साथ अन्याय न हो, किसी को अनुचित तरीके से डीलिस्ट न किया जाए. इन्हें अपना पक्ष रखने और अपील करने का मौका दिया जाएगा.
क्यों उठाना पड़ा यह कदम?
चुनाव आयोग के अनुसार, देश में वर्तमान में 2,800 से अधिक RUPPs पंजीकृत हैं. इनमें से कई दल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकरण की अनिवार्य शर्तों को पूरा करने में विफल रहे हैं. ये शर्तें राजनीतिक दलों को सक्रिय रूप से चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने और संगठनात्मक ढांचे को बनाए रखने के लिए बाध्य करती हैं. आयोग ने पाया कि इन 345 दलों ने न केवल पिछले छह वर्षों में कोई चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि इनके कार्यालयों का भी कोई पता नहीं चल सका. कई दल केवल कागजों पर मौजूद हैं, जो कर छूट जैसे विशेषाधिकारों का दुरुपयोग कर सकते हैं.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार की अध्यक्षता में निर्वाचन आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी ने इस प्रक्रिया को शुरू करने का निर्णय लिया. आयोग का कहना है कि यह अभियान निष्क्रिय और गैर-जिम्मेदार दलों को हटाकर चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देगा.
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कैसे होगी रद्दीकरण की प्रक्रिया?
चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई है कि किसी भी दल को अनुचित रूप से सूची से नहीं हटाया जाए. इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं. आयोग ने देशभर में एक अभियान चलाकर उन दलों की पहचान की, जो पंजीकरण की शर्तों को पूरा नहीं कर रहे हैं. पहले चरण में 345 ऐसे दलों को चिह्नित किया गया है. इसके लिए संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन दलों को कारण बताओ नोटिस जारी करें. इसके बाद कार्रवाई की जद में आए दलों को अपने पक्ष रखने और सुनवाई का अवसर दिया जाएगा. यह सुनवाई संबंधित CEOs के समक्ष होगी. अंत में किसी भी दल को सूची से हटाने का अंतिम फैसला भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा लिया जाएगा.
किन दलों पर है खतरा?
ये 345 दल देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित हैं. उदाहरण के लिए, राजस्थान से नौ दल, जिनमें राजस्थान जनता पार्टी, राष्ट्रीय जन सागर पार्टी, खुशहाल किसान पार्टी, भारत वाहिनी पार्टी, भारतीय जन हितकारी पार्टी, नेशनल जनसत्ता पार्टी, नेशनलिस्ट पीपल्स फ्रंट, स्वच्छ भारत पार्टी और महाराणा क्रांति पार्टी शामिल हैं, को डीलिस्ट करने के लिए प्रारंभिक रूप से चुना गया है. इन दलों का कोई भौतिक कार्यालय नहीं मिला और न ही ये चुनावी गतिविधियों में सक्रिय पाए गए. आयोग का मानना है कि ऐसे दल केवल कागजों पर मौजूद रहकर राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं.
आयोग पहले भी कर चुका है ऐसी कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग ने निष्क्रिय दलों के खिलाफ कार्रवाई की है. वर्ष 2001 से अब तक, आयोग ने तीन से चार बार ऐसी प्रक्रिया को अंजाम दिया है. हालांकि, पहले सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मामलों में आयोग को दलों की मान्यता रद्द करने से रोका था, क्योंकि यह कानून सम्मत नहीं था. इसके बावजूद, आयोग ने सूची से हटाने का एक वैकल्पिक तरीका खोज लिया है, जिसके तहत निष्क्रिय दलों को डीलिस्ट किया जा सकता है.
बिहार चुनाव से पहले उठाया बड़ा कदम
यह कार्रवाई ऐसे समय में शुरू की गई है, जब बिहार सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. आयोग ने बिहार समेत पांच राज्यों में मतदाता सूचियों की गहन समीक्षा की घोषणा भी की है, ताकि मतदाता सूची को त्रुटिरहित और अद्यतन रखा जा सके. इस अभियान को संवैधानिक दायित्वों के पालन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव
चुनाव आयोग का यह कदम न केवल निष्क्रिय दलों को हटाने में मदद करेगा, बल्कि राजनीतिक व्यवस्था में विश्वास को भी बढ़ाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि कई बार ऐसे दल कर छूट और अन्य सुविधाओं का दुरुपयोग करते हैं, जिससे वास्तविक राजनीतिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होती है. इस कार्रवाई से केवल सक्रिय और जिम्मेदार दल ही लोकतंत्र में भागीदार बन सकेंगे. चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह प्रक्रिया पहले चरण में 345 दलों तक सीमित नहीं रहेगी. भविष्य में भी निष्क्रिय दलों की पहचान और डीलिस्टिंग का अभियान जारी रहेगा. आयोग का लक्ष्य है कि राजनीतिक सिस्टम से ऐसी पार्टियों को पूरी तरह हटाया जाए, जो केवल कागजों पर चल रही हैं और जिनका कोई वास्तविक योगदान नहीं है. इस कार्रवाई से न केवल चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी, बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे को और मजबूत करने में भी मदद करेगा.