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मालेगांव ब्लास्ट: 'मोहन भागवत के साथ सीएम योगी को भी फंसाने का था दबाव', पूर्व ATS अधिकारी के बाद अब सरकारी गवाह का बड़ा खुलासा

मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में भगवा आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ने वाले कांग्रेसी पूरी तरह से एक्सपोज हो गए है. इस मामले में सरकारी गवाह रहे मिलिंद जोशी ने कहा है कि उनपर योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत को फंसाने का दबाव बनाया गया था.

मुंबई की एक विशेष अदालत ने मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में जब प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित समेत सात आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया तो कांग्रेस पर भी कई सवाल उठे. इस मामले के कुल 39 गवाह थे जिनमें एक सरकारी गवाह रहे मिलिंद जोशी ने ऐसा खुलासा किया जिसके बाद राजनीतिक गलियारें में हड़कंप मच गया है. 

आरएसएस और दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों को फंसाने का था दबाव 

मालेगांव ब्लास्ट मामले में सरकारी गवाह रहे मिलिंद जोशी ने कहा है कि "उन पर योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत का नाम लेने का दबाव बनाया गया था. इसके लिए उन्हें कई दिनों तक हिरासत में भी रखा गया. इसके अलावा आरएसएस और दक्षिणपंथी संगठनों के अन्य कई लोगों को फंसाने का भी दबाव डाला जा रहा था".

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस वक्त भी हिंदुत्व का फायरब्रांड चेहरा थे. ऐसे में उन्हें भी इस साजिश में झोंकने का पूरा इंतजाम हो गया था. दूसरी तरफ मोहन भागवत भी आरएसएस के शीर्ष नेताओं में थे. उनके आरएसएस चीफ बनने की संभावना भी बढ़ गई थी.

'भगवा आतंकवाद' का नैरेटिव स्थापित करना था मकसद 

इस मामले में जांच अधिकारी रहे पूर्व ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने कहा कि "केस को इस तरह प्रस्तुत किया गया था जैसे कि 'भगवा आतंकवाद' का नैरेटिव स्थापित करना हो. तत्कालीन सरकार हिंदुत्व की राजनीति को खत्म करना चाहती थी." वहीं इस मामले में गवाह रहे मिलिंद जोशी ने कहा कि उनपर बेहद दबाव था कि असीमानंद और योगी आदित्यनाथ का नाम इस मामले में लिया जाए. इसके लिए जांच अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित भी किया.

मालेगांव ब्लास्ट मामले में बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी. समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी आरोपी थे. इस मामले में सभी आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है और कोई भी धर्म हिंसा को सही नहीं ठहराता. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है. सिर्फ कहानियों के आधार पर सोच बना लेना पर्याप्त नहीं है. इसके लिए ठोस सबूतों की जरूरत होती है जो कि जांच एजेंसियां नहीं प्रस्तुत कर पाई हैं. 

क्या है पूरा मामला, 6 लोगों की हुई थी मौत 

29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक पर एक दोपहिया वाहन पर बम धमाका हुआ था जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वाले सभी मुस्लिम थे. इस मामले में स्थानीय पुलिस ने केस दर्ज किया था और फिर जांच एटीएस को सौंप दी गई थी. यहां एक मोटरसाइकल मिली थी जिसके नंबर के साथ छेड़छाड़ की गई थी. वहीं असली नंबर प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर दर्ज था.

विशेष अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष के दावों में कई कमियां थीं और सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया गया. साथ ही कोर्ट ने एटीएस और एनआईए की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं. 

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