दिवाली से पहले ISRO की सौगात, चंद्रयान-2 ने खोला सूरज-चांद के रिश्ते का राज
Chandrayaan2: इस खोज के जरिए चंद्रयान-2 ने यह साबित कर दिया कि भले ही उसका लैंडर विक्रम चांद की सतह पर नहीं उतर पाया, लेकिन उसका ऑर्बिटर आज भी बहुत कीमती और उपयोगी वैज्ञानिक जानकारी भेज रहा है.
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Coronal Mass Ejection: दिवाली के जश्न से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बेहद खास और बड़ी जानकारी दी है.चंद्रयान-2 मिशन ने पहली बार यह पता लगाया है कि सूरज से निकलने वाली खतरनाक ऊर्जा की लहरें, जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन (CME) कहते हैं, चांद पर क्या असर डालती हैं. यह खोज इसलिए खास है क्योंकि इससे पहली बार हमें चंद्रमा के वायुमंडल और वहां के हालात के बारे में गहराई से जानकारी मिली है.
कोरोनल मास इजेक्शन (CME) क्या होता है?
कोरोनल मास इजेक्शन यानी CME असल में सूरज की सतह पर होने वाला एक बहुत ही तेज और शक्तिशाली विस्फोट होता है. जब यह होता है, तो सूरज से हाइड्रोजन और हीलियम जैसे गैसों के बहुत गर्म और तेज आयन अंतरिक्ष में निकलते हैं. यह ऐसा ही है जैसे सूरज गुस्से में होकर ऊर्जा की बड़ी लहरें छोड़ता हो. जब ये लहरें धरती या चांद तक पहुंचती हैं, तो वहां के वातावरण और उपकरणों पर इनका असर पड़ता है.
चांद पर CME का असर क्यों खास है?
धरती के पास एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र और मोटा वायुमंडल होता है, जो हमें CME जैसे सौर तूफानों से बचाता है. लेकिन चांद पर ना तो वायुमंडल है और ना ही कोई चुंबकीय सुरक्षा कवच. इसलिए जब CME जैसी ऊर्जा की लहरें चांद से टकराती हैं, तो उनका असर बहुत ज्यादा होता है. ISRO ने बताया कि CME के टकराने से चांद के वायुमंडल (जिसे एक्सोस्फीयर कहते हैं) में दबाव 1000 गुना तक बढ़ गया! यानी CME की लहर ने चांद के चारों ओर फैले गैसों के पतले आवरण पर जबरदस्त असर डाला.
चंद्रयान-2 ने कैसे किया यह पता?
चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था. इसके साथ कुल 8 वैज्ञानिक उपकरण थे जो अलग-अलग तरह के आंकड़े जमा कर रहे थे. इन्हीं में से एक उपकरण का नाम था – CHACE-2 (Chandrayaan Atmospheric Compositional Explorer-2). इस उपकरण का काम चांद के बहुत पतले वायुमंडल यानी न्यूट्रल एक्सोस्फीयर की जांच करना था। CHACE-2 ने CME के चांद से टकराने और उसके असर को रिकॉर्ड किया.
चांद का एक्सोस्फीयर क्या होता है?
चांद के पास हमारे जैसे वायुमंडल नहीं होता, लेकिन उसकी सतह से सटा हुआ एक बेहद पतला गैसीय आवरण होता है जिसे एक्सोस्फीयर कहते हैं. इसमें बहुत कम गैस के अणु होते हैं और यह बहुत कमजोर होता है. यह एक्सोस्फीयर सूरज की रोशनी, सौर हवा, उल्कापिंडों के टकराव आदि की वजह से बनता है और बदलता रहता है. इसलिए जब सूरज की तरफ से CME जैसी बड़ी ऊर्जा की लहर आती है, तो इसका इस एक्सोस्फीयर पर सीधा असर होता है.
इस खोज से हमें क्या फायदा होगा?
ISRO का कहना है कि इस खोज से हमें चंद्रमा के वायुमंडल के व्यवहार, वहां होने वाले बदलाव, और अंतरिक्ष मौसम के असर को समझने में मदद मिलेगी. खासकर जब भविष्य में इंसानों को चांद पर भेजने की योजना बनेगी, तब ऐसी जानकारी बेहद काम आएगी. इसके अलावा यह खोज यह भी बताती है कि सूरज और चांद के बीच किस तरह का संपर्क होता है और यह चांद की सतह व वातावरण को कैसे प्रभावित करता है.
भारत की अंतरिक्ष खोजों में एक और मील का पत्थर
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इस खोज के जरिए चंद्रयान-2 ने यह साबित कर दिया कि भले ही उसका लैंडर विक्रम चांद की सतह पर नहीं उतर पाया, लेकिन उसका ऑर्बिटर आज भी बहुत कीमती और उपयोगी वैज्ञानिक जानकारी भेज रहा है. यह भारत के लिए गर्व की बात है और अंतरिक्ष विज्ञान में एक अहम कदम भी.
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