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India-Canada relations: राजनीतिक हितों के जाल में उलझी दोस्ती

भारत और कनाडा के बीच संबंध पिछले कुछ सालों से लगातार तनावपूर्ण रहे हैं, और हाल ही में खालिस्तानी अलगाववादियों के समर्थन के आरोपों ने इसे और जटिल बना दिया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर आरोप है कि उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति को बचाने के लिए खालिस्तानी समर्थक गुटों का समर्थन किया है, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई है।

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03 Nov 2024
( Updated: 09 Dec 2025
04:45 PM )
India-Canada relations: राजनीतिक हितों के जाल में उलझी दोस्ती
भारत और कनाडा के रिश्ते पिछले कुछ सालों में उतार-चढ़ाव से गुजरते रहे हैं, लेकिन हाल ही में इन संबंधों में दरारें कुछ ज्यादा ही गहरी हो गई हैं। जस्टिन ट्रूडो की सरकार के दौरान भारत-कनाडा संबंधों में असहजता बढ़ी है, और इसका मुख्य कारण कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों का बढ़ता प्रभाव बताया जा रहा है।

हाल ही में अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट ने भारत-कनाडा के रिश्तों में एक नया मोड़ ला दिया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कनाडा में सिख अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था। इसके साथ ही, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारतीय एजेंटों पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाने के बाद भारत ने इस बात का कड़ा खंडन किया है।
कनाडा में खालिस्तान का बढ़ता प्रभाव
कनाडा में खालिस्तान समर्थक गुटों का प्रभाव कोई नई बात नहीं है। वहां सिख समुदाय की बड़ी आबादी है, जिसमें से कुछ लोग खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करते हैं। विशेष रूप से जगमीत सिंह की पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के वोटर्स में खालिस्तान समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है। इसके चलते एनडीपी और ट्रूडो की लिबरल पार्टी के बीच राजनीतिक गठबंधन ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है।

2021 के आम चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका, और ट्रूडो की लिबरल पार्टी को एनडीपी का समर्थन लेना पड़ा। इस तरह के गठबंधन ने कनाडा की राजनीति में खालिस्तानी मुद्दे को एक प्रभावशाली ताकत बना दिया, जिससे कनाडा और भारत के रिश्तों में खटास पैदा हो गई।
खालिस्तानी मुद्दा: राजनीतिक फायदे का खेल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नर्म रुख महज राजनीतिक फायदे के लिए है। एक ओर जहां एनडीपी का समर्थन उनकी सरकार के लिए आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर खालिस्तान समर्थकों के समर्थन से उनकी पार्टी को चुनाव में लाभ मिल सकता है। यही कारण है कि ट्रूडो ने भारत के साथ रिश्तों में दरार डालने से भी परहेज नहीं किया।

विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा में खालिस्तानी समर्थक नेताओं का एक बड़ा वर्ग है, जो भारत विरोधी सोच को बढ़ावा दे रहा है। नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में भी कनाडा के उप विदेश मंत्री ने दावा किया कि इस मामले में भारत के गृह मंत्री का नाम लिया गया था, जिससे दोनों देशों के बीच खटास और बढ़ गई।
इतिहास भी दे रहा सबूत
जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो भी अपने कार्यकाल के दौरान खालिस्तानी मुद्दे पर भारत से टकराव में रहे थे। 1985 में खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार ने कनिष्क विमान को बम से उड़ा दिया, जिसमें 329 लोगों की मौत हो गई थी। भारत ने परमार के प्रत्यर्पण की मांग की, लेकिन पियरे ट्रूडो की सरकार ने इसे ठुकरा दिया। ऐसे में जस्टिन ट्रूडो का रुख भी उनके पिता की नीतियों की याद दिलाता है, जो खालिस्तानी मुद्दे पर भारत के साथ तनावपूर्ण संबंध बनाए रखने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

कनाडा में 2025 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर कई जानकारों का मानना है कि अगर सत्ता परिवर्तन होता है, तो दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की संभावना हो सकती है। ट्रूडो की लोकप्रियता में कमी आई है, और अगर नया नेतृत्व सत्ता में आता है, तो भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नई शुरुआत हो सकती है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा के इन आरोपों का सख्ती से खंडन किया है और कहा है कि ये आरोप निराधार हैं। भारत ने साफ तौर पर कहा है कि वह किसी भी आतंकवादी गतिविधि का समर्थन नहीं करता और कनाडा को इन मुद्दों पर ठोस सबूत पेश करने चाहिए, बजाय कि बयानबाजी करने के।

भारत और कनाडा के बीच बढ़ते तनाव ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या दोनों देशों के बीच राजनीतिक मतभेद इतने गहरे हैं कि इसे हल नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों को समझदारी से काम लेना होगा और बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने की कोशिश करनी होगी।

भारत-कनाडा संबंधों का भविष्य अब कूटनीति और राजनीतिक स्थिरता पर निर्भर है। भारत का स्पष्ट रुख है कि वह खालिस्तान मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा, लेकिन अगर कनाडा अपनी नीतियों में बदलाव लाता है, तो दोनों देशों के बीच संबंधों में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।
Source- IANS

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