कैसे बना PoK? अगर भारत पाकिस्तान से PoK वापस ले ले तो क्या होगा?
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) का मुद्दा भारत-पाकिस्तान संबंधों की सबसे बड़ी जटिलताओं में से एक है. साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद जब कश्मीर ने आज़ाद रहने का निर्णय लिया, तो पाकिस्तान ने कबायलियों की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया.

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे लंबे तनाव के केंद्र में जो नाम सबसे अधिक गूंजता है, वह है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी PoK. यह वही क्षेत्र है, जिसे पाकिस्तान 'आजाद कश्मीर' कहता है, लेकिन भारत के लिए यह उसकी ज़मीन का वह हिस्सा है, जिस पर सालों से जबरन कब्जा किया गया है. पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की मौत के बाद एक बार फिर पीओके का मुद्दा गरमाया था. हालांकि फिलहाल दोनों देशों ने संघर्षविराम की घोषणा की है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह PoK आखिर बना कैसे? कश्मीर का ये हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में कैसे गया? इसकी कहानी इतिहास की उस कड़वी सच्चाई से जुड़ी है, जो आज भी हिंदुस्तान के दिल में चुभती है.
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कश्मीर की स्थिति
15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब वह 500 से अधिक रियासतों में बंटा हुआ था. इनमें से ज़्यादातर ने या तो भारत या पाकिस्तान के साथ विलय कर लिया था. लेकिन जम्मू-कश्मीर की रियासत की स्थिति जटिल थी. वहां बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी थी लेकिन राजा हरि सिंह हिंदू थे. उन्होंने चाहा कि कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत के रूप में अपनी पहचान बनाए रखे और किसी देश के साथ शामिल न हो. लेकिन पाकिस्तान की नज़र पहले से ही इस सीमावर्ती रियासत पर टिकी थी. और यहीं से शुरू हुई एक ऐसी साजिश, जो बाद में एक अंतरराष्ट्रीय विवाद में बदल गई.
कबायली हमलों की साजिश और PoK की नींव
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से सैकड़ों ट्रकों में भरकर हजारों कबायली जम्मू-कश्मीर में घुस आए. यह हमला कोई आम हमला नहीं था, इसके पीछे पाकिस्तान की पूरी योजना थी. इन कबायलियों को न सिर्फ पाकिस्तान की सेना का समर्थन प्राप्त था, बल्कि इन्हें हथियार और रसद भी वहीं से मिली थी. इनका एकमात्र उद्देश्य था कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. ये लड़ाके कश्मीर के गांव-शहरों को लूटते, तबाह करते आगे बढ़ते गए. हालात इतने बिगड़ गए कि महाराजा हरि सिंह को भारत से मदद मांगनी पड़ी. 26 अक्टूबर को उन्होंने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुंच गई. भारतीय फौज ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए कई इलाकों से कबायलियों को खदेड़ दिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचा
इस हमले के बाद मामला धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचा. 1 जनवरी 1948 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कुल चार प्रस्ताव पारित किए. पहला प्रस्ताव संख्या 38 था, जिसमें दोनों पक्षों से स्थिति सामान्य करने की अपील की गई. फिर प्रस्ताव 39 आया, जिसमें तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर जांच की बात हुई. सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव 47 था, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई, लेकिन शर्त यह थी कि पहले पाकिस्तान अपने समर्थित कबायलियों और सेना को कश्मीर से हटाएगा. पाकिस्तान ने यह शर्त कभी नहीं मानी और जनमत संग्रह कभी हो ही नहीं पाया.
कैसे तय हुआ नियंत्रण रेखा और बना PoK?
जब तक ये अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया चल रही थी, तब तक पाकिस्तानी कबायलियों ने कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था. भारतीय सेना ने बचे हुए इलाकों को सुरक्षित कर लिया. 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम हुआ और वही रेखा नियंत्रण रेखा (LoC) के रूप में स्थापित हो गई. संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से यह तय हुआ कि जिस हिस्से पर भारत का नियंत्रण है, वह भारत के पास रहेगा और जिस हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है, वह उसके पास रहेगा. इसी कब्जे वाले क्षेत्र को आज PoK यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहा जाता है.
पीओके का भूगोल और इसका बंटवारा
आज के समय में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के करीब 78,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूभाग पर कब्जा कर रखा है. 1963 में पाकिस्तान ने गुपचुप समझौते के तहत करीब 5,180 वर्ग किलोमीटर इलाका चीन को भी सौंप दिया, जिसे अक्साई चिन कहा जाता है. पीओके दो हिस्सों में बंटा है – पहला, जिसे पाकिस्तान 'आजाद जम्मू-कश्मीर' कहता है और दूसरा, गिलगित-बाल्टिस्तान. आजाद कश्मीर वाला भाग भारत के कश्मीर से सटा हुआ है, जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान लद्दाख की उत्तरी सीमा से जुड़ा है.
रणनीतिक दृष्टि से पीओके अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसकी सीमाएं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन और भारत से मिलती हैं. यही वजह है कि चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है. पाकिस्तान और चीन दोनों ही इस इलाके को सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं.
PoK में शासन व्यवस्था कैसी है?
हालांकि पाकिस्तान इसे 'आजाद कश्मीर' कहता है, लेकिन हकीकत यह है कि इस क्षेत्र की राजनीति पूरी तरह से इस्लामाबाद के इशारों पर चलती है. 1949 में हुए कराची समझौते के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान की कमान पाकिस्तान ने अपने हाथ में ले ली थी. POK में भले ही एक विधानसभा हो, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की संरचना हो, लेकिन कोई भी बड़ा निर्णय बिना पाकिस्तान की अनुमति के नहीं लिया जा सकता. यह क्षेत्र पाकिस्तान के लिए एक राजनीतिक मुखौटा बन चुका है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे वैध दिखा सके.
भारत ने PoK वापस ले लिया तो क्या होगा?
अब सबसे आखरी और अहम सवाल कि अगर भारत किसी सैन्य या कूटनीतिक माध्यम से POK को पुनः अपने नियंत्रण में लेता है तो यह दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक घटना मानी जाएगी. इससे भारत की रणनीतिक स्थिति बहुत मजबूत होगी. सबसे पहले तो भारत को गिलगित-बाल्टिस्तान के जरिए चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर नियंत्रण मिल सकता है. इससे चीन और पाकिस्तान के बीच चल रही आर्थिक और सामरिक गतिविधियों को बड़ा झटका लगेगा.
इसके अलावा, भारत की सीमाएं अफगानिस्तान तक पहुंच जाएंगी, जिससे सेंट्रल एशिया के ऊर्जा स्रोतों तक सीधी पहुंच बन सकती है. भारत की सुरक्षा के नजरिए से यह भी फायदेमंद होगा क्योंकि पाकिस्तान की सेना को जम्मू-कश्मीर सीमा पर पीछे हटना पड़ेगा, जिससे घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों में भारी गिरावट आ सकती है.
PoK की कहानी सिर्फ एक भूभाग की नहीं है, यह भारत के इतिहास, उसकी एकता और अखंडता का हिस्सा है. यह उस समय की राजनीतिक भूलों और कूटनीतिक जटिलताओं का परिणाम है, जिसकी कीमत आज भी भारत चुका रहा है. कश्मीर के बंटवारे की यह त्रासदी बताती है कि स्वतंत्रता के साथ आई आज़ादी कितनी नाजुक थी और कैसे विदेशी साजिशों ने एक सपने को दो हिस्सों में बांट दिया. आज जब भारत एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा है, तो सवाल फिर से उठता है क्या वह दिन आएगा जब PoK दोबारा भारत का हिस्सा बनेगा?