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'तब तो एक दिन कर देंगे ताजमहल-लाल किले पर भी दावा', वक्फ बोर्ड पर केरल हाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी, जानें मामला

केरल वक्फ बोर्ड द्वारा वर्ष 2019 में विवादित संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने के निर्णय को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस. ए. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी. एम. की खंडपीठ ने रद्द कर दिया है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा गठित जांच आयोग को अवैध ठहराया गया था.

10 Oct, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
07:45 PM )
'तब तो एक दिन कर देंगे ताजमहल-लाल किले पर भी दावा', वक्फ बोर्ड पर केरल हाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी, जानें मामला

शुक्रवार को केरल हाई कोर्ट ने 'वक्फ बोर्ड' की एक विवादित संपत्ति से जुड़ा बड़ा फैसला सुनाया है. केरल हाई कोर्ट ने बोर्ड द्वारा वर्ष 2019 में मुनंबम की विवादित संपत्ति को 'कानून के अनुरूप नहीं' बताया है. बता दें कि यह मामला कई दशकों पुराना है. ऐसे में कोर्ट के फैसले के बाद करीब 600 परिवारों के लिए बेदखली का खतरा पैदा हो गया है. उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध- प्रदर्शन जताना शुरू कर दिया है. इस मामले पर साल 2024 में केरल सरकार ने जांच आयोग कमेटी का भी गठन किया था, जो प्रभावित परिवारों की स्थिति और उनके अधिकारों की जांच कर रहा था. 

क्या कहा केरल हाई कोर्ट ने? 

केरल वक्फ बोर्ड द्वारा वर्ष 2019 में विवादित संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने के निर्णय को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस. ए. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी. एम. की खंडपीठ ने रद्द कर दिया है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा गठित जांच आयोग को अवैध ठहराया गया था. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह भूमि मूल रूप से 404.76 एकड़ की थी, जो अब समुद्री कटाव से घटकर करीब 135.11 एकड़ रह गई है. साल 1950 में सिद्दीक सैत नामक व्यक्ति ने यह भूमि फारुक कॉलेज को गिफ्ट के रूप में दी थी, हालांकि, उस दौरान इस भूमि पर कई परिवार भी बसे हुए थे. जिसे बाद में कॉलेज ने परिवारों को भूमि के कुछ हिस्से बेच दिए, लेकिन बिक्री दस्तावेजों में इस संपत्ति को वक्फ भूमि नहीं बताया गया. साल 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने भूमि को औपचारिक रूप से वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया, जिसकी वजह से सभी भूमि अमान्य हो गए. ऐसे में अब 600 परिवारों को बेदखली का खतरा सता रहा है.

'तब तो ताजमहल या लाल किला पर भी कर देंगे दावा'

केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम वक्फ भूमि विवाद में शुक्रवार को सख्त टिप्पणी की और कहा कि अगर इसी तरह ऐसे मनमाने ढंग से वक्फ घोषित किए गए निर्माणों पर न्यायिक मुहर लगाई गई तो आगे किसी भी इमारत को वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है, चाहे वह ताजमहल, लाल किला, विधानमंडल भवन या यहां तक कि कोर्ट की भी अपनी ही संपत्ति या ढांचा क्यों न हो.

कोर्ट ने कहा, "यदि न्यायिक मंजूरी ऐसी मनमानी वक्फ घोषणा पर लगाई गई तो कल कोई भी यादृच्छिक भवन या संरचना- ताजमहल, लाल किला, विधानसभा भवन या यहां तक कि इस कोर्ट की इमारत भी वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी यादृच्छिक दस्तावेज के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित की जा सकती है."

राज्य सरकार ने बनाई जांच आयोग की टीम 

इस मामले पर लगातार हो रहे विरोध-प्रदर्शनों  को देखते हुए केंद्र सरकार ने साल 2024 में न्यायमूर्ति सी. एम. रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया. इस आयोग का मुख्य उद्देश्य प्रभावित परिवारों की स्थिति और उनके अधिकारों की जांच करना था, लेकिन 'वक्फ संरक्षण समिति' के सदस्यों ने इस पर भी आपत्ति जताई और हाईकोर्ट में याचिका दायर की. उनका कहना था कि संपत्तियों पर जांच आयोग गठित करने का अधिकार सरकार के पास नहीं है, यह अधिकार वक्फ अधिनियम के तहत केवल वक्फ बोर्ड के पास है. 

वक्फ बोर्ड का आदेश 'अवैध' और 'देरी' से पारित 

राज्य सरकार की दलील पर सहमति जताते हुए डिवीजन बेंच यानी खंडपीठ ने बताया कि 1950 का दस्तावेज 'वक्फ डीड' नहीं बल्कि 'गिफ्ट डीड' था. अदालत ने यह भी कहा कि 1950 की दान-पत्री का उद्देश्य ईश्वर के नाम पर अस्थाई समर्पण करना नहीं था. बल्कि यह केवल एक साधारण उपहार था. यह जमीन किसी भी वक्फ अधिनियम (1954, 1984, 1995) के तहत नहीं मानी जा सकती. 

क्या है 'वक्फ डीड' और 'गिफ्ट डीड'?

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बता दें कि 'वक्फ डीड' एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति को इस्लामी कानून के तहत धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से दान कर सकता है. इसे वक्फनामा भी कहते हैं. यह संपत्ति किसी व्यक्ति के निजी लाभ के लिए उपयोग नहीं की जा सकती है. वही 'गिफ्ट डीड' की बात करें, तो यह एक कानूनी दस्तावेज है. जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से बिना किसी भुगतान के किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को संपत्ति उपहार के रूप में ट्रांसफर कर सकता है.

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