AIMIM को राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड मान्यता रद्द करने को लेकर याचिका, SC ने कहा मुस्लिमों के लिए संविधान में…
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि एआईएमआईएम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है. इसका मेनिफेस्टो सिर्फ मुस्लिमों के अधिकारों के संरक्षण और उनके लिए काम करने की बात करता है.
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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड मान्यता रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 जुलाई 2025) को सुनवाई से इनकार कर दिया. हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता को यह छूट दी कि वे AIMIM की वैधता से जुड़े व्यापक मुद्दों को उठाते हुए रिट याचिका दायर कर सकते हैं.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट के तहत AIMIM का राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया था.
किसने दाखिल की है याचिका?
तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने यह याचिका दाखिल की थी, जिनका कहना है कि एआईएमआईएम का घोषित उद्देश्य सिर्फ मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए काम करना है इसलिए इसे राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है.
याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने मामला सुप्रीम कोर्ट में रखा. उन्होंने कहा कि एआईएमआईएम का मेनिफेस्टो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धातों का उल्लंघन करता है इसलिए इसे पीआर एक्ट के सेक्शन 29ए के तहत पॉलिटिकल पार्टी के तौर पर मान्यता नहीं दी जा सकती है.
सिर्फ मुस्लिमों के लिए काम करने की बात करती है AIMIM
विष्णु शंकर जैन ने फिर कहा कि कोई पार्टी ये कैसे कह सकती है कि वो सिर्फ मुस्लिमों के लिए काम करेगी सबके लिए नहीं. उन्होंने अभिराम सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी भी धर्म के नाम पर वोट मांगना, चाहे वो किसी उम्मीदावर के लिए मांगे जाएं या पार्टी के लिए, वो एक करप्ट प्रैक्टिस है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को देखते हुए एआईएमआईएम का रजिस्ट्रेशन गैरकानूनी है.
विष्णु शंकर जैन ने यह भी कहा कि पहले भी कुछ राजनीतिक दलों के नाम धार्मिक होने की वजह से उनको बैन किया गया. उन्होंने कहा कि पार्टी का मेनिफेस्टो तो यह भी कहता है कि मुस्लिम समाज में इस्लामिक शिक्षा को बढ़ाएंगे. उन्होंने कहा कि ये भेदभाव है. अगर हम चुनाव आयोग में जाकर हिंदू नाम पर किसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहें और कहें कि हम वेद पढ़ाना चाहते हैं, तो रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा.
दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता की दलीलों पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि एआईएमआईएम का मेनिफेस्टो तो हर पिछड़े वर्ग के लिए काम करने की बात कहता है. उन्होंने कहा कि यह कहता है कि पार्टी समाज में आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हर वर्ग के लिए है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि संविधान में अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकार दिए गए हैं और पार्टी का मेनिफेस्टो कहता है कि उन अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम एआईएमआईएम काम करती है.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि संविधान ने तो खुद अल्पसंख्यकों के संरक्षण का अधिकार दिया है और वो कहता है कि अल्पसंख्यकों के हितों के लिए काम करने की घोषणा पर आपत्ति नहीं की जानी चाहिए. जज ने आगे कहा, 'मान लो कोई पार्टी कहे कि हम छूआछूत को बढ़ावा देंगे, तो उसको बैन किया जा सकता है. अगर कोई दल कहे कि हम लोगों को बताएंगे कि संविधान में उनके लिए क्या अधिकार हैं, तो उस पर कैसे आपत्ति की जा सकती है.
किसी पार्टी या व्यक्ति का नाम लिए बगैर याचिका दाखिल करने की दी अनुमति
जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता से कहा, 'आप सही हो सकते हो... एक याचिका दायर करें, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी का नाम न हो. कुछ दल हैं जो जातिगत भावनाओं पर भरोसा करते हैं और यह बहुत खतरनाक है. व्यापक परिपेक्ष्य सुधार का है तो बिना किसी पार्टी का नाम लिए, आप सामान्य मुद्दों को उठा सकते हो...'