CM फडणवीस की कोशिशों ने किया कमाल… निकाय चुनाव में BJP की शानदार जीत बढ़ा सकती है शिंदे और अजित पवार की टेंशन
महाराष्ट्र में हुए स्थानिक निकाय चुनाव में महायुति गठबंधन ने 75% सीटों पर जीत दर्ज की. 288 निकायों में से 215 अध्यक्ष पद महायुति के पास गए, जिनमें बीजेपी सबसे आगे रही. मतदान दो चरणों में हुआ, पहले चरण में 67% और दूसरे में 47% मतदान दर्ज किया गया.
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महाराष्ट्र में हुए स्थानिक निकाय चुनावों के नतीजों ने राज्य की राजनीति में साफ संदेश दे दिया है. बीजेपी, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन महायुति ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए लगभग 75 प्रतिशत सीटों पर जीत दर्ज की है. कुल 288 में से 215 निकायों में महायुति के प्रत्याशी अध्यक्ष पद पर विजयी हुए हैं. विधानसभा चुनाव के बाद यह दूसरा बड़ा मौका है, जब बीजेपी राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई है. इस जीत को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की रणनीति, सरकार की योजनाओं और सकारात्मक चुनाव प्रचार से जोड़कर देखा जा रहा है.
दो चरणों में हुआ मतदान
महाराष्ट्र में 286 नगर पंचायतों और नगर परिषदों के लिए दो चरणों में मतदान कराया गया था. पहले चरण का मतदान दो दिसंबर को हुआ, जबकि दूसरे चरण में 20 दिसंबर को वोट डाले गए. इनमें 246 नगर परिषद और 42 नगर पंचायत शामिल थीं. पहले चरण में 263 निकायों के लिए लगभग 67 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जबकि दूसरे चरण में 23 निकायों के लिए करीब 47 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. रविवार सुबह से शुरू हुई मतगणना में देर शाम तक तस्वीर लगभग साफ हो गई.
215 निकायों में महायुति की जीत
मतगणना के आंकड़ों के अनुसार, महायुति गठबंधन ने 215 निकायों में अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की. इनमें भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा 129 अध्यक्ष पद जीते. शिवसेना को 51 और एनसीपी अजित पवार गुट को 35 अध्यक्ष पद मिले. आंकड़े बताते हैं कि गठबंधन के भीतर बीजेपी की स्थिति सबसे मजबूत रही और पार्टी ने शहरी निकायों में अपनी पकड़ और गहरी की है. यही वजह है कि इस जीत को बीजेपी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला माना जा रहा है.
कई सीटों फ्रेंडली फाइट ने बढ़ाया सियासी रोमांच
इस चुनाव की एक खास बात यह रही कि महायुति के तीनों घटक दलों के बीच कई जगह फ्रेंडली फाइट देखने को मिली. कई निकायों में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे. कणकवली, दहानू और पालघर जैसे क्षेत्रों में शिवसेना ने भाजपा को मात दी. वहीं लोहा में अजित पवार गुट की एनसीपी ने बीजेपी के अध्यक्ष प्रत्याशी गजानन सूर्यवंशी और उनके परिजनों को हराया. दिलचस्प बात यह रही कि यहां एनसीपी के विजयी अध्यक्ष प्रत्याशी का नाम शरद पवार है. दूसरी ओर, वडनगर में भाजपा ने शिवसेना को हराकर अपनी ताकत दिखाई.
बीजेपी के सहयोगियों के लिए क्या संकेत?
स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह ही पूरी ताकत झोंकी. माना जा रहा है कि इन चुनावों के जरिए पार्टी यह परखना चाहती थी कि वह अपने ‘शत प्रतिशत भाजपा’ के लक्ष्य की ओर कितनी आगे बढ़ चुकी है. कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लंबे समय में यह रणनीति बीजेपी को अपने सहयोगियों पर निर्भरता कम करने की दिशा में ले जा सकती है. ऐसे में यह जीत जहां बीजेपी के लिए उत्साहजनक है, वहीं गठबंधन सहयोगियों के लिए सोचने का विषय भी बन सकती है.
विपक्ष के लिए बढ़ीं मुश्किलें
विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ना विपक्ष के लिए चिंता का कारण बन गया है. खासतौर पर तब, जब बृह्नमुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है. शिवसेना यूबीटी तीन दशक से चले आ रहे अपने प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश में है, लेकिन हालिया नतीजों ने उसकी चुनौती बढ़ा दी है. शिवसेना यूबीटी और एनसीपी एसपी इस चुनाव में सीटों का दोहरा आंकड़ा भी पार नहीं कर सकीं. पहले से आंतरिक मतभेदों से जूझ रहे इन दलों के लिए यह स्थिति और मुश्किलें खड़ी कर सकती है.
सकारात्मक राजनीति का मिला फायदा
चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस जीत को संगठन और सरकार के सामूहिक प्रयास का परिणाम बताया. उन्होंने कहा कि महायुति ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. फडणवीस ने साफ किया कि उन्होंने पूरे अभियान में किसी राजनीतिक दल या नेता की आलोचना नहीं की. उन्होंने विकास एजेंडे, अब तक किए गए कार्यों और भविष्य की योजनाओं के आधार पर जनता से वोट मांगे. मुख्यमंत्री के अनुसार, पहली बार उन्होंने पूरी तरह सकारात्मक तरीके से वोट मांगे और जनता ने भी सकारात्मक रूप से समर्थन दिया.
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बताते चलें कि महाराष्ट्र के स्थानिक निकाय चुनावों के नतीजे यह दिखाते हैं कि महायुति, खासतौर पर बीजेपी, जमीनी स्तर पर मजबूत स्थिति में है. यह जीत न सिर्फ विपक्ष के लिए चेतावनी है, बल्कि गठबंधन की राजनीति में भी नए समीकरण बना सकती है. आने वाले नगर निगम चुनावों और बीएमसी की लड़ाई में इन नतीजों का असर साफ तौर पर देखने को मिल सकता है.
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