'नेपाल हिंसा में अमेरिका का हाथ...', क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है? एक्सपर्ट्स के खुलासे से मचा हड़कंप, जानिए क्या कहा?
जियोपॉलिटिक्स एक्सपर्ट पवनीत सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया है कि 'नेपाल हिंसा में अमेरिका का हाथ हो सकता है. इस तरह के विरोध-प्रदर्शन ऑर्गेनिक नहीं होते हैं, बल्कि इसमें किसी शक्ति का हाथ होता है.'
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नेपाल हिंसा की आग में बीते 48 घंटों से झुलस रहा है. हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और प्रदर्शनकारी रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. नेपाल सरकार के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कई मंत्रियों के आवास जला दिए गए हैं. वहीं कई पूर्व प्रधानमंत्री और मंत्रियों के साथ झड़प और मारपीट की भी वीडियो सामने आई है. पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. देश में बिगड़ते हालात को देखकर अब सेना ने कमान संभाल ली है. इस घटना को ठीक उसी तरह से देखा जा रहा है, जिस तरीके से श्रीलंका और बांग्लादेश में हुआ था. इन दोनों ही देश के घटनाक्रम एक समान थे और अब ऐसा ही कुछ नेपाल में हुआ है. देश के आम नागरिकों का गुस्सा वर्तमान सरकार पर फूटा है. इस बीच नेपाल के हालातों पर सवाल उठ रहा है कि क्या इसमें विदेशी शक्ति का हाथ है? न्यूज एजेंसी ANI से एक बातचीत में जियोपॉलिटिक्स एक्सपर्ट पवनीत सिंह ने बताया है कि इसमें अमेरिका का हाथ हो सकता है. उनका कहना है कि इस तरह के विरोध-प्रदर्शन ऑर्गेनिक नहीं होते हैं, बल्कि इसमें किसी शक्ति का हाथ होता है.
नेपाल हिंसा में अमेरिका का हाथ?
जियोपॉलिटिक्स एक्सपर्ट पवनीत सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया है कि 'अक्सर सड़कों पर इस तरह के आंदोलन ऑर्गेनिक नहीं होते. इनके पीछे किसी शक्ति का हाथ होता है. खासकर अमेरिका की इस तरह की चीजों में गहरी भूमिका होती है. नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में इस तरह सड़कों पर आंदोलन कराए जा सकते हैं.'
क्या भारत में भी हो सकता है इस तरह का आंदोलन?
नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में एक जैसा प्रदर्शन होने पर पवनीत सिंह ने बताया कि 'भारत जैसे देश में नेतृत्व नहीं बदला जा सकता है. भारत की विविधता और एक बड़ा देश होने के चलते किसी एक नैरेटिव के आधार पर सत्ता को बिना कार्यकाल पूरा किए ही विदेशी ताकतों के शामिल होने से बदला नहीं जा सकता है.'
'अमेरिकी एजेंसियां सरकार को बदनाम करने की कोशिश करती हैं '
पवनीत सिंह ने यह भी कहा कि 'ऐसी स्थिति में अमेरिकी एजेंसियां सरकार को बदनाम करने की कोशिश करती हैं, ताकि किसी तरह उनका इकबाल खत्म हो जाए और उस देश की जनता का उन पर भरोसा कम हो जाए.'
क्या चीन नेपाल के हित में हो सकता है?
उनसे एक सवाल यह भी पूछा गया कि क्या चीन नेपाल के हित में हो सकता है? आखिर आंदोलन के बाद नेपाल को चीन कैसा देखना चाहता है? इस पर उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि 'चीन की कोशिश है कि वहां फिर से राजशाही ना आने पाए. इसके अलावा वह किसी उभरते हुए युवा नेता को भी नहीं देखना चाहता है. चीन का हित इसी में है कि वहां कोई कम्युनिस्ट नेता रहे.'
'भारत ना कभी भूलता है और ना फिर माफ करता है'
अमेरिकी नेताओं के बयान को लेकर पवनीत सिंह ने कहा कि 'वह इस तरह से अपने भरोसे को कमजोर कर रहे हैं. उन्हें याद रखना चाहिए कि भारत ना कभी भूलता है और ना फिर माफ करता है. वह जिस तरीके से बयान दे रहे हैं, उसकी भरपाई करने में अमेरिका को दो दशक लग सकते हैं.'
'SCO जाकर अमेरिका को संदेश देना कुछ गलत नहीं है'
उन्होंने यह भी कहा कि 'अगर SCO में जाकर अमेरिका को संदेश दिया जा सकता है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है. यह तो अमेरिका को बताना ही चाहिए कि वह हमारी नीति तय करने वाला नहीं है. हम संप्रभु हैं और हम तय करेंगे कि किस मसले पर किसके साथ चलना है और क्या रिएक्शन देना है?
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