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43 संपत्तियां जब्त, चार्जशीट दाखिल... क्या रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें अब बढ़ने वाली हैं?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ शिकोहपुर लैंड डील केस में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत चार्जशीट दाखिल की है. साथ ही, उनकी 43 संपत्तियां, जिनकी कीमत लगभग 36 करोड़ रुपये है, जब्त कर ली गई हैं. यह मामला गुरुग्राम के शेखोपुर में डीएलएफ को जमीन ट्रांसफर से जुड़ा है. वाड्रा से 14 जुलाई को पांच घंटे की पूछताछ हुई, जो लंदन स्थित संजय भंडारी से जुड़े केस को लेकर थी.

17 Jul, 2025
( Updated: 17 Jul, 2025
05:07 PM )
43 संपत्तियां जब्त, चार्जशीट दाखिल... क्या रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें अब बढ़ने वाली हैं?
File Photo

देश की राजनीति और सत्ता के गलियारों में एक बार फिर से हलचल मच गई है. इस बार वजह हैं रॉबर्ट वाड्रा यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के दामाद और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए 36 करोड़ रुपये की अनुमानित कीमत वाली 43 संपत्तियों को जब्त कर लिया है. इसके साथ ही शिकोहपुर लैंड डील से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है. 

शिकोहपुर डील का सच
ईडी की यह कार्रवाई हरियाणा के गुरुग्राम जिले के शेखोपुर गांव में हुई एक विवादास्पद लैंड डील से जुड़ी है. जानकारी के अनुसार, यह डील रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों और रियल एस्टेट दिग्गज डीएलएफ के बीच हुई थी, जिसमें ज़मीन की ट्रांसफर प्रक्रिया पर अनियमितता के आरोप लगे. इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना के चलते ईडी ने जांच की जिम्मेदारी ली और अब उसी की परिणति के रूप में 43 संपत्तियां जब्त कर ली गईं. चार्जशीट में रॉबर्ट वाड्रा के अलावा कुछ अन्य कंपनियों और व्यक्तियों के भी नाम शामिल हैं, जो इस पूरे मामले में सहयोगी बताए जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, यह चार्जशीट काफी विस्तार से तैयार की गई है जिसमें वित्तीय लेन-देन, दस्तावेज़ों की फॉरेंसिक जांच और ईमेल कम्युनिकेशन तक का हवाला दिया गया है.

पांच घंटे की पूछताछ और लंदन कनेक्शन
इस केस में 14 जुलाई को रॉबर्ट वाड्रा से पांच घंटे लंबी पूछताछ की गई. वह सुबह 11 बजे ईडी के ऑफिस पहुंचे थे और शाम 4 बजे बाहर निकले. उनके साथ प्रियंका गांधी भी दफ्तर तक गई थीं. पूछताछ लंदन में स्थित आर्म्स डीलर संजय भंडारी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस के सिलसिले में हुई थी. ईडी का कहना है कि संजय भंडारी और वाड्रा के बीच संबंधों को लेकर उन्हें स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई, और इसलिए यह मामला अब और भी गंभीर होता जा रहा है. ईडी ने वाड्रा के बयान को 'प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट' यानी PMLA के तहत रिकॉर्ड किया है. एजेंसी का मानना है कि यह पूछताछ सिर्फ एक शुरुआत है और जरूरत पड़ने पर उन्हें दोबारा भी बुलाया जा सकता है.

सवालों से बचते दिखे वाड्रा
इस पूरे मामले में एक खास बात यह रही कि वाड्रा को अप्रैल और जून महीने में भी कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया था. अप्रैल में तीन दिनों तक लगातार पूछताछ हुई, लेकिन जून में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए समन को टालने की कोशिश की. यहां तक कि उन्होंने अदालत से विदेश जाने की भी अनुमति मांगी थी, जो अपने आप में सवालों के घेरे में है कि आखिर जब देश में जांच चल रही है, तब विदेश यात्रा क्यों?

सत्ता, संपत्ति और सवाल
ईडी फिलहाल तीन अलग-अलग मामलों में रॉबर्ट वाड्रा की जांच कर रही है. इनमें दो केस सीधे-सीधे लैंड डील्स से जुड़े हैं, जिनमें वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं. जबकि तीसरा केस अंतरराष्ट्रीय लेन-देन और लंदन स्थित संपत्तियों के ज़रिए मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा है. हर केस में ईडी का दावा है कि उन्होंने वाड्रा को पर्याप्त मौका दिया, लेकिन उनके जवाब संतोषजनक नहीं रहे. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ये केवल कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील मामला है. कांग्रेस पहले भी वाड्रा के मामलों को 'राजनीतिक प्रतिशोध' बता चुकी है.लेकिन अब जब ईडी ने चार्जशीट दाखिल कर दी है और संपत्तियाँ ज़ब्त कर ली गई हैं, तब कांग्रेस पर भी दबाव बढ़ेगा कि वह स्पष्ट रुख अपनाए.

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गौरतलब है कि अब सवाल उठता है कि इस कार्रवाई के बाद अगला कदम क्या होगा. क्या रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तारी का सामना करना पड़ेगा? इस सवाल का जवाब फिलहाल ईडी के अगले कदम और अदालत के फैसले पर निर्भर करता है. अगर चार्जशीट में लगाए गए आरोप पर्याप्त ठोस पाए जाते हैं, तो अदालत वाड्रा को समन भेज सकती है या गिरफ्तारी के आदेश भी दे सकती है. रॉबर्ट वाड्रा का नाम अक्सर रियल एस्टेट डील्स और संपत्ति के मामलों में आता रहा है. लेकिन इस बार ईडी की कार्रवाई ने मामले को सिर्फ एक "आरोप" की बजाय, कानूनी जांच और साक्ष्य के दायरे में ला खड़ा किया है. जहां एक ओर विपक्ष इसे राजनीतिक साजिश बता सकता है, वहीं दूसरी ओर सवाल ये है कि अगर सब कुछ पारदर्शी था, तो जांच में सहयोग क्यों नहीं किया गया?

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