Advertisement

क्या डिप्रेशन आपको डिमेंशिया की ओर धकेल रहा है? जानें नए शोध क्या हुए चौंकाने वाले खुलासे

डिमेंशिया एक गंभीर बीमारी है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है. दुनियाभर में 5.7 करोड़ से ज़्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. फिलहाल इसका कोई पक्का इलाज नहीं है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम उन कारणों को समय रहते पहचानें और ठीक करें, जो डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकते हैं.

30 May, 2025
( Updated: 02 Dec, 2025
08:07 PM )
क्या डिप्रेशन आपको डिमेंशिया की ओर धकेल रहा है? जानें नए शोध क्या हुए चौंकाने वाले खुलासे

आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरा है, जो लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा है. अक्सर इसे केवल मूड डिसऑर्डर के रूप में देखा जाता है, लेकिन नए वैज्ञानिक शोध लगातार यह खुलासा कर रहे हैं कि डिप्रेशन का असर केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य, खासकर मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है. हाल ही में हुए एक महत्वपूर्ण शोध ने इस बात की पुष्टि की है कि डिप्रेशन, डिमेंशिया के खतरे को काफी बढ़ा सकता है. यह खुलासा उन सभी लोगों के लिए चिंता का विषय है जो डिप्रेशन से जूझ रहे हैं या जिन्हें इसके लक्षण महसूस होते हैं.

डिमेंशिया एक गंभीर बीमारी है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है. दुनियाभर में 5.7 करोड़ से ज़्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. फिलहाल इसका कोई पक्का इलाज नहीं है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम उन कारणों को समय रहते पहचानें और ठीक करें, जो डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकते हैं. 

डिप्रेशन और डिमेंशिया के बीच क्या है संबंध?

इस अध्ययन में पाया गया है कि डिप्रेशन और डिमेंशिया के बीच संबंध बहुत जटिल है. इसमें देर तक सूजन होना, दिमाग के कुछ हिस्सों का सही से काम न करना, रक्त नलिकाओं में बदलाव, दिमाग में कुछ जरूरी प्रोटीन या फैक्टर का बदल जाना, न्यूरोट्रांसमीटर नाम के रसायनों का असंतुलन होना आदि शामिल हैं. इसके अलावा, जेनेटिक और हमारे रोजमर्रा के व्यवहार भी डिप्रेशन और डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकते हैं.

जर्नल ईक्लिनिकलमेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि हमें जिंदगी के हर दौर में डिप्रेशन को पहचानना और उसका इलाज करना बहुत जरूरी है. हमें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.

ब्रिटेन के नॉटिंघम विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और स्कूल ऑफ मेडिसिन के जैकब ब्रेन ने कहा, ''सरकार और स्वास्थ्य विभाग को दिमाग की सेहत पर विशेष ध्यान देना चाहिए, खासकर बीमारियों को होने से रोकने पर. इसके लिए जरूरी है कि लोग अच्छा और सही मानसिक स्वास्थ्य इलाज आसानी से पा सकें.''

सबसे ज्यादा खतरा कब बढ़ाता है डिप्रेशन?

पहले के कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि जिन लोगों को डिप्रेशन होता है, उनमें बाद में डिमेंशिया होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन अभी भी यह बात साफ नहीं है कि डिप्रेशन किस उम्र में सबसे ज्यादा खतरा बढ़ाता है. कुछ लोग कहते हैं कि अगर डिप्रेशन मिडिल एज यानी 40-50 साल की उम्र में शुरू होता है, तो ज्यादा असर होता है, जबकि कुछ का मानना है कि डिप्रेशन अगर बुढ़ापे में यानी 60 साल या उससे ऊपर में होता है, तो भी खतरा बढ़ता है. 

यह नया शोध अब तक के सारे पुराने शोधों को एक साथ लेकर आया है और इसमें नई जांच भी की गई है, ताकि यह साफ तरीके से पता लगाया जा सके कि डिप्रेशन कब सबसे ज्यादा खतरा बढ़ाता है. 

ब्रेन ने कहा, ''हमारे शोध से यह संभावना सामने आई है कि बुढ़ापे में डिप्रेशन होना सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि यह डिमेंशिया की शुरुआत का पहला संकेत भी हो सकता है. इसे जानना बहुत जरूरी है ताकि हम सही समय पर इलाज और बचाव कर सकें.''

अध्ययन में 20 से ज्यादा अलग-अलग शोधों के नतीजों को एक साथ मिलाया गया है, जिसमें कुल 34 लाख से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. इस शोध में डिप्रेशन को मापा गया. साथ ही देखा गया कि डिप्रेशन किस उम्र में होने पर डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है. 

यह भी पढ़ें

डिप्रेशन का समय पर और प्रभावी उपचार न केवल मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि यह भविष्य में डिमेंशिया जैसे गंभीर न्यूरोलॉजिकल विकारों के जोखिम को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

Tags

Advertisement

टिप्पणियाँ 0

LIVE
Advertisement
Podcast video
'मुसलमान प्रधानमंत्री बनाने का प्लान, Yogi मारते-मारते भूत बना देंगे इनका’ ! Amit Jani
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स
वेब स्टोरीज़
होम वीडियो खोजें