नेपाल को फंसाने वाले चीन की खैर नहीं, Indian Army करेगी हिसाब !
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चीन की तरफ़ तो के पी ओली झुकाव रख ही रहे हैं लेकिन भारत से पंगा ले रहे हैं। भारत की ज़मीन को अपना बता रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भारत अब भी हमेशा नेपाल के साथ है। वहीं नेपाल में चीन के बढ़ते दिल को भी भारत अपने हिसाब से हैंडल कर रहा है। भले ही नेपाल की ओली सरकार का चीन की तरफ झुकाव ज्यादा है, नेपाली सेना भारत के साथ मजबूती से खड़ी है और इसी मज़बूती की वजह है कि पहली बार नेपाल का मिलिट्री बैंड भारतीय थल सेना दिवस यानि 15 जनवरी को आर्मी डे परेड का हिस्सा होगा। अभी तक के थलसेना दिवस के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ है। किसी दूसरे देश की सेना ने अभी तक हिस्सा नहीं लिया है। ऐसा पहली बार हो रहा है। इस बार पुणे में होने जा रही आर्मी डे परेड में नेपाल आर्मी के इस बैंड की टीम में 33 सदस्य शामिल होंगे।
नेपाल की तरफ़ से युवा भारतीय सेना में भर्ती हुआ करते थे। लेकिन पहले कोरोना फिर अग्निपथ योजना के तहत नेपाली मूल के गोरखा की भर्ती नहीं हो पाई है। अग्निपथ स्कीम के तहत नेपाल अपने युवाओं को नहीं भेजना चाहता। नेपाल चाहता है कि नेपाली गोरखाओं को पहले की तरह परमानेंट तौर पर सेना में लिया जाए न कि अग्निवीर के तौर पर। अब भी इसे लेकर दोनों देशों की सरकारों की तरफ़ से कुछ बात आगे नहीं बढ़ी है। लेकिन नेपाल और भारत की आर्मी के बीच संबंध पहले की तरह जारी हैं। कुछ महीने पहले ही इंडियन आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी नेपाल गए थे और उसके बाद नेपाल आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगडेल भारत आए। भारत और नेपाल की सेना के बीच बटालियन स्तर की मिलिट्री ट्रेनिंग सूर्य किरण का 18वां संस्करण नेपाल में जारी है। भारत की तरफ से खास तौर पर गोरखा रेजिंमेंट की बटालियन को भेजा गया है। दोनों देशों की सेना एक साथ एक दूसरे को मज़बूत करने में लगी हैं। अब रही चीन की बात तो चीन की चालबाज़ी और के पी ओली के चीन की तरफ़ बढ़ते कदमों से सेनाओं को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा। वहीं भारत वैसे भी चीन की चालबाज़ियों को समझता है और उसे कैसे काबू में करना है बख़ूबी जानता है। वैसे भी कहा जाता है कि नेपाल के साथ भारत का रोटी और बेटी का रिश्ता है और ये भारत जानता है। भले ही नेपाल के पीएम के पी ओली इसे भूल रहे हों।