300 साल पुराना ऐसा चमत्कारी मंदिर जो सिर्फ धनतेरस पर खुलता है, भगवान को लगता है जड़ी-बूटियों का भोग, बड़े से बड़ा रोग होता है दूर!
Dhanteras 2025: वैसे तो भारत में कई चमत्कारी मंदिर हैं जो अपने दिव्य चमत्कारों से भक्तों को अपनी ओर खींचते हैं लेकिन आज जिस मंदिर के बारे में आपको इस आर्टिकल में जानने को मिलेगा वो थोड़ा हटकर है. दरअसल मान्यता है कि ये देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जो सिर्फ धनतेरस के दौरान ही खुलता है और यहां मौजूद भगवान धन्वंतरि को जड़ी-बूटियों का भोग लगाया जाता है. कहते हैं यहां दर्शन मात्र से कई रोग दूर होते हैं…
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देशभर में 18 अक्टूबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा. माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु के अवतार भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. धनतेरस के मौके पर खास तौर पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है, क्योंकि उन्हें निरोग और सुख-समृद्धि का देवता माना जाता है. भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जो भगवान धन्वंतरि को समर्पित हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में भगवान धन्वंतरि का अनोखा मंदिर है, जहां सिर्फ जाने मात्र से सारे रोगों का निदान हो जाता है. आइए विस्तार से जानते हैं…
वाराणसी के सुड़िया में भगवान धन्वंतरि का मंदिर है, जिसे वैधराज का निजी स्थान भी माना जाता है. इस मंदिर में धनतेरस के मौके पर ही पूजा का आयोजन होता है और मंदिर के कपाट भी साल में सिर्फ एक बार धनतेरस के मौके पर खुलते हैं. एक दिन खुलने की वजह से बड़ी संख्या में भक्त रोगों से मुक्ति पाने के लिए भगवान धन्वंतरि को जड़ी-बूटी अर्पित करते हैं. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की हिमालय पर मिलने वाली जड़ी-बूटियों से पूजा होती है.
देश का इकलौता मंदिर जहां धन्वंतरि देव असल रूप में विराजमान
मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है. मंदिर लगभग 300 साल से ज्यादा पुराना है और मंदिर में भगवान की अष्टधातु की मूर्ति मौजूद है, जिसमें भगवान हाथ में अमृत कलश, सुदर्शन चक्र और शंख लिए खड़े हैं. मूर्ति बहुत ही मनमोहक है. माना जाता है कि यह मंदिर देश का इकलौता मंदिर है, जहां आज धन्वंतरि भगवान अपने असल रूप में विराजमान हैं.
रोगों से निजात पाने के लिए भक्त पहुंचते हैं मंदिर
इसी वजह से मंदिर की मान्यता पूरे देश में सबसे ज्यादा है और भक्त अपने रोगों से निजात पाने के लिए धनतेरस पर भगवान के दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर में राजवैद्य स्वर्गीय शिवकुमार शास्त्री का परिवार कई पीढ़ियों से पूजा करता आ रहा है और आज भी मंदिर और पूजन का कार्यभार उन्हीं पर है.
भगवान धन्वंतरि को माना जाता है आयुर्वेद का जनक
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक और प्रसारकर्ता माना जाता है. आयुर्वेद की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए भगवान धन्वंतरि ने उसे अष्ट-शास्त्रों में बांटा है, जिसमें भूत विद्या (मनोचिकित्सा), शल्य (सर्जरी), रसायन तंत्र (रसायन विज्ञान), शालाक्य (कान, नाक, गला), कौमारभृत्य (बाल रोग), वाजीकरण तंत्र (प्रजनन स्वास्थ्य), कायचिकित्सा (सामान्य चिकित्सा), और अगद तंत्र (विष विज्ञान) शामिल हैं. हमारा विज्ञान आज भी इन पद्धतियों पर चल रहा है, जिसके बारे में पहले ही भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद में लिख चुके हैं.
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