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अयोध्या में श्रीराम मंदिर ध्वजारोहण: केसरिया ध्वज पर ‘ऊँ’ और सूर्य का राजवंशी वैभव!

श्रीराम मंदिर का केसरिया ध्वज, जिस पर ‘ऊँ’, सूर्य और कोविदार के प्रतीक अंकित हैं, सूर्यवंशीय वैभव और सनातन संस्कृति का अद्वितीय संदेश देता है. 191 फीट ऊँचाई से लहराने वाला यह ध्वज अयोध्या से पूरे विश्व में एक नई ऊर्जा फैलाएगा. लेकिन ध्वजारोहण के दौरान होने वाला विशेष राजसी अनुष्ठान क्या होगा चलिए विस्तार से जानते हैं.

18 Nov, 2025
( Updated: 07 Dec, 2025
10:29 AM )
अयोध्या में श्रीराम मंदिर ध्वजारोहण: केसरिया ध्वज पर ‘ऊँ’ और सूर्य का राजवंशी वैभव!

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर लगने वाले दिव्य केसरिया ध्वज को तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपत राय ने राम राज्य की आदर्श परिकल्पना, समाज में निर्भय वातावरण के निर्माण, और 'राम सबके और सबके राम' की भावना का जीवंत प्रतीक बताया है. उन्होंने कहा कि इस ध्वजारोहण का उद्देश्य परंपरा का निर्वाह करने के साथ-साथ सनातन संस्कृति के उस विराट स्वरूप का पुनर्स्मरण है, जो राष्ट्र को एकजुट करता है.

किन विशेष मेहमानों को मिलेगी कार्यक्रम में एंट्री?
चंपत राय ने बताया कि अयोध्या में आयोजित होने वाले इस ऐतिहासिक आयोजन में आमंत्रित अतिथियों में से लगभग तीन हजार केवल अयोध्या जनपद के हैं, जबकि शेष अतिथि पूरे उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से आमंत्रित किए गए हैं.

ध्वजारोहण कार्यक्रम से विश्व को मिलेगा अद्भुत संदेश!
उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि यह कार्यक्रम अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय आस्था के वैश्विक प्रभाव का प्रतीक बनने जा रहा है. श्रीराम मंदिर का ध्वजारोहण धार्मिक आस्था के उत्सव के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक परंपरा, राजवंशीय गौरव और सनातन मूल्यों का अद्वितीय संगम है. यह अयोध्या की धरती से राष्ट्रभर में एक नई प्रेरणा प्रसारित करेगा.

ध्वज पर बने प्रतीकों का क्या अर्थ है?
उन्होंने ध्वज पर अंकित प्रतीकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि केसरिया रंग ज्वाला, प्रकाश, त्याग और तप का प्रतीक है. मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर के ऊपर 30 फीट का बाहरी ध्वजदंड लगाया गया है, जिससे ध्वज कुल 191 फीट की ऊंचाई पर लहराएगा. उन्होंने बताया कि केसरिया ध्वज पर अंकित सूर्य प्रभु श्रीराम के सूर्यवंश का द्योतक है, जबकि 'ऊँ' परमात्मा का प्रथम नामाक्षर है, जो चेतना और शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करता है.

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ध्वज का कोविदार वृक्ष से क्या है संबंध?
ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष के संबंध में भी उन्होंने विस्तृत जानकारी दी. यह वृक्ष अयोध्या के राजवंशीय चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित रहा है और इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण व हरिवंश पुराण दोनों में मिलता है. ज्ञानीजन इसे पारिजात और मंदार के संयोग से बना बताते हैं. उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार यह संसार का पहला हाइब्रिड पौधा था. परंपरा में वर्णित है कि इसी कोविदार वृक्ष पर चढ़कर लक्ष्मण ने भरत को सेना सहित वन की ओर आते देखा था.

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