काशी के बड़ा गणेश मंदिर से हटाई गई साईं बाबा की मूर्ति, जानिए क्या है पूरी वजह
वाराणसी एक बार फिर धार्मिक विवाद के केंद्र में है। हाल के दिनों में, यहां के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का अभियान तेज हो गया है। सनातन रक्षक दल नामक संगठन ने वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में स्थापित साईं मूर्तियों को हटाने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान की शुरुआत बड़ा गणेश मंदिर से हुई, जहां साईं बाबा की प्रतिमा को कपड़े में लपेटकर सम्मानपूर्वक हटाया गया।
वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, एक बार फिर धार्मिक विवाद के केंद्र में है, और वजह है साईं बाबा की मूर्तियां। दरअसल सनातन रक्षक दल नामक संगठन ने वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में स्थापित साईं मूर्तियों को हटाने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान की शुरुआत बड़ा गणेश मंदिर से हुई, जहां साईं बाबा की प्रतिमा को कपड़े में लपेटकर सम्मानपूर्वक हटाया गया। इसके बाद पुरुषोत्तम मंदिर से भी साईं प्रतिमा को हटा दिया गया।
क्यों हटाई जा रही हैं साईं बाबा की मूर्तियां?
सनातन रक्षक दल का कहना है कि शास्त्रों के अनुसार, मंदिरों में मृत मनुष्यों की मूर्तियां स्थापित करना और उनकी पूजा करना वर्जित है। उनका कहना है कि हिंदू धर्म में केवल पंच देवता है- सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति, और गणपति, ऐसे में इनकी ही मूर्तियों की पूजा की जानी चाहिए। साईं बाबा की पूजा को लेकर यह तर्क दिया जा रहा है कि वे एक महात्मा थे, परमात्मा नहीं, और इसलिए उनकी प्रतिमाओं को मंदिरों से हटाया जा रहा है।
सनातन रक्षक दल के एक सदस्य ने कहा "हम साईं बाबा का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि शास्त्रों के निर्देशों का पालन कर रहे हैं।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई पूरे सम्मान के साथ की जा रही है, और हर मंदिर प्रबंधन से अनुमति ली जा रही है ताकि किसी की धार्मिक भावनाएं आहत न हों।
अब तक हटाई गईं प्रतिमाएं
आपको बता दें कि, वाराणसी के लगभग 10 मंदिरों से साईं बाबा की प्रतिमाएं अब तक हटाई जा चुकी हैं। इस अभियान की शुरुआत तो वाराणसी से हुई है, लेकिन आने वाले दिनों में यह अभियान और तेज हो सकता है, और अन्य मंदिरों में भी ऐसी ही कार्रवाई की जा सकती है। सनातन रक्षक दल ने यह सुनिश्चित किया है कि हर प्रतिमा को सावधानीपूर्वक और सम्मान के साथ हटाया जाएगा।
वैसे साईं बाबा की पूजा का विवाद नया नहीं है। साईं बाबा की पूजा को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कई मौकों पर साईं पूजा का कड़ा विरोध किया था। उनका कहना था कि साईं बाबा का स्थान मंदिरों में नहीं होना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में केवल पंच देवों की पूजा की जाती है। इसी तरह, हाल ही में बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री ने भी साईं पूजा का विरोध किया था। उन्होंने कहा था, "मैं साईं बाबा का विरोधी नहीं हूं, लेकिन उन्हें परमात्मा के रूप में नहीं पूजा जाना चाहिए।" धीरेंद्र शास्त्री का यह भी कहना था कि साईं बाबा को एक महात्मा के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन उन्हें देवता के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस तरह के बयानों ने इस विवाद को और हवा दी है।
साईं बाबा की पहचान पर सवाल
कुछ लोग साईं बाबा की पहचान को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। विरोध करने वालों का मानना है कि साईं बाबा का असली नाम चांद मियां था और वे मुस्लिम थे। हालांकि, साईं बाबा के अनुयायी उन्हें एक धार्मिक गुरू के रूप में मानते हैं, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों के प्रति समान सम्मान रखते थे। लेकिन विरोधियों का कहना है कि उनके धार्मिक स्थान पर उनकी पूजा शास्त्रों के खिलाफ है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मंदिरों में केवल देवताओं की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है, जिनकी पूजा अर्चना की जाती है। किसी भी मृत व्यक्ति या महात्मा की मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं की जाती, चाहे वह कितना भी श्रद्धेय क्यों न हो। यही तर्क साईं बाबा की प्रतिमा को हटाने का प्रमुख आधार बना हुआ है।
साईं मूर्तियों को हटाने के इस अभियान को लेकर वाराणसी के लोगों में मिलीजुली प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं। कुछ लोग इस कदम का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि वे इसे धर्म और शास्त्रों के अनुरूप मानते हैं। वहीं, कई अनुयायी इस फैसले से नाराज़ हैं। उनका कहना है कि साईं बाबा ने मानवता, प्रेम और सेवा का संदेश दिया, और उनकी मूर्ति को मंदिरों से हटाना उनके प्रति अनादर दिखाता है। इस अभियान के बाद, यह देखना दिलचस्प होगा कि वाराणसी के अन्य मंदिरों में क्या बदलाव होते हैं। सनातन रक्षक दल के इस कदम से एक बड़े धार्मिक चर्चा की शुरुआत हो गई है। यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या अन्य शहरों में भी इसी तरह के कदम उठाए जाएंगे।