पहले दीये जलाने पर सवाल, अब दाह संस्कार को बता दिया प्रदूषण का कारण, आखिर समाजवादियों को सनातन से क्यों है ऐतराज?
सपा सांसद आरके चौधरी ने कहा कि शवदाह और होलिका दहन से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है और पर्यावरण को नुकसान होता है. उनके बयान पर बीजेपी के गिरिराज सिंह ने धर्म बदलने तक की नसीहत दे दी. चौधरी ने पर्यावरण सुधार के नाम पर सिर्फ पेड़ लगाने को अपर्याप्त बताया.
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही समाजवादी पार्टी एक बार फिर सनातन पर दिए गए बयान को लेकर चर्चा में है. पार्टी के नेता इससे पहले पूजा-पाठ और दिवाली जैसे धार्मिक विषयों पर विवादित टिप्पणियां करते रहे हैं, लेकिन अब यह सिलसिला हिंदू धर्म के अंतिम संस्कार यानी दाह संस्कार तक पहुंच गया है. ताजा मामला लखनऊ के मोहनलालगंज लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के सांसद आरके चौधरी के बयान से जुड़ा है. उन्होंने हिंदू परंपरा से जुड़े अंतिम संस्कार और होलिका दहन पर सवाल उठाते हुए इन्हें पर्यावरण के लिए हानिकारक बताया है. उनके इस बयान ने धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही गलियारों में नई बहस छेड़ दी है. वहीं, बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सपा सांसद को धर्म बदलने तक की नसीहत दे डाली है.
दरअसल, आरके चौधरी ने अपने बयान में तर्क दिया कि शवों को जलाने की परंपरा से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण को बढ़ाती हैं. उन्होंने कहा, मैं पर्यावरण मंत्री रह चुका हूं. जिस तरह से इस पर काम किया जाता है, वह गलत है.' सांसद ने यह भी जोड़ा कि भारत में पर्यावरण सुधार के नाम पर कई एनजीओ और सरकारी विभाग केवल पेड़ लगाने पर ध्यान देते हैं, जबकि जमीन पर कार्बन उत्सर्जन और ऑक्सीजन की खपत की समस्या यथावत बनी हुई है. बता दें इससे पहले पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं. जो सीधे तौर पर सनातन के खिलाफ माने जाते हैं.
पर्यावरण का मुद्दा या धार्मिक विवाद?
सांसद आरके चौधरी (RK Chaudhary) ने न केवल शवदाह बल्कि होलिका दहन जैसी त्योहारों की परंपराओं पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि देशभर में लाखों शव जलाए जाते हैं, जिससे ऑक्सीजन की खपत होती है और जहरीली गैसें वातावरण में फैलती हैं. सांसद ने सुझाव दिया कि शवों को जलाने के बजाय दफनाने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है या इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की सुविधा का इस्तेमाल किया जा सकता है. उनके मुताबिक, 'यह धर्म का सवाल नहीं है, यह मानव और जानवरों के स्वास्थ्य और पर्यावरण का मामला है. हमें हर हाल में ऑक्सीजन बचाने का प्रयास करना चाहिए.' होलिका दहन के बारे में उन्होंने बताया कि पूरे देश में पांच करोड़ जगहों पर एक साथ होलिका दहन होता है, जिससे भारी मात्रा में ऑक्सीजन खपत होती है. उनके अनुसार, यदि पर्यावरण को बचाना है, तो इन परंपराओं में कुछ बदलाव करना जरूरी है.
बीजेपी नेता गिरिराज सिंह का पलटवार
सपा सांसद के इस बयान पर बीजेपी ने कड़ा पलटवार किया. केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने आरके चौधरी को सीधे निशाने पर लिया. उन्होंने कहा, 'अगर सपा सांसद को हिंदू रीति-रिवाजों से इतनी ही दिक्कत है, तो उन्हें अपना धर्म बदल लेना चाहिए.' गिरिराज सिंह ने शवदाह और दफनाने की प्रक्रिया की तुलना करते हुए कहा कि दफनाने में अधिक भूमि की आवश्यकता होती है, जबकि दाह संस्कार में एक ही स्थान का बार-बार उपयोग होता है और भूमि का अधिग्रहण नहीं होता. उनके मुताबिक, संसाधनों और पर्यावरण के दृष्टिकोण से दाह संस्कार अधिक व्यावहारिक है.
#WATCH | On air pollution issue, Samajwadi Party leader RK Chaudhary says,"...When bodies are burnt, they release carbon dioxide and carbon monoxide, and it burns oxygen in the atmosphere. Even during the lighting of fire on Holika Dahan, carbon dioxide and carbon monoxide are… pic.twitter.com/Iocz0lXFvM
— ANI (@ANI) December 18, 2025
प्रदूषण पर शुरू हुई नई राजनीति
यह विवाद ऐसे समय में उठाया गया है जब दिल्ली और उत्तर भारत के कई राज्य गंभीर वायु प्रदूषण का सामना कर रहे हैं. ठंड के समय धुंध और स्मॉग से विजिबिलिटी घटती है और लोगों की सेहत पर असर पड़ता है. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के मुख्य कारण वाहनों का धुआं, पराली जलाना, औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण कार्य हैं. ऐसे में सिर्फ शवदाह और होलिका दहन को मुख्य कारण बताना कई लोगों को तर्कसंगत नहीं लगता. आलोचकों का मानना है कि यह बयान पर्यावरण की चिंता से अधिक धार्मिक परंपराओं पर टिप्पणी जैसा प्रतीत होता है. हालांकि आरके चौधरी का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी धर्म पर हमला करना नहीं है, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा और ऑक्सीजन बचाने की आवश्यकता को उजागर करना है. सांसद ने जोर देकर कहा कि नई तकनीक और आधुनिक शवदाह गृह अपनाकर परंपराओं और पर्यावरण दोनों का संतुलन बनाए रखा जा सकता है.
अखिलेश यादव ने की थी दिवाली टिप्पणी
बता दें इससे पहले खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)ने भी पर्यावरण और परंपराओं पर विचार साझा किए थे. उन्होंने सुझाव दिया कि शहरों में दीयों की जगह मोमबत्तियों का इस्तेमाल किया जाए और रोशनी के पैमाने को बढ़ाया जाए, जिससे ऊर्जा का समुचित उपयोग हो. अखिलेश ने क्रिसमस के त्योहार से सीख लेने की बात कही और कहा कि पूरी दुनिया में त्योहारों के दौरान वातावरण को सुंदर बनाना और प्रकाश व्यवस्था करना एक अच्छा उदाहरण है. उनकी यह टिप्पणी भी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला द्वारा कड़ी आलोचना का सामना कर चुकी है.
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बताते चलें आरके चौधरी का बयान प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण पर गंभीर बहस को जन्म दे रहा है. एक तरफ सांसद आधुनिक और पर्यावरण-प्रेमी दृष्टिकोण से परंपराओं पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विरोधी इसे धार्मिक भावना पर हमला मान रहे हैं. यह बहस यह संकेत देती है कि भारत में परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण है. यह विवाद केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं है, बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि पर्यावरण सुरक्षा और सांस्कृतिक परंपराओं के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए.
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