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लेपाक्षी मंदिर का रहस्य: सदियों से हवा में झूलता यह स्तंभ क्यों है वैज्ञानिकों के लिए पहेली?

इस मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता है इसका एक स्तंभ, जो मुख्य मंडप में स्थित है. यह स्तंभ नीचे फर्श को बिल्कुल भी नहीं छूता, बल्कि हवा में लटका हुआ प्रतीत होता है. श्रद्धालु इस स्तंभ के नीचे से कपड़ा निकालकर देखते हैं, जिससे यह साबित होता है कि स्तंभ और ज़मीन के बीच में कोई संपर्क नहीं है.

भारत अपनी रहस्यमयी और प्राचीन धरोहरों के लिए विश्वभर में जाना जाता है. ऐसा ही एक अद्भुत स्थान है आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple). यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और कलाकृतियों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, लेकिन इसका एक स्तंभ (pillar) सदियों से वैज्ञानिकों और श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का केंद्र बना हुआ है. यह स्तंभ ज़मीन को नहीं छूता, बल्कि हवा में लटका हुआ है. आखिर क्या है इस रहस्यमयी मंदिर की कहानी और क्यों आज तक कोई इस लटके हुए स्तंभ का सच नहीं जान पाया?

वीरभद्र स्वामी का अद्भुत मंदिर

लेपाक्षी मंदिर, जिसे वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल में बनाया गया था. यह मंदिर भगवान शिव के एक रूप वीरभद्र को समर्पित है. अपनी जटिल नक्काशी, विशाल मूर्तियों और भित्ति चित्रों के कारण यह मंदिर कला और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. कहते हैं मंदिर का निर्माण विरुपन्ना नाम के व्यक्ति ने अपने भाई के साथ मिलकर करवाया था, जो वहां के राजा के यहां काम करते थे. वहीं दूसरी तरफ ये भी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने करवाया था. 

हवा में झूलता रहस्यमयी स्तंभ

इस मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता है इसका एक स्तंभ, जो मुख्य मंडप में स्थित है. यह स्तंभ नीचे फर्श को बिल्कुल भी नहीं छूता, बल्कि हवा में लटका हुआ प्रतीत होता है. श्रद्धालु इस स्तंभ के नीचे से कपड़ा निकालकर देखते हैं, जिससे यह साबित होता है कि स्तंभ और ज़मीन के बीच में कोई संपर्क नहीं है. 

सदियों से यह लटकता हुआ स्तंभ लोगों के लिए आश्चर्य और जिज्ञासा का विषय बना हुआ है. स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के बीच इस स्तंभ को लेकर कई तरह की मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं. कुछ लोग इसे मंदिर की दिव्य शक्ति का प्रमाण मानते हैं, तो कुछ इसे प्राचीन भारतीय वास्तुकारों की अद्भुत इंजीनियरिंग का चमत्कार बताते हैं. मान्यता है की इस स्तंभ को छूने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है. 

कोई नहीं सुलझा पाया रहस्य

वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने कई बार इस स्तंभ की संरचना और लटके रहने के कारण को समझने का प्रयास किया, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया है. ब्रिटिशर्स ने भी इस रहस्य से पर्दा हटाने की कोशिश की थी. एक ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने थियोरी दी कि 70 स्तंभ वाले इस मंदिर का सारा वजन बाकी 69 स्तंभों पर है. इसलिए एक स्तंभ हवा में लटकने से कोई फर्क नहीं पड़ता.

लेकिन जब इस थियोरी को टेस्ट किया गया तो एक हैरान करने वाली बात सामने आई. जांच करने पर पता चला कि इस मंदिर का सारा भार इसी स्तंभ पर है. इसके बाद ब्रिटिशर्स ने भी इस मंदिर के रहस्य के सामने घुटने टेक दिए. 

लेपाक्षी मंदिर न केवल अपने लटके हुए स्तंभ के लिए, बल्कि अपनी कला और संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है. मंदिर की दीवारों भित्ति चित्र बने हुए हैं, जो उस समय की कला और जीवनशैली को दर्शाते हैं. मंदिर में नंदी बैल की अखंड पत्थर से बनी एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है, जो भारत की सबसे बड़ी नंदी प्रतिमाओं में से एक है.

लेपाक्षी मंदिर का लटकता हुआ स्तंभ आज भी एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है, जो हमें प्राचीन भारतीय ज्ञान और कौशल की गहराई में झांकने का अवसर देता है. यह मंदिर विज्ञान और आस्था के बीच की एक अद्भुत कड़ी है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी प्राचीन धरोहरों में कितने रहस्य छिपे हुए हैं जिन्हें आज भी सुलझाना बाकी है.

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