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क्या खनिज संपदा की तलाश में अमेरिका फिर लौटेगा अफगानिस्तान?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर अब अफगानिस्तान के बहुमूल्य खनिज संसाधनों पर टिकी है। यूक्रेन से मिनरल डील फेल होने के बाद, अब अमेरिका अफगानिस्तान में दखल देने की योजना बना रहा है। ट्रंप जानते हैं कि अफगानिस्तान 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के बहुमूल्य खनिजों का भंडार है, लेकिन यहां तालिबान और चीन की मौजूदगी उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा बन सकती है।

04 Mar, 2025
( Updated: 04 Mar, 2025
06:15 PM )
क्या खनिज संपदा की तलाश में अमेरिका फिर लौटेगा अफगानिस्तान?
दुनिया में सत्ता और संसाधनों की होड़ हमेशा से रही है, लेकिन जब बात अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हो, तो यह प्रतियोगिता और भी रोचक हो जाती है। यूक्रेन युद्ध में अमेरिका द्वारा दी गई आर्थिक और सैन्य मदद की भरपाई खनिज संपदा से करने की ट्रंप की योजना विफल होती नजर आ रही है। अब उनकी नजरें उस मुस्लिम देश पर टिक गई हैं, जिसे अमेरिका पहले ही छोड़ चुका था, और वो देश है अफगानिस्तान। लेकिन क्या अमेरिका का अफगानिस्तान लौटना इतना आसान होगा? तालिबान की सत्ता, चीन की बढ़ती पकड़ और बदलते वैश्विक समीकरण, इन सबके बीच अमेरिका के लिए यह राह आसान नहीं लगती। आइए, समझते हैं डोनाल्ड ट्रंप की खनिज युद्ध नीति और अफगानिस्तान पर उनकी संभावित रणनीति।

ट्रंप की यूक्रेन से मिनरल डील फेल

जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तो अमेरिका ने अरबों डॉलर की सैन्य सहायता देकर यूक्रेन का समर्थन किया। लेकिन अब जब ट्रंप चाहते हैं कि यूक्रेन इन मददों का भुगतान अपने बहुमूल्य खनिज संसाधनों से करे, तो जेलेंस्की सरकार इसे लेकर उत्साहित नहीं दिख रही। व्हाइट हाउस में हुई ट्रंप और जेलेंस्की की बैठक विवादित रही, जहां ट्रंप ने खुलकर कहा कि यूक्रेन को अमेरिका के कर्ज का भुगतान करना होगा। लेकिन यूक्रेन युद्ध में खुद को झोंक चुका है और इस समय खनिज डील जैसी चीजों पर चर्चा संभव नहीं। ट्रंप इस स्थिति से असहज हैं, क्योंकि वह अमेरिका की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहना चाहते हैं।

अफगानिस्तान की ओर बढ़ते कदम

अब यूक्रेन से तो सौदा नहीं हुआ, तो फिर अगला लक्ष्य कौन? तो आपको बता दें कि जिसे दुनिया का खनिज भंडार कहा जाता है। जिसकी धरती सोने की खान है, उसी अफगानिस्तान की तरफ अब ट्रंप के कदम बढ़ते जा रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगानिस्तान में लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर (1000 अरब डॉलर) से अधिक मूल्य के खनिज संसाधन मौजूद हैं, जिनमें लिथियम, सोना, यूरेनियम, दुर्लभ धातुएं और अन्य बहुमूल्य खनिज शामिल हैं। अमेरिका को यह अच्छी तरह पता है कि यदि वह इन संसाधनों पर नियंत्रण पा लेता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा हो सकता है। यही कारण है कि अब ट्रंप प्रशासन की नजर अफगानिस्तान पर दोबारा पड़ रही है। लेकिन अमेरिका के सामने एक बड़ी चुनौती है, और वो है तालिबान!

2017 में, डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी से खनिज संसाधनों पर एक समझौता किया था। अमेरिका चाहता था कि अफगानिस्तान का खनन उद्योग विकसित हो और इसका बड़ा फायदा अमेरिकी कंपनियों को मिले। लेकिन 2021 में तालिबान की वापसी के बाद यह डील रद्द हो गई। अमेरिका को वहां से अपनी सेना हटानी पड़ी और उसके खनिजों पर कब्जे का सपना टूट गया। अब ट्रंप चाहते हैं कि अफगानिस्तान के बहुमूल्य खनिजों पर अमेरिका का फिर से नियंत्रण हो, लेकिन तालिबान से निपटना इतना आसान नहीं है।

चीन बना सबसे बड़ी बाधा!

अमेरिका केवल तालिबान से ही परेशान नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती मौजूदगी भी एक बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है। चीन की नजर अफगानिस्तान के लिथियम भंडार पर है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के लिए बेहद जरूरी है। चीन ने तालिबान सरकार से पहले ही मजबूत संबंध बना लिए हैं। चीनी कंपनियां अफगानिस्तान में निवेश कर रही हैं और खनिज संसाधनों का दोहन कर रही हैं। चीन तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने की भी कोशिश कर रहा है। अमेरिका को डर है कि अगर चीन ने अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों पर पूरी तरह कब्जा कर लिया, तो यह अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका होगा। यही वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान में फिर से अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं।

अमेरिका और तालिबान के बीच होगा समझौता?

तालिबान सरकार को अभी तक अमेरिका ने आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। ऐसे में, ट्रंप के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह तालिबान से कोई डील कर सकते हैं? अगर अमेरिका तालिबान को मान्यता देता है, तो वह वहां अपनी कंपनियों को भेज सकता है। अगर वह तालिबान को मान्यता नहीं देता, तो चीन इस मौके का पूरा फायदा उठाएगा। अमेरिका के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। या तो उसे तालिबान से कोई समझौता करना होगा, या फिर उसे अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती पकड़ को स्वीकार करना पड़ेगा।

क्या अमेरिका अफगानिस्तान में दोबारा घुसेगा? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। लेकिन इतिहास बताता है कि अमेरिका कभी भी खनिज संपदा को यूं ही छोड़ने वाला नहीं है। क्योंकि अगर ट्रंप फिर से तालिबान से डील करने की कोशिश करते हैं, तो यह एक बड़ा भू-राजनीतिक उलटफेर होगा। और अगर अमेरिका तालिबान के साथ सौदा करता है, तो यह चीन के लिए बड़ा झटका होगा। और अगर अमेरिका तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो एक और युद्ध का खतरा मंडराने लगेगा। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि अमेरिका की खनिज युद्ध नीति अब नए मोड़ पर है। यूक्रेन से सौदा न बनने के बाद ट्रंप की नजर अब अफगानिस्तान पर है, लेकिन वहां चीन और तालिबान दोनों ही अमेरिका के रास्ते की बड़ी रुकावट बने हुए हैं।

अब सवाल यह है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप फिर से अफगानिस्तान में अमेरिकी दखल बढ़ाने की कोशिश करेंगे, या चीन को वहां का नया सुपरपावर बनने देंगे?

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