आखिर 6 साल के बच्चे से क्यों डर गया था चीन... 1995 में कर लिया था कैद, आज तक नहीं लगा कोई सुराग; जानिए कौन हैं 11वें पंचेन लामा
अमेरिका और चीन के बीच 11वें पंचेन लामा गेधुन चोएकी निज्मा को लेकर तनाव फिर बढ़ गया है. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने चीन से उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है. साल 1995 में दलाई लामा द्वारा मान्यता मिलने के तीन दिन बाद चीन ने छह वर्षीय पंचेन लामा और उनके परिवार को हिरासत में ले लिया था. तब से उनका कोई सुराग नहीं है.

तिब्बती बौद्ध धर्म के धार्मिक उत्तराधिकार को लेकर एक बार फिर अमेरिका और चीन के बीच टकराव तेज हो गया है. इस बार विवाद का की वजह बने हैं 11वें पंचेन लामा गेधुन चोएकी निज्मा, जिनको लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने चीन से साफ शब्दों में मांग की है कि उन्हें तुरंत रिहा किया जाए.
दरअसल, पंचेन लामा जब केवल 6 साल के थे, तब उन्हें दलाई लामा ने 14 मई 1995 को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी. लेकिन इसके महज तीन दिन बाद ही चीन की सुरक्षा एजेंसियों ने पंचेन लामा और उनके पूरे परिवार को हिरासत में ले लिया था और तब से अब तक उनका कोई अता-पता नहीं है.
चीन की धर्म पर नियंत्रण की कोशिश
पंचेन लामा तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक पद माना जाता है. इसलिए इस पद पर किसे बिठाया जाए, यह सवाल सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी है. चीन ने दलाई लामा द्वारा नियुक्त पंचेन लामा को नकारते हुए एक और बालक को अपना पंचेन लामा घोषित कर दिया था. इसका सीधा मतलब यही है कि चीन तिब्बती धर्म पर भी पूरी तरह से नियंत्रण चाहता है ताकि आने वाले समय में दलाई लामा जैसे शीर्ष धार्मिक पदों पर उसका प्रभुत्व कायम रहे. यही वजह है कि चीन को भारत में निर्वासित जीवन जी रहे दलाई लामा से भी सख्त आपत्ति रही है, क्योंकि दलाई लामा की अंतरराष्ट्रीय छवि शांतिदूत और धार्मिक गुरु की है, जो चीन की सत्तावादी सोच से मेल नहीं खाती.
सेंट्रल तिब्बती एडमिनिस्ट्रेशन ने उठाई आवाज
भारत के धर्मशाला में स्थित सेंट्रल तिब्बती एडमिनिस्ट्रेशन ने भी चीन से यह मांग की है कि 30 वर्षों से गायब पंचेन लामा गेधुन चोएकी निज्मा की वर्तमान स्थिति के बारे में दुनिया को जानकारी दी जाए. तिब्बती प्रशासन का कहना है कि 14वें दलाई लामा द्वारा मान्यता दिए जाने के महज तीन दिन बाद ही चीन ने उन्हें बंधक बना लिया था और तब से अब तक यह भी स्पष्ट नहीं किया कि वे जीवित हैं या नहीं. उनका कोई चित्र, वीडियो या साक्षात्कार सामने नहीं आया. ऐसे में पूरी तिब्बती जनता और धार्मिक समुदाय के बीच यह चिंता गहराती जा रही है कि आखिर उनका असली पंचेन लामा कहां है.
तिब्बत पर चीन का कब्जा
तिब्बत का इतिहास स्वतंत्र पहचान वाला रहा है. लेकिन 1959 में चीन ने सैन्य बल के जरिए तिब्बत पर कब्जा कर लिया और तब से अब तक वहां की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वतंत्रता लगातार छीनी जा रही है. तिब्बती लोग लगातार अपनी धार्मिक अधिकारों की मांग करते आए हैं, लेकिन चीन इस पर कोई नरमी नहीं दिखाता. वह बार-बार यही कहता है कि तिब्बत उसका अभिन्न अंग है. लेकिन धरातल पर सच्चाई यह है कि वहां मानवाधिकारों का हनन, धार्मिक दमन और राजनीतिक उत्पीड़न आम हो चुका है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी समय-समय पर चीन की इन नीतियों की आलोचना करते रहे हैं.
एक बालक जो इतिहास बन गया
11वें पंचेन लामा गेधुन चोएकी निज्मा का जन्म 25 अप्रैल 1989 को तिब्बत में हुआ था. जब उन्हें दलाई लामा ने 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी, तब वे मात्र 6 साल के थे. इस ऐतिहासिक घोषणा के साथ ही वे दुनिया के सबसे कम उम्र के राजनीतिक बंदी बन गए. उनका जीवन, उनका अस्तित्व और उनकी स्थिति आज भी रहस्य बनी हुई है. इस घटना ने तिब्बती धार्मिक समुदाय में गहरा भावनात्मक आघात पहुंचाया है. वह बालक, जो आज एक वयस्क होता, न तो आज़ाद है, न ही उसकी आवाज दुनिया सुन पा रही है.
धर्म को भी राजनीति में घसीटने की कोशिश
चीन जानता है कि दलाई लामा और पंचेन लामा जैसे धार्मिक पद केवल आध्यात्मिक महत्व नहीं रखते, बल्कि तिब्बती जनता के लिए यह पहचान, विश्वास और संस्कृति का प्रतीक हैं. यदि चीन इन धार्मिक नेताओं की नियुक्ति पर नियंत्रण कर पाता है, तो वह तिब्बती समुदाय के मनोबल को तोड़ने में सफल हो जाएगा. यही वजह है कि चीन ने जबरन पंचेन लामा की नियुक्ति की, और असली पंचेन लामा को नजरों से गायब कर दिया. लेकिन दुनिया अब खामोश नहीं है. अमेरिका की चेतावनी और तिब्बती समुदाय की मांगें यह बताती हैं कि अब इस धार्मिक दमन को और अधिक सहन नहीं किया जाएगा.
बताते चलें कि 11वें पंचेन लामा गेधुन चोएकी निज्मा की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की पीड़ा और उम्मीद की प्रतीक है. यह उस छोटे बच्चे की कहानी है, जिसे उसकी धार्मिक पहचान के चलते अगवा कर लिया गया. यह तिब्बती लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई है, जो अब वैश्विक स्तर पर गूंजनी शुरू हो गई है.