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अमेरिका के राष्ट्रपति की शपथ में क्यों होती हैं 35 शब्दों की शपथ?

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आज दूसरी बार पद की शपथ लेंगे। अमेरिका में राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश शपथ दिलाते हैं। ट्रंप इस अवसर पर दो बाइबल का उपयोग करेंगे, जिनमें से एक उनकी मां द्वारा दी गई थी। शपथ समारोह यूएस कैपिटल के अंदर आयोजित होगा, जिसमें भारत सहित विभिन्न देशों के गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे। अमेरिका में राष्ट्रपति की शपथ 35 शब्दों की होती है, जो संविधान का मूल हिस्सा मानी जाती है।

भारत और अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण प्रक्रिया में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। भारत में, जब कोई नया राष्ट्रपति पद ग्रहण करता है, तो उन्हें देश के प्रधान न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) द्वारा शपथ दिलाई जाती है। वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति को शपथ दिलाने का यह सम्मान देश के मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स) को दिया जाता है।

20 जनवरी 2025 को अमेरिका में एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली। इस शपथ ग्रहण समारोह में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने ट्रंप को शपथ दिलाई। यह परंपरा 1789 से चली आ रही है जब जॉर्ज वॉशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने थे। अमेरिका में राष्ट्रपति शपथ ग्रहण समारोह का एक खास महत्व होता है। यह आयोजन वाशिंगटन डी.सी. के यूएस कैपिटल बिल्डिंग के सामने किया जाता है। हालांकि, इस बार भीषण ठंड के चलते समारोह कैपिटल रोटुंडा के अंदर आयोजित किया गया। शपथ ग्रहण की प्रक्रिया में राष्ट्रपति को 35 शब्दों की शपथ लेनी होती है, जो अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 2, धारा 1 में उल्लिखित है।

35 शब्दों की शपथ

"I do solemnly swear (or affirm) that I will faithfully execute the Office of President of the United States, and will to the best of my ability, preserve, protect and defend the Constitution of the United States."

इसका हिंदी अनुवाद है "मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता हूँ (या प्रतिज्ञान करता हूँ) कि मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के पद का निष्ठापूर्वक निर्वहन करूँगा, और अपनी पूरी क्षमता से संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान का संरक्षण, सुरक्षा और बचाव करूँगा।"

डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार शपथ ग्रहण में दो बाइबिल का उपयोग किया। इनमें से एक बाइबिल उनकी मां द्वारा दी गई थी, जबकि दूसरी लिंकन बाइबिल थी, जिसे 1861 में अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करते समय उपयोग किया था। यह परंपरा दर्शाती है कि अमेरिका में धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर को कितनी गंभीरता से लिया जाता है। शपथ ग्रहण समारोह में दुनियाभर की जानी-मानी हस्तियों ने शिरकत की। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर समारोह में मौजूद रहे, जबकि मुकेश अंबानी और नीता अंबानी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके अलावा, टेस्ला के सीईओ एलन मस्क, अमेज़न के कार्यकारी अध्यक्ष जेफ बेजोस, और मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग जैसे वैश्विक उद्योगपति भी उपस्थित थे।

इस मौके पर ट्रंप ने अपने उद्घाटन भाषण में अमेरिका की अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक संबंधों पर अपनी प्राथमिकताओं को दोहराया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका प्रशासन देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा। भारत और अमेरिका में राष्ट्रपति शपथ ग्रहण की प्रक्रिया में प्रमुख अंतर यह है कि भारत में यह औपचारिकता संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संपन्न होती है और राष्ट्रपति के साथ उपराष्ट्रपति तथा संसद के सदस्य मौजूद रहते हैं। भारत में राष्ट्रपति शपथ ग्रहण के दौरान संविधान की प्रति के साथ शपथ लेते हैं, जबकि अमेरिका में बाइबिल का प्रयोग किया जाता है।

अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के दौरान एक बड़ा जनसमूह उपस्थित रहता है और यह आयोजन पूरी दुनिया में प्रसारित किया जाता है। इस बार भी लाखों लोगों ने टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से इस ऐतिहासिक पल को देखा। ट्रंप के समर्थकों ने इस आयोजन को एक नई शुरुआत के रूप में देखा, जबकि विरोधियों ने इस पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं दीं।

इस ऐतिहासिक आयोजन के साथ, डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अमेरिका की कमान संभाली और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनका दूसरा कार्यकाल देश और दुनिया के लिए क्या नए बदलाव लेकर आता है।

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