ट्रंप ने भारत पर किया टैरिफ वार तो रूस और ईरान ने तुरंत निकाल ली 'तलवार', दिलाई 'डेड हैंड' की याद
डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर भारत-रूस की साझेदारी और ईरान से व्यापार पर नाराजगी जताई. साथ ही रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव को धमकी दी. मेदवेदेव ने पलटवार करते हुए अमेरिका को 'डेड हैंड' की याद दिलाई. वहीं ईरान ने अमेरिकी नीतियों को 'आर्थिक साम्राज्यवाद' बताते हुए भारत का समर्थन किया.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर वैश्विक राजनीति के केंद्र में हैं. इस बार मामला सिर्फ रूस से जुड़ा नहीं है, बल्कि भारत और ईरान भी ट्रंप के निशाने पर आ गए हैं. ट्रंप ने रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए चेतावनी दी और साथ ही भारत की रूस और ईरान के साथ बढ़ती साझेदारी पर भी आपत्ति जताई. लेकिन इस बार ट्रंप की आलोचना का जवाब न केवल रूस ने दिया, बल्कि ईरान ने भी खुलकर भारत का समर्थन किया है. अब यह मुद्दा एक कूटनीतिक टकराव की शक्ल ले चुका है.
ट्रंप की पोस्ट और भारत पर निशाना
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपनी सोशल मीडिया साइट ट्रुथ सोशल पर भारत, रूस और मेदवेदेव को लेकर एक तीखी पोस्ट डाली. उन्होंने लिखा, “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि भारत रूस के साथ क्या करता है. वे मिलकर अपनी मृत अर्थव्यवस्थाओं को और नीचे ले जा सकते हैं.” ट्रंप यहीं नहीं रुके. उन्होंने मेदवेदेव को चेतावनी देते हुए लिखा, “रूस के असफल पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव, जो खुद को अभी भी राष्ट्रपति मानते हैं, वे अपनी बातों पर ध्यान दें. वे एक खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं.” ट्रंप का यह बयान मेदवेदेव के उस तीखे कमेंट के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने ट्रंप के रूस पर दिए बयानों को "जंग की ओर बढ़ता कदम" बताया था. मेदवेदेव ने 28 जुलाई को कहा था कि ट्रंप की विचारधारा अमेरिका को युद्ध में धकेल सकती है.
मेदवेदेव का करारा पलटवार
ट्रंप की टिप्पणी के बाद मेदवेदेव ने पलटवार करते हुए अमेरिका को याद दिलाया कि रूस कोई साधारण देश नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर मेरे शब्दों से ट्रंप को डर लग रहा है, तो यह इस बात का संकेत है कि रूस सही दिशा में है.” साथ ही उन्होंने व्यंग्य करते हुए यह भी कहा कि “वाकिंग डेड सिर्फ टीवी शो नहीं हैं, अमेरिका को डेड हैंड जैसे रिटालिएशन सिस्टम को नहीं भूलना चाहिए.” डेड हैंड रूस की शीत युद्ध काल की एक स्वचालित परमाणु प्रतिक्रिया प्रणाली है, जो यह सुनिश्चित करती है कि अगर रूस पर हमला होता है और उसके सारे कमांड सेंटर तबाह हो जाते हैं, तो यह सिस्टम खुद से मिसाइल लॉन्च कर सके. यह अमेरिका के लिए एक अप्रत्यक्ष चेतावनी थी.
भारत की स्थिति और ट्रंप की नाराजगी
भारत हमेशा से रूस का रणनीतिक साझेदार रहा है. हाल ही में भारत ने रूस से रक्षा उपकरण और कच्चा तेल खरीदना जारी रखा है. अमेरिका को यह बात लंबे समय से खटक रही है, और ट्रंप ने अब खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. उनके शब्दों में “भारत की नीति अमेरिका विरोधी नहीं तो संदिग्ध जरूर है.” लेकिन भारत ने हमेशा स्पष्ट किया है कि वह अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र रूप से तय करता है. रूस के साथ उसका व्यापार और रणनीतिक संबंध उसके राष्ट्रीय हितों से जुड़ा है, न कि किसी के दबाव से.
ईरान ने भारत के पक्ष में खोला मोर्चा
इस पूरे विवाद में ईरान की एंट्री तब हुई जब अमेरिका ने 6 भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिए. इन कंपनियों पर आरोप है कि वे जनवरी 2024 से जनवरी 2025 के बीच ईरान के पेट्रोकेमिकल उत्पादों का व्यापार करती रहीं. अमेरिका के मुताबिक यह उसकी आर्थिक पाबंदियों का उल्लंघन है. इस पर ईरान ने तीखी प्रतिक्रिया दी. ईरानी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “भारत जैसी संप्रभु शक्ति पर प्रतिबंध लगाना अमेरिकी दबाव नीति का हिस्सा है. यह नीति स्वतंत्र देशों की तरक्की को रोकने के लिए बनाई गई है.” ईरान ने अमेरिका के इस रवैये को “आधुनिक आर्थिक साम्राज्यवाद” बताया और Global South यानी विकासशील देशों से अपील की कि वे एकजुट होकर अमेरिका की इस नीति का विरोध करें.
क्या बढ़ेगा वैश्विक तनाव?
इस घटनाक्रम से एक बात साफ हो रही है कि अमेरिका की वैश्विक नीतियों पर अब कई देश खुलकर सवाल उठा रहे हैं. रूस, भारत और ईरान जैसे देश अब संयुक्त रूप से अमेरिकी दबाव को चुनौती देने लगे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की ओर से की गई ऐसी बयानबाजी से वैश्विक मंच पर तनाव और बढ़ सकता है. भारत की रणनीति साफ है—वह किसी खेमे का हिस्सा नहीं बनेगा और अपनी नीतियों में संप्रभुता बरकरार रखेगा.
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डोनाल्ड ट्रंप की तीखी टिप्पणियों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अमेरिका अब भी दुनिया पर एकतरफा दबाव डालने की सोच रखता है. लेकिन रूस, भारत और ईरान जैसे देश अब सिर्फ जवाब नहीं दे रहे, बल्कि अमेरिका की नीति को सार्वजनिक रूप से चुनौती भी दे रहे हैं. आने वाले समय में यह टकराव और गहराने की आशंका है. भारत फिलहाल अपने हितों और वैश्विक संतुलन के बीच संतुलन बनाकर चल रहा है, लेकिन ट्रंप जैसे नेता इस राह को और कठिन बना सकते हैं.
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