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तो इसलिए शहबाज के खास लगा रहे थे चीन के चक्कर, जिनपिंग के 3.7 अरब डॉलर से भरा पाकिस्तान का खाली कटोरा, डिफॉल्ट होने से बचा

भारत-पाक तनाव के बीच जब शहबाज शरीफ के मंत्री बार-बार चीन जा रहे थे, तो इसके पीछे की असल वजह अब सामने आई है. पाकिस्तान आर्थिक रूप से डूब रहा था और IMF की मदद भी नाकाफी साबित हो रही थी. ऐसे में चीन ने एक बार फिर 'पुराने दोस्त' की मदद की और 3.7 अरब डॉलर के कर्ज को रोल-ओवर करने की सहमति दी.

तो इसलिए शहबाज के खास लगा रहे थे चीन के चक्कर, जिनपिंग के 3.7 अरब डॉलर से भरा पाकिस्तान का खाली कटोरा, डिफॉल्ट होने से बचा
भारत-पाक तनाव के बीच जब पाकिस्तान के मंत्री बार-बार चीन के दौरे पर जा रहे थे, तो इसे कइयों ने हथियार मांगने की कवायद माना. लेकिन असल कहानी इससे कहीं ज्यादा आर्थिक थी. पाकिस्तान के खजाने में पड़े खाली कटोरे और अंतरराष्ट्रीय कर्ज की बढ़ती किश्तों के बीच, शहबाज शरीफ सरकार चीन से लोन रोल-ओवर की उम्मीद लेकर गई थी. शी जिनपिंग ने एक बार फिर 'पुराने दोस्त' की गुहार सुनी और पाकिस्तान को 3.7 अरब डॉलर के कर्ज को आगे बढ़ाने की राहत दे दी. इसमें 2.4 अरब डॉलर का वह लोन भी शामिल है, जिसकी अगली किश्त अगले महीने चुकानी थी, और साथ ही बैंक ऑफ चाइना के 300 मिलियन डॉलर का ऋण भी शामिल है.

चीन की मदद क्यों बनी पाकिस्तान की जरूरत?

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार मई 2025 तक गिरकर 11.4 अरब डॉलर पर आ चुका था. वो भी तब जब IMF ने उसे हाल ही में 1 अरब डॉलर की सहायता दी थी. यह भंडार केवल कुछ हफ्तों के आयात को ही कवर कर सकता था. ऐसे हालात में चीन की मदद पाकिस्तान के लिए जीवनरेखा जैसी साबित हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से मिला यह रोल-ओवर सिर्फ तात्कालिक राहत नहीं, बल्कि चीन की भू-राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा है. चीन अमेरिकी डॉलर पर वैश्विक निर्भरता को चुनौती देना चाहता है और पाकिस्तान जैसे मित्र देशों को आर्थिक रस्सी थमाकर उन्हें अपनी परिधि में बनाए रखना चाहता है.

IMF की किस्त भी बनी नाकाफी

IMF के 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के तहत पाकिस्तान को अगले कुछ महीनों में अपने विदेशी भंडार को 14 अरब डॉलर तक लाना होगा. लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान को 2025 में करीब 22 अरब डॉलर का बाहरी कर्ज चुकाना है. और ऐसे में IMF की सहायता भी एक बूंद साबित हो रही थी. यही वजह है कि पाकिस्तान ने चीन की चौखट पर बार-बार दस्तक दी. यह पहली बार नहीं है जब बीजिंग ने पाकिस्तान की मदद की है. 2022 और 2023 में भी चीन ने दो बार 2.5 अरब और 2.4 अरब डॉलर का ऋण रोल-ओवर किया था.

कर्ज की कीमत भी है भारी

हालांकि यह राहत अस्थायी है. चीन से मिला कर्ज 3.7% ब्याज दर पर आधारित है और पूरी तरह वाणिज्यिक प्रकृति का है. इसका मतलब है कि पाकिस्तान को इस पर भारी ब्याज भी चुकाना होगा. चीन-पाक आर्थिक गलियारे (CPEC) की परियोजनाएं पहले से ही पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ बढ़ा चुकी हैं, जिनका कुल मूल्य करीब 69 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है. चीन की मदद पाकिस्तान को डिफॉल्ट से बचा सकती है, लेकिन उसकी आर्थिक स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़े कर रही है.

चीन द्वारा दिया गया यह रोल-ओवर पाकिस्तान के लिए तत्काल संकट से मुक्ति जरूर है, लेकिन यह उसकी दीर्घकालिक समस्याओं का समाधान नहीं है. आर्थिक सुधार, औद्योगिक विकास और पारदर्शी नीतियों के बिना पाकिस्तान बार-बार इसी चक्रव्यूह में फंसा रहेगा. चीन पर बढ़ती निर्भरता उसकी राजनीतिक दिशा और कूटनीतिक स्वतंत्रता को भी प्रभावित कर सकती है. 

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