'हम चुप नहीं रह सकते', बांग्लादेश में हिंदू की हत्या पर खौल उठा पवन कल्याण का ख़ून, बोले- दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए
बांग्लादेश में हिंदू दीपू चंद्र दास की हत्या पर आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने अपनी नाराजागी ज़ाहिर की है. उन्होंने दीपू चंद्र दास को श्रद्धांजलि देते हुए इस मामले पर तीखा हमला बोला है. पवन कल्याण ने अपने एक्स अकाउंट पर इसे लेकर लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है.
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जिस बांग्लादेश और बांग्लादेशी लोगों को हिंदुस्तान के लोगों ने पाकिस्तान और पाक फौज की बर्बरियत से मुक्ति दिलाई, महिलाओं के सामूहिक रेप और नरसंहार से बचाया और एक आजाद मुल्क में सांस लेने का मौका दिया, उसी देश में आज हिंदुओं की जिंदगी नर्क जैसी हो गई है. उनके लिए जीना मुश्किल हो गया है. अगर आप हिंदू हैं तो आपको किसी भी वक्त धर्म के नाम पर मार सकते हैं, कट्टरपंथी कभी भी आपको जिंदा जला सकते हैं, किसी भी वक्त आपकी बहन-बेटी की इज्जत लूटी जा सकती है. ऐसा ही कुछ हुआ हिंदू युवक दीपू चंद्र दास के साथ. उसे यहां कट्टरपंथियों की भीड़ ने ना सिर्फ पीट-पीटकर मारा, उसकी सरेआम लिंचिंग की, बल्कि उसे अधमरा स्थिति में पेड़ से लटकाकर उसे आग लगा दी गई और इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए.
बांग्लादेश में हिंदू की हत्या पर भड़के पवन कल्याण
इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने अपनी नाराजागी ज़ाहिर की है. उन्होंने दीपू चंद्र दास को श्रद्धांजलि देते हुए इस मामले पर तीखा हमला बोला है. पवन कल्याण ने अपने एक्स अकाउंट पर इसे लेकर लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है, जिसमें उन्होंने लिखा, “दीपू चंद्र दास की आत्मा के लिए प्रार्थना. इतिहास बलिदान को याद रखता है. लेकिन आज, जिस ज़मीन को कभी भारतीय खून से आज़ाद कराया गया था, वह मासूम अल्पसंख्यकों के खून से रंगी जा रही है.”
A PRAYER FOR THE SOUL OF DIPU CHANDRA DAS
— Pawan Kalyan (@PawanKalyan) December 19, 2025
History remembers sacrifice. But today, the soil that was once liberated with Indian blood is being stained with the blood of innocent minorities.
In 1971, our Indian Armed Forces stood for the oppressed. Our brave soldiers didn’t…
‘3,900 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान कर दी’
पवन कल्याण ने आगे लिखा, 1971 में, हमारी भारतीय सेना उत्पीड़ितों के साथ खड़ी थी. हमारे बहादुर सैनिकों ने सिर्फ़ युद्ध नहीं लड़ा; उन्होंने लाखों लोगों की पहचान और गरिमा के लिए लड़ाई लड़ी, जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है. बांग्लादेश के जन्म को सुनिश्चित करने के लिए लगभग 3,900 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान कर दी और 10,000 से ज़्यादा घायल हुए. हमने अपनी जान दी ताकि दूसरे शांति से रह सकें.
‘यह एक लक्षित हमला है’
पवन कल्याण यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा, “लेकिन आज, "शांति" सिर्फ़ एक शब्द है; उत्पीड़न सच्चाई है. बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, अगस्त 2024 और जुलाई 2025 के बीच अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की 2,442 घटनाओं को दर्ज किया गया. 150 से ज़्यादा मंदिरों में तोड़फोड़ की गई और उन्हें अपवित्र किया गया. ये सिर्फ़ अशांति या बेतरतीब अराजकता के काम नहीं हैं; यह एक समुदाय के विश्वास और उसके अस्तित्व के अधिकार पर जानबूझकर किया गया, लक्षित हमला है.
‘मेरा दिल दीपू दास की आत्मा के लिए दुखी है’
उपमुख्यमंत्री ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा,”निशाना बनाने का तरीका साफ़ और क्रूर है - पिछले साल, हमने इस्कॉन के भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास को अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाले जाने और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रदीप भौमिक की बेरहमी से लिंचिंग देखी और अब मैमनसिंह में दीपू चंद्र दास की भयानक हत्या. इस नौजवान को सिर्फ़ मारा नहीं गया; उसे ऐसी बर्बरता का शिकार बनाया गया जो 21वीं सदी को शर्मसार करती है. रिपोर्टों से पुष्टि होती है कि भीड़ ने उसे सरेआम लिंच किया, फिर उसके शरीर को एक पेड़ से लटका दिया गया, और उसे आग लगा दी गई. दिन के उजाले में ऐसा शैतानी काम देखना मानवता और कानून के शासन के पूरी तरह से पतन का संकेत है.मेरा दिल दीपू दास की आत्मा के लिए दुखी है. मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ और उनके दुखी परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ, जिन्हें इतना भयानक नुकसान सहना पड़ा है कि इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.”
‘हम चुप नहीं रह सकते, और न ही रहेंगे’
पवन कल्याण ने आगे कहा, “इस क्षेत्र की जनसांख्यिकीय सच्चाई इस चल रही त्रासदी का एक चौंकाने वाला प्रमाण है. 1951 में, हिंदुओं की आबादी 22% थी. आज, यह संख्या घटकर 8% से भी कम हो गई है. यह सिर्फ़ पलायन नहीं है; यह एक व्यवस्थित उत्पीड़न है जिसे दुनिया नज़रअंदाज़ करना चुनती है. मैं बांग्लादेश के लीडरशिप से अपील करता हूं कि वे सिर्फ़ निंदा करने वाली बातों से आगे बढ़ें और शांति बहाल करें. आपको हर हिंदू, बौद्ध और ईसाई नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. मैमनसिंह की भयानक घटना के दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए ताकि यह दिखाया जा सके कि कोई भी भीड़ कानून से ऊपर नहीं है. मैं दुनिया के नेताओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय, UNHumanRights से भी आग्रह करता हूं कि वे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर ध्यान दें. चुप्प रहना मानवाधिकारों के साथ धोखा है. हमारे 1971 के शहीदों का खून शांति की ज़मीन के लिए बहा था, न कि उत्पीड़न की ज़मीन के लिए. हम चुप नहीं रह सकते, और न ही रहेंगे.”
तस्लीमा नसरीन के दावे ने किया हैरान!
आपको बताएं कि बांग्लादेश के ढाका में सड़कों पर कट्टरपंथियों का कब्जा हो गया है. यहां एक झूठी ईशनिंदा के आरोप में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की मॉब लिंचिंग की गई. इसी बीच ये बड़ी जानकारी सामने आई है कि मारे जाने से पहले दीपू पुलिस की हिरासत में था. उस पर एक नहीं, दो-दो बार हमला हुआ, दूसरी बार उसकी पूरी तरह जान ले ली गई. भारत में निर्वासन में रह रहीं बांग्लादेश की प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन के दावे ने तो लोगों की नींद उड़ा दी है. नसरीन ने कहा कि दीपू के साथी एक मुस्लिम कर्मचारी ने अपनी निजी खुन्नस में उसके ऊपर पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी या ईशनिंदा का आरोप लगा दिया था. दीपू की शिकायतों पर पुलिस ने जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं की.
मुस्लिम सहकर्मी ने दीपू पर लगाया ईशनिंदा का आरोप!
आपको बता दें कि निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तसलीमा नसरीन ने शनिवार को दावा किया कि बांग्लादेश में भीड़ द्वारा मार दिए गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाया गया था. यह आरोप मैमनसिंह जिले की एक फैक्ट्री में काम करने वाले उसके एक मुस्लिम सहकर्मी ने लगाया था. तसलीमा नसरीन के अनुसार, यह भयावह घटना तब हुई जब दीपू पुलिस की सुरक्षा में था.
पुलिस सुरक्षा से कैसे निकला दीपू!
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर दीपू का एक वीडियो साझा करते हुए बताया, "दीपू चंद्र दास मैमनसिंह के भालुका में एक फैक्ट्री में काम करता था. वह एक गरीब मजदूर था. एक दिन किसी छोटी बात पर उसके मुस्लिम सहकर्मी ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. इसलिए भीड़ के बीच उसने घोषणा की कि दीपू ने पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की है. बस इतना ही काफी था." नसरीन ने लिखा कि इसके बाद उग्र भीड़ ने दीपू पर हमला कर दिया और उसे बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. बाद में पुलिस ने उसे भीड़ से बचाकर हिरासत में ले लिया, यानी वह पुलिस की सुरक्षा में था.
पुलिस की जिहादियों के प्रति सहानुभूति!
उनका कहना है कि दीपू ने पुलिस को पूरी घटना बताई और साफ कहा कि उसने पैगंबर के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी. उसने यह भी बताया कि यह सब उसके सहकर्मी की साजिश थी. तसलीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उस सहकर्मी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कहा, "पुलिस में से कई लोग जिहाद के प्रति सहानुभूति रखते हैं. क्या कट्टर सोच के कारण पुलिस ने दीपू को फिर से उग्र लोगों के हवाले कर दिया, या फिर कट्टरपंथियों ने थाने से उसे जबरन निकाल लिया? इसके बाद दीपू के साथ मारपीट की गई, उसे लटकाया गया और जला दिया गया.
परिवार का आखिरी सहारा था दीपू!
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उन्होंने यह भी कहा कि दीपू अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था. उसकी कमाई से उसके दिव्यांग पिता, मां, पत्नी और बच्चे का पालन-पोषण होता था. अब उसके परिवार का क्या होगा, यह बड़ा सवाल है. दोषियों को सजा कौन दिलाएगा और परिवार की मदद कौन करेगा? नसरीन ने दुख जताया कि दीपू के परिवार के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे भारत भागकर अपनी जान बचा सकें. गरीबों का कोई सहारा नहीं होता, उनके पास न देश बचता है और न ही सुरक्षा, यहां तक कि कोई धर्म भी नहीं बचता है.
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