मक्का, मखाना और मतदाता… दूसरे चरण में सीमांचल की 24 सीटें सबसे अहम, कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में सीमांचल सबसे अहम इलाका बनकर उभरा है. बांग्लादेश और बंगाल की सीमा से सटा यह क्षेत्र राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. केंद्र और राज्य सरकारों ने यहां एयरपोर्ट, वंदे भारत ट्रेन और सड़कों जैसी विकास योजनाओं से फोकस बढ़ाया है. इसके बावजूद पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज के लोग अब भी बाढ़, बेरोजगारी और पलायन की समस्या से जूझ रहे हैं.
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बिहार विधानसभा चुनाव अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है. कल यानी मंगलवार को राज्य में दूसरे चरण का मतदान होना है. इस चरण में सीमांचल (Seemanchal) का इलाका सबसे अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह वही जमीन है जो सरकार के गठन का रास्ता तय कर सकती है. सीमांचल, जो एक ओर बांग्लादेश और दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा है, राजनीतिक रूप से हमेशा से बेहद संवेदनशील और रणनीतिक महत्व रखता है. यही वजह है कि इस बार केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है.
दरअसल, हाल के वर्षों में सीमांचल के विकास के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं. पूर्णिया में एयरपोर्ट शुरू किया गया है, जहां से अब रोजाना पांच उड़ानों का संचालन हो रहा है. वंदे भारत और अमृत भारत जैसी ट्रेनों की सौगात ने इस इलाके को देश के अन्य हिस्सों से बेहतर जोड़ दिया है. सड़कों का जाल बिछाया गया है और औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहन दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद सीमांचल आज भी विकास की कई बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है.
सीमांचल से पलायन की कहानी
सीमांचल के चार जिले पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज बाढ़ प्रभावित इलाकों में आते हैं. यहां की जमीन उपजाऊ है, लेकिन बार-बार आने वाली बाढ़ लोगों की ज़िंदगी को कठिन बना देती है. करीब 80 फीसदी आबादी अब भी खेती और पशुपालन पर निर्भर है. मक्का और मखाना की खेती ने किसानों को आर्थिक सहारा दिया है, वहीं इथेनॉल प्लांट लगने से मक्के की मांग में भी इजाफा हुआ है. अगर मक्के पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय कर उसकी सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाए तो किसानों की आमदनी और बढ़ सकती है. हालांकि, खेती में खाद और बीज की कमी जैसी समस्याएं अभी भी किसानों को परेशान करती हैं. रोजगार के अवसरों की कमी के कारण बड़ी संख्या में युवा हर साल सीमांचल से पलायन कर जाते हैं. यही वजह है कि यहां के लोगों के लिए विकास का मुद्दा चुनावी बहस का सबसे बड़ा विषय बना हुआ है.
औद्योगिक उम्मीदें और सियासी समीकरण
पूर्णिया और कटिहार में कुछ औद्योगिक इकाइयां मौजूद हैं, लेकिन कुटीर उद्योगों को लेकर अब भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. सीमांचल के विकास की बात हर चुनाव में होती है, मगर अमल के स्तर पर बहुत कुछ बाकी है. राजनीतिक पार्टियां भले ही विकास के वादे करती हों, लेकिन मतदाता अच्छी तरह समझते हैं कि असली मुद्दे अब भी अधूरे हैं. सीमांचल की कुल 24 विधानसभा सीटें राज्य की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. पूर्णिया और कटिहार में सात-सात, अररिया में छह और किशनगंज में चार सीटें हैं. यहां एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि कुछ सीटों पर एआईएमआईएम और जनसुराज ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. धमदाहा, कटिहार सदर, सिकटी, कदवा और जोकीहाट जैसी सीटों पर मुकाबला बेहद कांटे का है.
पिछले चुनाव में रोचक था मुकाबला
2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की सीटें लगभग बराबर बंटी थीं. इस बार फिर वही तस्वीर बनती दिख रही है. कटिहार सदर से पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद मैदान में हैं, वहीं कदवा से जेडीयू के दुलाल चंद गोस्वामी कांग्रेस के शकील अहमद खान से टक्कर ले रहे हैं. जोकीहाट में आरजेडी के शाहनवाज आलम और जनसुराज के सरफराज आलम दो भाई आमने-सामने हैं.
सीमांचल में बदला सियासी मौसम
चुनाव से पहले सीमांचल का मिजाज बदला-बदला सा दिख रहा है. कुछ व्यापारियों का कहना है कि पहले मौसम कुछ था, अब मिजाज कुछ और है. इसके अलावा कटिहार के वोटर विजय ठाकुर ने कहा कि प्रत्याशियों से कुछ नाराजगी जरूर है, लेकिन दलों से कोई शिकायत नहीं. यह बयान इस बात का संकेत है कि सीमांचल का मतदाता पार्टी से ज्यादा अपने स्थानीय प्रतिनिधि के काम को लेकर फैसला करने के मूड में है.
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बताते चलें कि इस बार सीमांचल का हर इलाका सत्ता का केंद्र बनने की तैयारी में है. मतदाता यह बखूबी जानते हैं कि उनका वोट सिर्फ सरकार नहीं बल्कि विकास की दिशा तय करेगा. मंगलवार का मतदान यह साबित करेगा कि सीमांचल की जनता इस बार किस पर भरोसा जताती है.
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