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क्या घोटाला छिपाने के लिए कांग्रेस ने अपने ही नेता ललित नारायण मिश्रा की करवाई हत्या? निशिकांत दुबे ने शेयर किए दस्तावेज

मिथिला के सपूत ललित नारायण मिश्रा की मृत्यु हादसा थी या साजिश? बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने इस संबंध में सबूतों के साथ बड़ा दावा किया है. उन्होंने ललित बाबू की हत्या करवाने का आरोप कांग्रेस पर लगाया है. अगले दो महीने के अंदर होने वाले बिहार चुनाव में सत्ताधारी NDA इसको भुनाने का प्रयास बखूबी करेगा.

Created By: केशव झा
29 Sep, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
05:01 PM )
क्या घोटाला छिपाने के लिए कांग्रेस ने अपने ही नेता ललित नारायण मिश्रा की करवाई हत्या? निशिकांत दुबे ने शेयर किए दस्तावेज
Image: Nishikant Dubey / Lalit Narayan Mishra (File Photo)

इतिहास के पन्नों से निकाले गए दस्तावेजों, सबूतों और किस्सों का हवाला देकर सनसनीखेज खुलासे और दावे करने को लेकर मशहूर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक बार फिर अपने पोस्ट से हड़कंप मचा दिया है. दुबे ने इस बार कांग्रेस पर एक बड़े नेता की हत्या करवाने का गंभीर आरोप लगाया है. दरअसल गोड्डा सांसद ने पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की मौत को लेकर कांग्रेस को घेरा है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट करके पूछा कि क्या कांग्रेस पार्टी ने कमीशन खोरी छुपाने के लिए तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या करवाई?
 
क्या भ्रष्टाचार छिपाने के लिए हुई मिथिला के बेटे की हत्या?

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दावा किया कि आयात लाइसेंस मामले में भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ललित बाबू की हत्या करवाई गई. इस मामले में उन्होंने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार पर साजिश और हत्या जैसे संगीन जुर्म में संलिप्त होने का आरोप लगाया.

"घोर कलयुग"

अपने एक X पोस्ट के जरिए कांग्रेस पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने लिखा, "क्या कांग्रेस पार्टी ने अपनी कमीशन खोरी छुपाने के लिए तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या करवाई?" उन्होंने घटनाक्रम को छह बिंदुओं में बयान करते हुए इसे 'घोर कलयुग' करार दिया.

क्या था आयात-निर्यात लाइसेंस में भ्रष्टाचार का मामला?

उन्होंने आगे लिखा, "भारत सरकार ने 1972-73 में एक फर्जी आयात-निर्यात लाइसेंस जारी किया. ललित नारायण मिश्रा विदेश व्यापार मंत्री थे, पैसे का लेन-देन शुरू हुआ. उस वक्त 1 लाख 20 हजार महीना? संसद में हंगामा हुआ और 1973 में जांच शुरू हुई. ललित बाबू का मंत्रालय बदलकर रेल मंत्री बनाया गया. 1974 के सितंबर में सीबीआई ने चार्जशीट दायर की. आरोप यानी फर्जी कंपनी बनाकर लेन-देन हुआ और सिद्ध हुआ."

अटल बिहारी वाजपेनी ने उड़ाई थीं ललित नारायण कि धज्जियां!

भाजपा सांसद ने दावा किया, "दिसंबर 1974 को हमारे नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने ललित नारायण मिश्रा की धज्जियां उड़ाई तथा पैसे के लेनदेन के सबूत दिए. सीबीआई चार्जशीट के आधार पर विशेषाधिकार लाया गया. 3 जनवरी 1975 को क्या इसी भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ललित बाबू बम विस्फोट से उड़ा दिए गए? घोर कलयुग."

कांग्रेस पर खुलासे के लिए जाने जाते हैं निशिकांत दुबे!

यह पहली बार नहीं है, जब निशिकांत दुबे ने कांग्रेस और गांधी परिवार पर इस तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं. इससे पहले, वे कांग्रेस पर 8 लाख करोड़ की टैक्स छूट देकर गरीबों को लूटने और 'कॉरपोरेट दलाली' का आरोप लगा चुके हैं.

निशिकांत दुबे ने दावा किया था कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2004 से 2014 तक के कार्यकाल में बड़े व्यापारियों को 8 लाख करोड़ रुपए की टैक्स छूट देकर गरीबों से लूट की और अमीरों को मालामाल किया.

कैसे हुई थी ललित नारायण मिश्रा की हत्या?

निशिकांत दुबे ने आरोपों में कितनी सच्चाई है ये तो जांच हो तभी पता लगेगा, लेकिन आपको बता दें कि ललित नारायण मिश्रा को बिहार के बड़े नेताओं में गिना जाता था. एक कट्टर कांग्रेसी और जमीनी नेता के रूप में पहचाने जाने वाले मिश्रा की उस समय बड़ी लोकप्रियता थी, खासकर बिहार, मिथिला और पूर्वांचल के नेताओं में. उन्हें पीएम मैटेरियल तक कहा जाता था. उन्हें इंदिरा गांधी के कद का नेता माना जाता था और कहा जाता था कि अगर कांग्रेस में तब कोई ऐसा नेता था जो इंदिरा को टक्कर दे सकता था तो ललित बाबू थे.

साल 1975 में समस्तीपुर जिले के एक रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट में उनकी मृत्यु हो गई थी. करीब 39 साल बाद, दिसंबर 2014 में सीबीआई अदालत ने संतोषानंद, सुदेवानंद, रंजन द्विवेदी उर्फ राम जनम द्विवेदी और गोपालजी को मिश्रा की हत्या का दोषी पाया था. अब निशिकांत दुबे ने मिश्रा की हत्या के पीछे कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. हालांकि, सीबीआई कोर्ट ने पाया था कि आरोपियों ने आध्यात्मिक नेता प्रभात रंजन सरकार उर्फ आनंद मूर्ति को जेल से रिहा करने के लिए यह साजिश रची थी. बिहार चुनाव से पहले दुबे का खुलासा बड़ा रूप ले सकता है. मिथिला प्रक्षेत्र में ललित बाबू की की ख्याति को देखते हुए बीजेपी इस मुद्दे को भुनाना चाहेगी.

'मैं रहूं या न रहूं बिहार बढ़कर रहेगा.'

ललित नारायण मिश्रा को तब बिहार के सबसे बड़े नेताओं में गिना जाता था. उन्हें मिथिलांचल का सपूत भी कहा जाता था. वह 1973 से 1975 तक देश के रेल मंत्री रहे. उन्हें अपने कार्यकाल में मिलिथा और कोसी में रेल नेटवर्क के विस्तार और आवागमन के सुगम बनाने वाला नेता और प्रणेता भी कहा जाता है. आज उत्तर बिहार की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी LNMU यानी कि ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी उन्हीं के नाम पर है.

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5 जनवरी 1975 को आपातकाल से पहले समस्तीपुर में बम विस्फोट में उनकी असामयिक मृत्यु ने पूरे मिथिलांचल को शोक में डूबा दिया. ये धमाका स्टेशन परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान हुआ था. जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने अपने अंतिम संबोधन में कहा था, 'मैं रहूं या न रहूं बिहार बढ़कर रहेगा. मिथिला को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले ललित बाबू का जन्म मिथिलांचल के बलुआ गांव में हुआ था और ताहयात वो अपनी मिट्टी के लिए सक्रिय रहे थे.

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