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Bihar Election 2025: बिहार का ये चुनाव नीतीश कुमार और महिलाओं के कारण याद रखा जाएगा

Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव में नीतीश कुमार सबसे बड़े विजेता बनकर उभरे हैं. जनता ने उन्हें भावनात्मक विदाई देते हुए जेडीयू को अपार समर्थन दिया है, खासकर महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई. बीजेपी में टेंशन दिखी, लेकिन मोदी–योगी और अमित शाह की जोड़ी ने पार्टी को संभाले रखा. वहीं, महागठबंधन में आरजेडी और लेफ्ट मजबूत दिखे, जबकि कांग्रेस को पनौती कहा जा रहा है. सवर्ण वोटों में राजपूत एकजुट, भूमिहारों में सबसे ज्यादा बिखराव देखा गया.

07 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
04:08 PM )
Bihar Election 2025: बिहार का ये चुनाव नीतीश कुमार और महिलाओं के कारण याद रखा जाएगा
Bihar Election

बिहार में ये क्या हो गया? लोग अपने- अपने अनुसार आकलन करेंगे, लेकिन मुझसे कोई एक लाइन में पूछे तो  'राष्ट्रीय पार्टियों का बंटाधार, बिहारी पार्टियों को समर्थन अपार'  लिख कर रख लीजिए, नीतीश कुमार को बिहार की जनता आंखों में आंसू और अंचरा में वोट का खोईछा भर कर विदाई दे रही है. NDA में अगर कोई दल सबसे बड़ा विनर है तो वो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू है. खासकर महिलाओं ने जिस तरह वोटिंग की है, आने वाले समय में सभी दल अलग से महिलाओं को लेकर रणनीति बनाएंगे. 

BJP नेताओं की बढ़ी टेंशन 

बीजेपी नेताओं के चेहरों पर टेंशन दिख रहा था. उनका सबसे बड़ा स्ट्रेंथ हैं मोदी और योगी. कभी कभी लगता है कि अगर मोदी- योगी की जोड़ी और अमित शाह जैसा चुनाव लड़ाने वाला न होता तो बिहार बीजेपी के नेताओं का क्या होता. मोदी और नीतीश कुमार अगर तीन दशकों तक सत्ता के शीर्ष पर रहने के बावजूद अपनी- अपनी पार्टियों के सबसे बड़े वोट कैचर हैं तो नौजवान नेताओं के लिए ये सीखने का विषय है, गालियां देने का नहीं. ये चुनाव मोदी, योगी और कैंडिडेट्स की मेहनत के लिए भी जाना जाएगा. खासकर, योगी और अमित शाह बिहार के इस चुनाव में बहुत मेहनत कर रहे हैं.


अगर महागठबंधन की बात करें तो आरजेडी और लेफ्ट अगर गठबंधन की मजबूती हैं तो कांग्रेस पनौती. लालू यादव और तेजस्वी कांग्रेस को सिर्फ़ इसलिए अपने साथ रखे हुए हैं ताकि मुसलमान वोट नहीं बंटे, वरना राहुल गांधी की जो भूमिका है, उसमें तो आरजेडी इनकी बिहार एंट्री पर बैन लगा दे. सामाजिक रूप से बात करें तो सवर्णों में राजपूत लोग इस बार सबसे अधिक एकजुट हैं. ब्राह्मण थोड़ा प्रशांत किशोर, उससे कम राजद लेकिन अधिकांश NDA के साथ ही हैं. सवर्णों में सबसे ज्यादा हल्ला भूमिहार कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से सबसे अधिक बिखराव इस बार इसी समाज में है. इनमें भी ब्राह्मणों की तरह थोड़ा प्रशांत किशोर, उससे थोड़ा कम राजद लेकिन अधिकांश NDA के साथ हैं.

धानुक राजनीतिक पहचान के लिए बेचैन 

OBC समाज की बात करें तो यदुवंशी समाज हमेशा आरजेडी के साथ रहा है, लेकिन इस बार बहुत ज़्यादा एग्रेसिव है. कुर्मी हमेशा की तरह नीतीश कुमार के साथ तो कुशवाहा समाज बंटा हुआ. कुशवाहा इस बार पार्टी नहीं, कैंडिडेट देख रहा है. जहां हमारी जाति का कैंडिडेट, वहां हमारा वोट, फिर चाहे वो आरजेडी हो, जेडीयू हो या उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी. एक अन्य जाति जिसपर इस बार राजनीतिक पंडितों को स्टडी करना चाहिए, वो है धानुक समाज. ये समाज मुजफ्फरपुर, वैशाली, मोकामा आदि में अलग राजनीतिक पहचान के लिए बेचैन दिखा.

Narrative के उलट मल्लाह समाज मुकेश सहनी के साथ पूरी तरह एकजुट नहीं है. गौड़ा बौराम में मुकेश सहनी के भाई ने जैसे ही मैदान से हटने का ऐलान किया सहनी समाज का एक बड़ा हिस्सा NDA के साथ शिफ्ट हो गया, क्योंकि ये राजद के मुस्लिम उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे. OBC समाज की अन्य जातियां नीतीश कुमार और भाजपा के साथ हैं. इस बार लेफ्ट समर्थक दलित तो महागठबंधन के साथ हैं, लेकिन इनके बीच विकास योजनाओं की सबसे अधिक चर्चा है. खासकर दलित महिलाएं तो मोदी और नीतीश कुमार को लेकर भक्त बनी हुई हैं. 

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मुस्लिम समाज जहां था वहीं है, लेकिन इस बार उतना एग्रेसिव नहीं है. पहली बार, (एक सुखद बदलाव की तरह) मुसलमान मजहबी के साथ- साथ बुनियादी मुद्दों पर भी वोट कर रहा है. इसे आप प्रशांत किशोर इफेक्ट कह सकते हैं. वैसे सीमांचल का मुसलमान इस बार चार हिस्सों में बंटा है. महागठबंधन, ओवैसी की पार्टी, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार. अगर कोई ये सोचता है कि मुसलमान नीतीश कुमार को बिल्कुल वोट नहीं करेगा तो ये उसकी नासमझी है, अपनी बिहार यात्रा के दौरान मैं खुद ऐसे मुस्लिम से मिला हूं जो भीड़ में बोलने से बचते हैं पर अकेले में कहते हैं कि नीतीश कुमार अच्छा है, उसके राज में हम शांति और सुकून से हैं. खासकर मुस्लिम महिलाएं नीतीश बाबू के काम से संतुष्ट दिखीं.

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