बिहार विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग... जानें कौन से पांच फैक्टर बने बंपर मतदान की वजह
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों चरणों में बंपर वोटिंग से नया इतिहास बना दिया है. एनडीए, महागठबंधन और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के वादों ने मतदाताओं को खूब आकर्षित किया. यह चुनाव जहां दिग्गजों की अंतिम पारी माना जा रहा है, वहीं नई पीढ़ी के नेताओं के लिए नए अवसर लेकर आया. ध्रुवीकरण ने मुकाबले को और रोचक बना दिया.
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बिहार विधानसभा चुनाव का मतदान संपन्न हो चुका है. इस बार दोनों चरणों में मतदाताओं ने बंपर वोटिंग कर एक नया रिकॉर्ड बना दिया है. राज्य में कुल 66.99 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है, जो पिछले चुनावों की तुलना में अधिक है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस उच्च मतदान प्रतिशत के पीछे सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के वादों का बड़ा प्रभाव रहा है. वहीं, चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने भी युवाओं को अपने भविष्य का एजेंडा दिखाकर मतदान के लिए खासा जागरूक किया.
इस बार का चुनाव कई दिग्गज नेताओं के लिए राजनीतिक करियर की अंतिम पारी जैसा माना जा रहा है, जबकि नई पीढ़ी के नेताओं के लिए यह नए अवसरों का द्वार खोलता नजर आ रहा है. ऐसे में दोनों पीढ़ियों के नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी. वहीं, चुनाव के दौरान पक्ष और विपक्ष के बीच ध्रुवीकरण ने भी इस मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया. आइए अब आपको पांच उन फ़ैक्टर के बारे में बताते हैं जिसके चलते बिहार में बंपर मतदान हुआ.
जनसुराज ने बदला चुनावी एजेंडा
जनसुराज पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में एक मजबूत पृष्ठभूमि तैयार करते हुए चुनावी बहस को नए मोड़ पर ला खड़ा किया. पार्टी ने युवाओं, रोजगार, पलायन, शिक्षा व्यवस्था में सुधार और बच्चों के उज्जवल भविष्य जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा. प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जनसुराज ने बार-बार शिक्षा की गुणवत्ता और युवाओं के अवसरों पर अपनी बात लोगों के सामने रखी और अपील की कि वोट विकास और भविष्य के नाम पर दिया जाए. इस संदेश ने धीरे-धीरे जनमानस में गहरी पकड़ बना ली. पार्टी के इस नए नैरेटिव ने अन्य दलों को भी अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। यहां तक कि वाम दलों ने भी इन जनसरोकार वाले मुद्दों को लेकर सक्रियता बढ़ाई. इसके बाद रोजगार, नौकरी और पलायन जैसे विषय चुनावी चर्चाओं के केंद्र में आ गए, जिनका सीधा असर मतदाताओं के रुझान पर दिखाई दिया.
विपक्ष की घोषणाओं ने खींचा जनता का ध्यान
राज्य सरकार की घोषणाओं के बीच विपक्षी महागठबंधन ने भी अपनी सक्रियता दिखाते हुए जनता को कई बड़े वादे किए. विपक्ष ने हर घर से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने और महिलाओं के खातों में 30 हजार रुपये की आर्थिक सहायता भेजने का ऐलान किया, जिसने मतदाताओं के बीच गहरी पैठ बनाई. इसके साथ ही विपक्ष ने अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही और आश्वासन दिया कि अपराधियों को जल्द जेल भेजा जाएगा. इन घोषणाओं के जरिए विपक्ष ने खुद को एक मजबूत और निर्णायक विकल्प के रूप में पेश किया. जनता के बीच इन वादों का प्रभाव देखा गया, खासकर बेरोजगार युवाओं और महिलाओं में, जिन्होंने विपक्ष की घोषणाओं को एक बेहतर बदलाव की उम्मीद के रूप में देखा.
सरकारी योजनाओं ने बढ़ाई सहूलियतें
इस बार के चुनाव में राज्य सरकार ने जनता को लुभाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की. इनमें न केवल वादे किए गए, बल्कि कई योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंचाया भी गया. सरकार ने 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने और महिला रोजगार योजना के तहत हर महिला को 10 हजार रुपये की सहायता राशि प्रदान करने का निर्णय लिया. दिलचस्प बात यह रही कि इस योजना के तहत भुगतान समय पर शुरू हुआ और अब तक डेढ़ करोड़ से अधिक महिलाओं को इसका लाभ मिल चुका है. इसके अलावा, जिन्होंने योजना के तहत बेहतर कार्य किया है, उन्हें दो लाख रुपये तक का अतिरिक्त प्रोत्साहन देने का प्रावधान किया गया है. इन योजनाओं ने न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी, बल्कि उनमें आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की नई लहर भी पैदा की. ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने इस चुनाव में एक सकारात्मक सामाजिक बदलाव की झलक दिखाई.
चुनाव में दिखा जबरदस्त ध्रुवीकरण
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण एक बड़ा कारक बनकर उभरा. सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों ही ओर से मतदाताओं को अपने पक्ष में साधने की जोरदार कोशिश हुई, जिससे पूरा चुनाव लगभग दो स्पष्ट ध्रुवों में बंटा नजर आया. इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में जनसुराज पार्टी और एआईएमआईएम ने भी अपने प्रभाव के जरिए स्थानीय स्तर पर ध्रुवीकरण को और तेज किया. सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर मतदाताओं के बीच राय बनाने की इस प्रक्रिया ने पूरे चुनावी माहौल को और अधिक गर्म कर दिया. ध्रुवीकरण का असर मतदान प्रतिशत पर भी साफ देखा गया. एक ओर जहां समर्थक समूहों में जबरदस्त जोश दिखा, वहीं दूसरी ओर इसका जवाब देने के लिए विपरीत ध्रुव के मतदाता भी बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचे. परिणामस्वरूप, इस बार का चुनाव उत्साह, प्रतिस्पर्धा और वैचारिक टकराव तीनों का संगम बन गया.
सियासी पारी का आखिरी दौर
इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव कई वरिष्ठ नेताओं के लिए राजनीतिक सफर की अंतिम पारी साबित हो सकता है. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और दिवंगत रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत से जुड़े कई दिग्गज इस चुनाव में शायद आखिरी बार मैदान में उतरे. कुछ के टिकट कट गए, तो कुछ ने बागी तेवर अपनाते हुए अलग दलों से किस्मत आजमाने का फैसला किया. ऐसे में इन नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और भावनात्मक अपीलों के जरिए जनता से जुड़ने की कोशिश की. उनके समर्थक भी इस बार खुलकर मैदान में उतरे. कई जगहों पर अपने नेता के सम्मान और आखिरी चुनाव की भावना ने मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक खींच लाया. यह चुनाव जहां नई पीढ़ी के नेताओं के लिए राजनीति में प्रवेश का द्वार बना, वहीं पुरानी पीढ़ी के लिए यह अपने राजनीतिक योगदान का अंतिम अध्याय लिखने जैसा रहा.
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बताते चलें कि बिहार विधानसभा चुनाव इस बार कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. रिकॉर्ड मतदान, नए मुद्दों की चर्चा, पुरानी और नई पीढ़ी के नेताओं का संघर्ष सबने मिलकर इसे एक जीवंत लोकतांत्रिक पर्व बना दिया. जनता ने अपने वोट से न केवल सरकार चुनने का अधिकार निभाया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि बिहार बदलते दौर में नए सोच और नए नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है.
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