SIR विवाद पर चुनाव आयोग का बड़ा बयान… सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा, जानें क्या रखा पक्ष
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि बिहार में किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना सूचना, सुनवाई और तर्कपूर्ण आदेश के सूची से नहीं हटेगा. SIR का पहला चरण पूरा हो चुका है और 1 अगस्त को प्रारूप मतदाता सूची जारी की गई। मामला 13 अगस्त को फिर सुना जाएगा.
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बिहार में मतदाता सूची से जुड़े एक अहम मुद्दे पर इन दिनों राजनीति और कानूनी गलियारे दोनों में हलचल है. मामला है विशेष गहन पुनरीक्षण यानी Special Intensive Revision (SIR) का, जिसके तहत राज्य भर में मतदाता सूची को अपडेट किया जा रहा है. इस बीच चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए साफ कहा है कि बिहार में किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना पूर्व सूचना, सुनवाई का मौका और तर्कपूर्ण आदेश के मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा.
कोर्ट में दाख़िल किए गए हलफनामें में आयोग ने भरोसा दिलाया है कि हर योग्य मतदाता का नाम अंतिम मतदाता सूची में दर्ज कराने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं. साथ ही, राज्य में चल रहे SIR के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ी या गलत तरीके से नाम हटाए जाने की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त निर्देश जारी किए गए हैं.
ADR के आरोप और सुप्रीम कोर्ट की पहल
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एसोसिएशन (ADR) ने आरोप लगाया कि बिहार में SIR प्रक्रिया के दौरान 65 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम गलत तरीके से सूची से हटा दिए गए हैं. इस पर 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.अब यह मामला 13 अगस्त को फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा. इससे पहले आयोग ने अपना रुख साफ करते हुए विस्तृत हलफनामा पेश किया है, जिसमें पूरी प्रक्रिया, उठाए गए कदम और अब तक हुई प्रगति की जानकारी दी गई है.
SIR का पहला चरण पूरा
चुनाव आयोग के हलफनामे के मुताबिक SIR का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है. 1 अगस्त 2025 को प्रारूप मतदाता सूची प्रकाशित की गई है. यह सूची बूथ स्तर अधिकारियों (BLOs) द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी और फॉर्म इकट्ठा करने के बाद तैयार की गई है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार के 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने अपने नाम की पुष्टि की है या आवश्यक फॉर्म जमा किए हैं.
विशाल पैमाने पर जुटी टीम
इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए चुनाव आयोग ने एक अभूतपूर्व टीम तैयार की. इसमें बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, 38 जिला निर्वाचन पदाधिकारी, 243 निर्वाचन पंजीकरण पदाधिकारी, 77,895 बूथ स्तर अधिकारी, 2.45 लाख स्वयंसेवक और 1.60 लाख बूथ स्तर एजेंट शामिल रहे. राजनीतिक दलों को समय-समय पर उन मतदाताओं की सूची उपलब्ध कराई गई जिनके नाम छूट गए थे, ताकि समय रहते उन्हें जोड़ा जा सके.
प्रवासी और वंचित मतदाताओं के लिए विशेष इंतजाम
प्रवासी मजदूरों तक जानकारी पहुंचाने के लिए 246 अखबारों में हिंदी में विज्ञापन प्रकाशित किए गए. मतदाताओं के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों माध्यमों से फॉर्म भरने की सुविधा दी गई. शहरी निकायों में विशेष कैंप लगाए गए, युवाओं के पंजीकरण के लिए अग्रिम आवेदन की व्यवस्था की गई. वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों और कमजोर वर्गों की मदद के लिए 2.5 लाख स्वयंसेवकों को तैनात किया गया.
नाम हटाने की प्रक्रिया पर सख्त नियम
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि प्रारूप सूची से किसी भी मतदाता का नाम हटाने से पहले तीन जरूरी कदम अनिवार्य हैं.
- पूर्व सूचना देना
- सुनवाई का अवसर प्रदान करना
- कारणयुक्त आदेश जारी करना, जिसे सक्षम अधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाए.
- यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना ठोस कारण के सूची से न हटाया जाए.
आपत्तियों और दावों के लिए समय
1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक का समय दावे और आपत्तियां दर्ज करने के लिए निर्धारित किया गया है. इसके लिए ऑनलाइन और प्रिंट, दोनों माध्यमों से फॉर्म उपलब्ध हैं. इस दौरान हर कोई अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है या नाम जुड़वाने के लिए दावा कर सकता है. आयोग का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए रोजाना प्रेस विज्ञप्ति जारी की जा रही है. इसका उद्देश्य जनता को समय पर जानकारी देना और अफवाहों पर रोक लगाना है.
क्यों है यह मामला अहम
बता दें कि मतदाता सूची किसी भी लोकतांत्रिक चुनाव की रीढ़ होती है. अगर पात्र मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए जाते हैं, तो यह न केवल व्यक्तिगत अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को भी कमजोर करता है. बिहार जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में मतदाता सूची की शुद्धता और निष्पक्षता बेहद जरूरी है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले पर बारीकी से नजर रख रहा है.
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बताते चलें कि अब 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी. अदालत आयोग के हलफनामे, पेश किए गए आंकड़ों और उठाए गए कदमों की समीक्षा करेगी. देखना यह होगा कि क्या कोर्ट आयोग की इस कार्ययोजना से संतुष्ट होता है या फिर और सख्त निर्देश जारी करता है. बिहार का SIR मामला सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह इस बात की परीक्षा है कि लोकतंत्र में हर नागरिक का वोट देने का अधिकार कितना सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से संरक्षित किया जा सकता है. चुनाव आयोग का दावा है कि उसने सभी पात्र मतदाताओं के नाम अंतिम सूची में दर्ज कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अगले फैसले पर हैं, जो इस प्रक्रिया की दिशा और भविष्य दोनों तय करेगा.
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