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ओवैसी ही नहीं PK भी बिगाड़ेंगे तेजस्वी का खेल! चौतरफा लड़ाई में फंसे मुसलमान… सीमांचल में किसकी नैया लगाएंगे पार?

Bihar Election: कहा जाता है सीमांचल की 24 सीटों पर पार्टियों की स्थिति सत्ता की दशा और दिशा तय करती है. सीमांचल में BJP-JDU गठबंधन अपनी पुरानी जीत को बचाने की जुगत में है तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव अपने MY फॉर्मूले को फिर भुनाने उतरी है. पिछली बार RJD को ओवैसी से शिकस्त मिली थी तो इस बार टक्कर और भी चुनौतीपूर्ण हो गई. क्योंकि प्रशांत किशोर भी मैदान में है.

ओवैसी ही नहीं PK भी बिगाड़ेंगे तेजस्वी का खेल! चौतरफा लड़ाई में फंसे मुसलमान… सीमांचल में किसकी नैया लगाएंगे पार?

Bihar Election: किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया. बिहार के वो चार जिले जिसे लोग सीमांचल कहते हैं. माना जाता है जिसने सीमांचल फतेह कर लिया वो ही बिहार की सत्ता की कुर्सी पर काबिज होगा. इसलिए दूसरे चरण में सबकी निगाहें सीमांचल पर टिकी हुई हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र ने सत्ता बनाने में बड़ा रोल निभाया था. 

बिहार के इन 4 जिलों की 24 सीटों पर मुसलमान वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं. साल 2020 में महागठबंधन को ओवैसी की पार्टी AIMIM ने इस क्षेत्र से टक्कर दी. माना जाता है उस वक्त AIMIM बीच में न आती तो तेजस्वी बिहार के मुख्यमंत्री होते. ओवैसी की पार्टी ने यहां शानदार प्रदर्शन किया और RJD का खेल बिगाड़ दिया. ऐसे में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिहाज से भी सीमांचल काफी अहम हो जाता है. 

सीमांचल में बाहरी Vs लोकल का मुद्दा 

सीमांचल में तस्वीर इस बार बदल सकती है क्योंकि यहां वोटों के बिखराव की संभावना बनने लगी है और ‘लोकल Vs बाहरी’ का मुद्दा गर्माने लगा है. यहां मुस्लिमों की दो प्रमुख बिरादरी शेरशाहवादी और सुरजापुरी वोटों के बिखराव की कहानी बयां कर रही हैं. 

सीमांचल में कितनी है मुस्लिम आबादी? 

सीमांचल के चार जिलों में लगभग 43% से 45% मुस्लिम हैं. इनमें सुरजापुरी मुसलमानों की संख्या लगभग 24 लाख है जबकि शेरशाहवादी आबादी लगभग 14 लाख है. स्थानीय मुसलमानों में सुरजापुरी और कुल्हैया समुदाय मुख्य रूप से हैं. इनके आपसी अदावत किसी भी दल का खेल बिगाड़ सकती है. किशनगंज की सभी चार सीटों, पूर्णिया की दो सीटों, कटिहार की एक सीट पर सुरजापुरी मुसलमान निर्णायक भूमिका में होते हैं.  

वहीं, अररिया की जोकीहाट और सदर सीट पर कुल्हैया मुसलमानों का प्रभाव है. साल 2020 के नतीजों पर नजर डालें तो सीमांचल की 11 सीटों पर मुस्लिम विधायकों ने जीत दर्ज की थी. इनमें से 6 सुरजापुरी थे. यानी इस बार लड़ाई सिर्फ NDA Vs महागठबंधन की नहीं बल्कि लोकल-बाहरी, विकास, पहचान और रोजगार के मुद्दों की भी है. 

किस जिले में कितनी विधानसभा सीट? 

  • सीमांचल में कुल चार जिले की 24 सीटे हैं
  • पूर्णिया में 7 विधानसभा सीट हैं
  • कटिहार में भी 7 विधानसभा सीटें हैं
  • अररिया में 6 विधानसभा सीट हैं
  • किशनगंज जिले में 4 विधानसभा सीट शामिल हैं


ओवैशी ही नहीं पीके भी बिगाड़ेंगे तेजस्वी का MY समीकरण!

सीमांचल में BJP-JDU गठबंधन अपनी पुरानी जीत को बचाने की जुगत में है तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव अपने MY फॉर्मूले को फिर भुनाने उतरी है. पिछली बार RJD को असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi)) से शिकस्त मिली थी तो इस बार टक्कर और भी चुनौतीपूर्ण हो गई. क्योंकि प्रशांत किशोर की जन सुराज भी मैदान में है. पीके मुस्लिम वोटों में सेंध लगाकर महागठबंधन के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. 

वहीं, नीतीश कुमार का भी सीमांचल में अच्छा खासा जनाधार है क्योंकि माना जाता है मुस्लिम वोटर्स का झुकाव उनकी ओर है. नीतीश कुमार कई बार अपने भाषणों में कह चुके हैं कि बिहार में धर्म की कोई लड़ाई नहीं है सब ठीक है. इससे मुस्लिमों केे बीच सकारात्मक संदेेश गया. 

सीमांचल की सीटों पर साल 2020 का रिजल्ट क्या था? 

साल 2020 के नतीजों पर नजर डालें सीमांचल की 24 सीटों में से NDA को 12, महागठबंधन 7 और AIMIM ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में AIMIM के 4 विधायक भी RJD में शामिल हो गए थे. मुस्लिम वोटों के बिखराव और मैदान में नए खिलाड़ियों के उतरने के बाद दूसरे चरण की इन 24 सीटों पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. इन सीटों पर वोट प्रतिशत भी मायने रखता है. 

सीमांचल में दांव पर दिग्गजों की साख

सामाजिक रूप से विविधता और भौगोलिक रूप से संवेदनशील सीमांचल की निर्णायक लड़ाई जीतने के लिए दिग्गज मैदान में हैं. कटिहार सदर से जहां BJP के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद फिर उतरे हैं तो वहीं, जनसुराज भी दम भर रही है. पूर्णिया में पप्पू यादव का भी अच्छा खासा जनाधार है. किशनगंज में RJD-कांग्रेस के बीच फिर तगड़ा मुकाबला होगा. उधर अररिया में कांग्रेस की साख दांव पर है. 

सीमांचल में पलायन बड़ा मुद्दा

सीमांचल कई सालों से लोगों का पलायन बड़ी समस्या है और इसकी मुख्य वजह शिक्षा और रोजगार का अभाव है. यहां रोजी-रोटी के मौके कम हैं, बाढ़ के हालात भी पलायन का कारण हैं. यहां से हर साल हजारों लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली से लेकर गुजरात तक पलायन करते हैं. वहीं, उपज के लिए भी पर्याप्त खरीदार नहीं हैं. 

हाल ही के कुछ वर्षों में पूर्णिया एयरपोर्ट, एनएच-131ए और रेल कनेक्टिविटी जैसी परियोजनाओं से पलायन को रोकने के लिए बड़ा कदम माना जा रहा है. हालांकि लोगों की मुख्य समस्या का इलाज शिक्षा और रोजगार के बाद ही होगा. ऐसे में देखना होगा सीमांचल की बयान किस ओर बहेगी. 14 नवंबर को नतीजों के साथ इस सवाल से भी प्रश्नवाचक चिन्ह हट जाएगा.

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