बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन का कुनबा बढ़ा... दो और पार्टियां हुईं शामिल, अब सीट बंटवारे में किसकी दावेदारी होगी भारी या कौन देगा कुर्बानी?
तेजस्वी यादव की बैठक में फैसला हुआ कि महागठबंधन में अब RLJP (पशुपति पारस) और JMM (हेमंत सोरेन) भी शामिल होंगे. इस तरह अब 243 सीटों का बंटवारा 8 दलों में होगा. नेताओं का कहना है कि 15 सितंबर तक फार्मूला तय हो जाएगा, लेकिन जानकारों के मुताबिक सभी दलों की महत्वाकांक्षाओं के कारण सहमति बनाना आसान नहीं होगा.
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बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही सत्ता की जंग और तेज हो गई है. सियासी गलियारों में सबसे बड़ा मुद्दा इस समय सीट बंटवारे का है. चाहे NDA हो या फिर महागठबंधन, दोनों ही खेमों में अपने-अपने दलों के बीच सहमति बनाना आसान नहीं दिख रहा है. बयानबाजी, दबाव और समझौते की इस राजनीति ने माहौल को और गरमा दिया है.
दोनों गठबंधनों में सीटों को लेकर खींचतान
सत्ताधारी गठबंधन NDA खेमे में चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता अधिक सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं. हर कोई चाहता है कि गठबंधन में उसकी हिस्सेदारी बड़ी हो. यही वजह है कि NDA की रणनीति में सीट बंटवारा सबसे पेचीदा मुद्दा बन गया है. दूसरी ओर महागठबंधन की स्थिति भी बहुत अलग नहीं है. अभी तक इसमें RJD, कांग्रेस, माले, CPI, CPM और VIP शामिल थे. लेकिन ताजा फैसले के तहत इसमें JMM (हेमंत सोरेन की पार्टी) और RLJP (पशुपति कुमार पारस गुट) भी जुड़ गए हैं. अब 243 सीटों का बंटवारा 8 दलों के बीच करना होगा.
महागठबंधन हुई बैठक
तेजस्वी यादव की अगुवाई में हुई बैठक में नेताओं ने दावा किया कि सीट शेयरिंग पर सकारात्मक बातचीत जारी है. मुकेश सहनी ने तो यहां तक कहा कि 15 सितंबर तक सीटों का फार्मूला सामने आ जाएगा. मगर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि हर दल की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. महागठबंधन में पशुपति कुमार पारस को शामिल करने के पीछे साफ रणनीति है. पारस खगड़िया के अलौली से लंबे समय तक विधायक रहे हैं और पासवान परिवार से आते हैं. महागठबंधन की कोशिश है कि उन्हें कुछ सीटें देकर पासवान वोट बैंक में सेंध लगाई जाए. हाजीपुर और खगड़िया जैसे इलाकों में पारस और उनके बेटे को उम्मीदवार बनाकर LJP (रामविलास) के वोट बैंक को कमजोर करने की योजना है.
JMM को सीट देना लाजिमी
झारखंड की सरकार में कांग्रेस और RJD पहले से ही हेमंत सोरेन सरकार का हिस्सा हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव पर दबाव है कि बिहार में JMM को भी कुछ सीटें दी जाएं. संभावना है कि बांका, मुंगेर और भागलपुर जैसे इलाके, जो झारखंड से सटे हैं, वहां JMM को कुछ सीट देकर गठबंधन एडजस्ट किया जा सकता है.
त्याग की अपील
बैठक के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि सभी दलों को सीटों का त्याग करना होगा, ताकि नए सहयोगियों को समायोजित किया जा सके. लेकिन यह काम आसान नहीं है. पिछली बार जिन दलों ने अच्छा प्रदर्शन किया था, वे अब और ज्यादा सीटें मांग रहे हैं. हालाँकि कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह इस बार 70 सीटों पर नहीं, बल्कि लगभग 60 सीटों पर मान सकती है, बशर्ते उसे जिताऊ सीटें दी जाएं. यह भी एक बड़ी कड़ी होगी, क्योंकि कांग्रेस बिहार में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है.
पिछली बार का प्रदर्शन
- RJD ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 पर जीत दर्ज की.
- कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 जीती.
- माले ने 19 पर चुनाव लड़ा और 12 सीटें जीतीं.
- CPI ने 6 सीटों में 2 जीतीं.
- CPM ने 4 सीटों में 2 जीतीं.
इस बार इन दलों का स्ट्राइक रेट उनकी मांगों का आधार बन गया है. माले और CPI(M) जैसे छोटे दल भी अब ज्यादा सीटों की उम्मीद कर रहे हैं.
मुकेश सहनी की सबसे बड़ी मांग
महागठबंधन में सबसे पेचीदा स्थिति VIP प्रमुख मुकेश सहनी की है. वे न केवल 50 सीटें, बल्कि उपमुख्यमंत्री पद की भी मांग कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया है, वैसे ही उन्हें भी उपमुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए. पिछली बार सहनी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 4 जीते थे, लेकिन इस बार वे अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. तेजस्वी यादव के लिए सहनी को मनाना बेहद कठिन चुनौती है. माना जा रहा है कि VIP को 20-25 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन इस पर भी बाकी दलों की आपत्ति है.
गठबंधन की मजबूरी
हाल ही में हुई वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी ने मुकेश सहनी और माले के दीपांकर भट्टाचार्य को मंच पर साथ रखकर एकजुटता का संदेश दिया था. लेकिन असली चुनौती सीट बंटवारे की टेबल पर होती है, जहां हर सीट पर दावेदारी होती है और सहमति बनाना बेहद मुश्किल.
बताते चलें कि बिहार की राजनीति हमेशा समीकरणों और गठबंधनों के सहारे आगे बढ़ती है. इस बार भी महागठबंधन और NDA दोनों को आंतरिक खींचतान का सामना करना पड़ रहा है. NDA में छोटे दल ज्यादा सीटों के लिए अड़े हैं, जबकि महागठबंधन में नए सहयोगियों के आने से समीकरण और उलझ गए हैं.
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ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने चुनौती है कि वे मुकेश सहनी, पारस और JMM को कैसे एडजस्ट करते हैं. वहीं NDA को भी चिराग पासवान और अन्य सहयोगियों की महत्वाकांक्षाओं को साधना होगा. साफ है कि बिहार चुनाव में सीट बंटवारा ही असली राजनीति है. अगर इसमें संतुलन नहीं बैठा तो गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठना तय है.
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