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हीरो बनने आए थे Amrish Puri लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि बन गए Bollywood के सबसे महंगे खलनायक।

इस वीडियो में हम आपको हिंदी सिनेमा जगत में गुजरे इसी लिजेंड अभिनेता की कहानी बताने वाले हैं । आपको बताएँगे कि अमरीश पुरी का हिंदी सिनेमा में कैसे आना हुआ । हीरो बनने आए अमरीश पुरी आख़िर विलेन कैसे बन गए । बॉलीवुड में सबसे बड़ा खलनायक इन्हें क्यों कहते हैं । और फ़िल्मों के हीरों इनसे असुरक्षित महसूस क्यों करते थे ।
हीरो बनने आए थे Amrish Puri लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि बन गए Bollywood के सबसे महंगे खलनायक।
 बॉलीवुड में अभिनेता तो बहुत हैं, लेकिन कुछ ही अभिनेता ऐसे है कि जब उनकी एंट्री बड़े पर्दे पर होती है तो उनका किरदार बोलता है । किरदार चाहे कुछ भी हो, वो उसमें इतना ढल जाते हैं, कि लोग उनको उनके किरदार और संवाद से याद करने लगते हैं । और यही एक कलाकार की असल सफलता होती है कि लोग उन्हें नाम से नहीं बल्कि उनके किरदार से याद करें । फ़िल्म मिस्टर इंडिया में अमरीश पूरी का किरदार मोगैंबो और उनका एक डायलॉग ‘मोगैंबो खुश हुआ ।’, आज भी हमारे ज़ेहन में ज़िंदा है । इसी तरह से ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे’ फ़िल्म में अमरीश पूरी द्वारा निभाया गया किरदार और उनका एक डायलॉग ‘जा सिमरन जा जी ले अपनी ज़िंदगी ।’ इस डायलॉग ने भी हिंदी सिनेमा में खूब सुर्खियां बटोरी और आज भी इस डायलॉग को बोलकर लोग इसका मज़ा लेते हैं ।

वैसे आपको एक और बात बता दें कि हिंदी सिनेमा हमेशा से हीरो के इर्द-गिर्द ही घुमता है । और दर्शकों की सारी तालियाँ फ़िल्म का हीरो ही बटोरता है । लेकिन हिंदी सिनेमा में कुछ ऐसे सुपर विलेन गुजरे हैं, जो हिरो पर भारी पड़ते थे । और जब भी नायक उनके साथ कोई सीन शेयर करता था तो उन्हें इनसिक्योरिटी रहती थी । क्योंकि एक खलनायक होने के बाद भी वे दर्शकों के दिमाग़ पर छा जाते थे । और दर्शक उनके किरदार को याद रखते थे । उन्हीं खलनायकों में एक का नाम है अमरीश पूरी साहब का। जी हां, अमरीश पूरी वैसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं है ।

अमरिश पूरी एक ऐसे अभिनेता थे जो हर किरदार में फ़िट हो जाया करते थे । बात चाहें सुपर विलेन मोगैंबो के किरदार की हो या फिर दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे । फ़िल्म में एक पिता के किरदार को निभाने की हो । इसके अलावा जितनी भी फ़िल्मों में उन्होंने काम किया है असल में उन किरदारों को जिया है. इस वीडियो में हम आपको हिंदी सिनेमा जगत में गुजरे इसी लिजेंड अभिनेता की कहानी बताने वाले हैं । 

सबसे पहले तो आपको बता दें कि अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के नवांशहर में हुआ था, उनके चार भाई-बहन थे चमन पुरी, मदन पुरी, हरीश पुरी और एक बड़ी बहन चंद्रकांता । अमरीश पुरी की शुरूआती पढ़ाई-लिखाई पंजाब में ही हुई थी । उसके बाद वो शिमला चले गए. कॉलेज में पढ़ाई लिखाई के दौरान ही उन्होंने एक्टिंग में कदम रखा था । उन्हें नाटकों में बहुत दिलचस्पी थी. साल 1954 की बात है, अमरीश पुरी जब 22 साल के थे, तो उन्होंने हीरो के रोल के लिए एक ऑडिशन दिया था । लेकिन प्रोड्यूसर ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि उनका चेहरा बड़ा ही पथरीला सा है ।

खैर, एक दिन की बात है अमरीश पुरी की मुलाक़ात पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से हो गई । बस उसी दिन से उनकी क़िस्मत बदल गई । नेशनल स्कूल ऑफ ड्राम के निदेशक के रूप में हिंदी रंगमंच को ज़िंदा करने वाले अल्काजी साहब 1961 में उन्हें थियेटर की दुनिया में ले आए । अमरीश पुरी अब थियेटर करने लगे और फिर देखते ही देखते वो रंगमंच के विख्यात कलाकार बन गए । एक समय ऐसा भी था जब उनके नाटकों को अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत देखा करती थीं । 1960 में अमरीश पुरी साहब ने रंगमंच की दुनिया में कदम रखा था । साल 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ़ से अमरीश पुरी साहब को पुरस्कार दिया गया था, जो अभिनय की दुनिया में उनका पहला बड़ा पुरस्कार था । अमरीश पुरी थियेटर तो कर ही रहे थे लेकिन इसके साथ ही वे राज्य बीमा निगम में सरकारी कर्मचारी के तौर पर कार्यरत भी थे ।

वैसे तो अमरीश पुरी नौकरी छोड़ देना चाहते थे । लेकिन उन्हें कहा गया कि जब तक फ़िल्मों में कोई अच्छा रोल नहीं मिलता तब तक वे ऐसा न करें । आख़िरकार एक दिन एक नाटक के दौरान डायरेक्टर सुखदेव की नज़र उन पर पड़ गई । उसके बाद साल 1971 में उन्होंने अपनी फ़िल्म रेशमा और शेरा में एक मुस्लिम किरदार के लिए उन्हें कास्ट कर लिया । हालाँकि, इससे पहले भी अमरीश पुरी ने फ़िल्म ‘प्रेम पुजारी’ में एक छोटा सा किरदार निभाया था । लेकिन तब तक उनको कुछ ख़ास पहचान नहीं मिली थी । साल 1987 में उनके करियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। दरअसल, डायरेक्टर शेखर कपूर बच्चों को केंद्र में रखकर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे । जो ‘इनविजबल मैन’ के ऊपर आधारित हो। इसके लिए उन्हें एक ऐसे खलनायक की तलाश थी जो पर्दे पर बहुत ही बुरा दिखा । और उसकी आवाज़ में भी खलनायक वाली बात हो । ये सारी खूबी एक ही अभिनेता में थी और वो थे अमरीश पुरी । इसलिए फ़िल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में खलनायक के किरदार के लिए अमरीश पुरी को चुना गया । और इस फ़िल्म में मोगैंबो के किरदार और ‘मोगैंबो खुश हुआ’ डायलॉग ने उन्हें अमर बना दिया ।

इस फ़िल्म के बाद अमरीश पुरी की क़िस्मत ही बदल गई । और वे बालीवुड में एक सुपर विलेन के तौर पर प्रसिद्ध हो गए । उसके बाद फ़िल्म अजूबा में ‘शैतान ज़िंदाबाद’ बोलने वाले वज़ीर-ए-आला का किरदार हो, या फ़िल्म तहलका में ‘डॉन्ग कभी रॉन्ग’ नहीं होता बोलने वाले खलनायक डॉन्ग का किरदार हो, या फिर फ़िल्म ग़दर में अशरफ़ अली का किरदार हो । इन सारे किरदारों ने अमरीश पुरी को एक खुंखार खलनायक के तौर पर अमर कर दिया । अमरीश पुरी ने अपने 30 साल से भी ज़्यादा करियर में लगभग 450 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया । और इस तरह से वे बॉलीवुड में वे सबसे मंहगे और एक खुंखार विलेन बन गए । अमरीश पुरी की बिजली की तरह कड़कती आवाज़ के सामने नायकों का किरदार भी दब जाता था ।

इसलिए फ़िल्मों के हीरो उनके साथ पर्दे पर एक्टिंग करने से भी कतराते थे । हालाँकि, पर्दे पर अमरीश पुरी जितने खुंखार दिखते थे, असल ज़िंदगी में वे उतने ही सरल स्वाभाव के और शर्मीले व्यक्ति थे । लंबे समय तक हिंदी सिनेमा में अमरीश पुरी ने एक खलनायक के तौर लोगों के दिलों पर राज किया । लेकिन कहते है न जब किसी ने जन्म लिया है तो मौत भी मोऐय्यन है।12 जनवरी 2005 अमरीश पुरी की ज़िंदगी का आख़िरी दिन था । इसी दिन 72 साल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से उनका निधन हो गया । और इस तरह से हिंदी सिनेमा जगत ने एक सुपर विलेन को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया । अमरीश पुरी की आख़िरी फ़िल्म ‘किसना’ थी जो कि उनके निधन के बाद साल 2005 में रिलीज़ हुई थी । तो ये थी बॉलीवुड के सबसे बड़े खलनायक अमरीश पुरी की कहानी । कैसी लगी आपको ये स्टोरी कमेंट करके ज़रूर बताएँ । 



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