दिल्ली से 200 गुना महंगी क्यों हैं इन राज्यों की लोक अदालत, आखिर आम आदमी को कैसे मिलेगा न्याय?
लोक अदालतों की व्यवस्था लोगों को कम खर्च में न्याय दिलाने के लिए शुरू की गई थी. नालसा की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की स्थायी लोक अदालतों में एक मामले को निपटाने का खर्च दिल्ली की तुलना में लगभग 200 गुना अधिक है.
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देश में भारी जुर्माने से लोगों को राहत देने के उद्देश्य से लोक अदालतों की व्यवस्था शुरू की गई थी, ताकि लोग अपने मामलों का निपटारा कम खर्च में कर सकें. इसी बीच राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की हालिया रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में सामने आया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की स्थायी लोक अदालतों (PLA) में एक मामले को निपटाने का खर्च दिल्ली की तुलना में लगभग 200 गुना अधिक है.
दिल्ली और अन्य राज्यों से तुलना
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की स्थायी लोक अदालत में औसतन प्रति मामला निपटाने का खर्च केवल 500 रुपये है, जबकि हरियाणा में यह 766 रुपये है. लेकिन उत्तर प्रदेश में यह खर्च 1,10,895 रुपये और बिहार में करीब 1,06,000 रुपये है. देशभर में स्थायी लोक अदालतों का औसत प्रति मामला खर्च 2,650 रुपये है. आंकड़े बताते हैं कि यूपी और बिहार में मामले निपटाने की लागत दिल्ली से लगभग 200 गुना अधिक है, जबकि हरियाणा की तुलना में 140 गुना ज्यादा है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि खर्च को तर्कसंगत बनाने और दक्षता बढ़ाने के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए. प्रत्येक स्थायी लोक अदालत की बैठक पर औसतन 17,000 रुपये खर्च हो रहे हैं.
नियुक्तियों में भारी कमी
रिपोर्ट में यह भी चिंता जताई गई है कि कई राज्यों में अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्तियों में भारी कमी है. बिहार, पंजाब, तमिलनाडु, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों में रिक्त पदों के कारण संस्थागत कामकाज प्रभावित हो रहा है. इसे सुधारने के लिए मजबूत नियुक्ति और निगरानी प्रणाली लागू करने की सिफारिश की गई है.
नि:शुल्क कानूनी सहायता का आंकड़ा
राष्ट्रीय स्तर पर, 2015 से 2025 के बीच 1.61 करोड़ से अधिक लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता दी गई. इसके परिणामस्वरूप पीड़ितों को 2,354 करोड़ रुपये का मुआवजा मिला. इस अवधि में 40 करोड़ से अधिक मामलों का निपटान राष्ट्रीय लोक अदालतों के माध्यम से और 13,11,345 मामलों का निपटान स्थायी लोक अदालतों के माध्यम से किया गया. वहीं, स्थायी लोक अदालतों की कार्यक्षमता में सुधार हुआ है. वर्ष 2016-17 में देशभर की स्थायी लोक अदालतों ने लगभग 93,000 मामलों का निपटारा किया था, जो 2024-25 में बढ़कर 2.37 लाख से अधिक मामलों तक पहुंच गया. यानी केवल आठ वर्षों में निपटान दर में 155% का उछाल देखा गया.जानकारी देते चलें कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खर्च और दक्षता के अंतर को कम करने के लिए संसाधनों के सही प्रबंधन, नियुक्तियों में सुधार और निगरानी प्रणाली लागू करना जरूरी है. इससे स्थायी लोक अदालतें अधिक प्रभावी और भरोसेमंद बनेंगी.
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बताते चलें कि इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि न्याय की पहुंच बढ़ाने के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुधार और संसाधनों का उचित इस्तेमाल भी बेहद जरूरी है. यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में इस दिशा में सुधार करने की सबसे ज्यादा जरूरत है, ताकि आम नागरिक उचित समय और कम लागत में न्याय पा सकें.
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