Advertisement

अब रेल हादसों पर लगेगा ब्रेक! आ गया स्वदेशी रूप से विकसित 'कवच 4.0', दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा सेक्शन से हुई पहली शुरुआत

भारतीय रेलवे ने रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कवच 4.0 को लागू कर दिया है. इसकी शुरुआत सबसे उच्च-घनत्व वाले दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा सेक्शन पर रेलवे सुरक्षा प्रणाली के लिए चालू कर दिया गया है. देश में रेलवे सुरक्षा प्रणालियों के आधुनिकीकरण की दिशा में यह सराहनीय कदम है.

31 Jul, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
04:59 AM )
अब रेल हादसों पर लगेगा ब्रेक! आ गया स्वदेशी रूप से विकसित 'कवच 4.0', दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा सेक्शन से हुई पहली शुरुआत

भारतीय रेलवे रेल हादसों पर रोक लगाने के लिए एक खास तरह की कवच लेकर आई है. रेलवे के इस अनोखे प्रयास की शुरुआत दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा सेक्शन से हुआ है. इस मौके पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि देश के सबसे बेस्ट रेलवे रूट पर इसे चालू करना एक बड़ी उपलब्धि है. यह कवच प्रभावी ब्रेक अनुप्रयोग के माध्यम से लोको पायलट के गति नियंत्रण को सक्षम बनाता है. इससे ठंड के मौसम में कोहरे में भी सिग्नल की जानकारी मिलेगी. रेलवे ने बताया कि इसे विकसित करने में कुल 6 साल लगे. वहीं कई विकसित देशों को सुरक्षा प्रणाली तैनात करने में करीब 20 से 30 वर्ष लगे. तो चलिए जानते हैं रेलवे की सुरक्षा कवच 4.0 की खासियतों के बारे में? 

दिल्ली-मुंबई के मथुरा-कोटा सेक्शन पर शुरू हुआ 4.0 सुरक्षा कवच

बता दें कि भारतीय रेलवे ने उच्च-घनत्व वाले दिल्ली-मुंबई मार्ग के मथुरा-कोटा सेक्शन पर स्वदेश निर्मित कवच 4.0 को रेलवे सुरक्षा प्रणाली के लिए चालू कर दिया है. देश में यह रेलवे सुरक्षा प्रणालियों के आधुनिकीकरण की दिशा में सराहनीय कदम है. इस कवच के बारे में बात करते हुए केंद्रीय रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, "माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' विजन से प्रेरणा लेते हुए, रेलवे ने कवच स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली का स्वदेश में ही डिज़ाइन, विकास और निर्माण किया है. कवच 4.0 एक प्रौद्योगिकी-प्रधान प्रणाली है. इसे अनुसंधान डिज़ाइन एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा जुलाई 2024 में अनुमोदित किया गया था. कोटा-मथुरा सेक्शन पर कवच 4.0 का निर्माण बहुत ही कम समय में पूरा किया गया है, जो कि हम सभी के लिए यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है.'

कवच 4.0 के लिए 30 हजार लोगों को मिला प्रशिक्षण

6 वर्षों की एक छोटी सी अवधि में भारतीय रेलवे की कवच 4.0 को लागू करने की शुरुआत हो गई है. ऐसे में अब इसे देश के कई रेल मार्गों पर शुरू करने की तैयारी है. इसके लिए करीब 30 हजार से ज्यादा लोगों को पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है. इसके अलावा IRISET यानी भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग एवं दूरसंचार संस्थान ने कवच को अपने बीटेक पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए 17 AICTE-अनुमोदित इंजीनियरिंग कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. 

कैसे करेगा मदद 4.0 सुरक्षा कवच?

यह सुरक्षा कवच लोको पायलटों को ट्रेन की गति बनाए रखने और प्रभावी ब्रेक लगाने में बड़ी मदद करेगा. खासतौर से कोहरे जैसी कठिन परिस्थिति में पायलटों को सिग्नल के लिए केबिन से बाहर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके जरिए पायलट केबिन के अंदर ही लगे डैशबोर्ड पर जानकारी देख सकते हैं. 

क्या है कवच 4.0? 

कवच 4.0 एक स्वदेशी रूप से विकसित रेल सुरक्षा प्रणाली है, जो रेलगाड़ियों की गति की निगरानी और नियंत्रण कर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए निर्मित किया गया है. इसे सुरक्षा अखंडता स्तर 4 (SIL 4) पर डिजाइन किया गया है. यह सुरक्षा डिजाइन का उच्चतम स्तर है. इसका निर्माण साल 2015 में शुरू हुआ था. करीब 3 वर्षों से अधिक समय तक बड़े स्तर पर इसका परीक्षण किया गया. इसमें तकनीकी सुधारों के बाद प्रणाली को दक्षिण मध्य रेलवे (एसीआर) में स्थापित किया गया. पहला परिचालन प्रमाणपत्र 2018 में प्रदान किया गया. दक्षिण-मध्य रेलवे में प्राप्त अनुभवों के आधार पर एक उन्नत प्रारूप 'कवच 4.0' विकसित किया गया. 

मई 2025 में 160 किमी घंटे की रफ्तार के लिए बनाया गया 

इस कवच को मई 2025 में 160 किमी प्रति घंटे तक की गति के लिए तैयार किया गया है. कवच के घटकों का निर्माण स्वदेशी रूप से किया जा रहा है. यह कवच एक अत्यंत जटिल प्रणाली है. कवच का चालू होना एक दूरसंचार कंपनी स्थापित करने के बराबर है.

क्या कुछ हैं इसकी खासियतें ? 

RFID TAG:  यह टैग पूरी पटरी पर हर 1 किलोमीटर पर लगाए जाते हैं. इसे हर सिग्नल पर भी लगाया जाता है. यह टैग ट्रेनों की सटीक लोकेशन बताता है.

दूरसंचार टावर: यह ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी और बिजली आपूर्ति सहित पूर्ण दूरसंचार टावर और कुछ किलोमीटर पर ट्रैक की पूरी लंबाई में लगाए जाते हैं. इससे लोको पर लगे कवच सिस्टम और स्टेशनों पर कवच नियंत्रक इन टावरों के माध्यम से लगातार संचार करते रहते हैं. यह एक दूरसंचार ऑपरेटर की तरह एक संपूर्ण नेटवर्क स्थापित करने के बराबर है.

लोको कवच: यह पटरियों पर लगे RFID टैग से जुड़कर दूरसंचार टावरों तक सूचना पहुंचाता है और स्टेशन कवच से रेडियो सूचना प्राप्त करता है. लोको कवच को इंजनों के ब्रेकिंग सिस्टम से भी जोड़ा गया है. यह सिस्टम सुनिश्चित करता है कि आपातकालीन स्थिति में ब्रेक लगाया जाएं. 

स्टेशन कवच: यह प्रत्येक स्टेशन और ब्लॉक सेक्शन पर स्थापित है. यह लोको कवच और सिग्नलिंग प्रणाली से सूचना प्राप्त करता है. उसके बाद लोको कवच को सुरक्षित गति के लिए मार्गदर्शन करता है. 

ऑप्टिकल फाइबर केबल: इस ऑप्टिकल फाइबर को पटरियों के साथ बिछाया जाता है, जो उच्च गति डेटा संचार के लिए इन सभी प्रणालियों को जोड़ता है. 

सिग्नलिंग प्रणाली: सिग्नलिंग प्रणाली को लोको कवच, स्टेशन कवच, दूरसंचार टावरों आदि के साथ एकीकृत किया गया है. 

इन प्रणालियों को यात्री और मालगाड़ियों की भारी आवाजाही सहित रेलवे परिचालन को बाधित किए बिना स्थापित, जांचा और प्रमाणित किया जाना आवश्यक है. 

अब तक किन-किन स्टेशनों पर हुआ स्थापित? 

भारतीय रेलवे ने अब तक ऑप्टिकल फाइबर कुल 5,856 किलोमीटर तक बिछाया है. कुल 619 दूरसंचार टावर स्थापित किए गए हैं. 708 स्टेशनों पर सुरक्षा कवच स्थापित हो चुके हैं. 1,107 लोगों पर कवच स्थापित हो चुका है. वहीं 4,001 ट्रैकसाइड उपकरण स्थापित हो चुके हैं. 

यह भी पढ़ें

आपको बता दें कि भारतीय रेलवे प्रत्येक वर्ष 1 लाख करोड़ से ज्यादा राशि सुरक्षा संबंधी गतिविधियों पर खर्च करता है. इनमें कवच, यात्रियों और ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए शुरू की गई कई पहलों में से एक है. कवच की प्रगति और इसकी तैनाती की गति रेलवे की सुरक्षा को और भी सुनिश्चित करता है. 

टिप्पणियाँ 0

LIVE
Advertisement
Podcast video
'मुसलमान प्रधानमंत्री बनाने का प्लान, Yogi मारते-मारते भूत बना देंगे इनका’ ! Amit Jani
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स
वेब स्टोरीज़
होम वीडियो खोजें