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VB-जी राम जी बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दी मंजूरी, अमल में आया कानून, 125 दिनों की मिलेगी रोजगार गारंटी

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मनरेगा की जगह लेने वाले नए VB-जी राम जी विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही ये कानून अमल में आ गया है. अब ग्रामीण रोजगार की गारंटी की अवधि 100 से बढ़कर 125 दिनों की हो गई है.

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21 Dec 2025
( Updated: 21 Dec 2025
07:05 PM )
VB-जी राम जी बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दी मंजूरी, अमल में आया कानून, 125 दिनों की मिलेगी रोजगार गारंटी
PM Modi And Draupadi Murmu (File Photo)

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'विकसित भारत-रोजगार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) यानी कि वीबी-जी राम जी विधेयक, 2025' को अपनी मंजूरी दे दी है. राष्ट्रपति के इस मंजूरी के साथ ही यह विधेयक कानून का रूप ले चुका है, जो दो दशक पुरानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जगह लेगा. 

मनरेगा की जगह लेगा वीबी-जी राम जी कानून!

नया कानून केंद्र सरकार के 'विकसित भारत-2047' के विजन से पूरी तरह जुड़ा हुआ है और ग्रामीण भारत में रोजगार को अधिक उत्पादक, टिकाऊ तथा अवसंरचना निर्माण से जोड़ने का प्रयास करता है.

वीबी-जी राम जी कानून में 125 दिनों की मजदूरी की गारंटी!

नए अधिनियम की मुख्य विशेषता ग्रामीण परिवारों को प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों की मजदूरी रोजगार की वैधानिक गारंटी है, जो मनरेगा के 100 दिनों से 25 दिन अधिक है. सरकार का दावा है कि इससे ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा मजबूत होगी और वे राष्ट्रीय विकास में बड़ा योगदान दे सकेंगे.

जहां एक ओर सरकार ने इसे ग्रामीण भारत के लिए ऐतिहासिक कदम बताया, वहीं विपक्ष ने मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने और राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने का आरोप लगाया है.

अधिकतम 15 दिनों में मजदूरी भुगतान अनिवार्य!

विधेयक में मजदूरी भुगतान को साप्ताहिक या अधिकतम 15 दिनों में अनिवार्य किया गया है और विलंब पर मुआवजा भी मिलेगा. कृषि मौसम को ध्यान में रखते हुए राज्यों को 60 दिनों की विराम अवधि का प्रावधान है, ताकि श्रमिक बुवाई-कटाई में उपलब्ध रहें. इसमें मिलने वाले कार्य चार प्रमुख क्षेत्रों से जुड़े होंगे, जिनमें जल सुरक्षा, ग्रामीण अवसंरचना, आजीविका अवसंरचना, और मौसम प्रतिकूलता से निपटने के उपाय शामिल हैं.

कौन कितना पैसा देगा?

वित्तीय ढांचे में केंद्र-राज्य साझेदारी 60:40 होगी, जबकि पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों के लिए यह साझेदारी 90:10 की होगी. प्रशासनिक व्यय सीमा 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत की गई है. सरकार का दावा है कि यह कानून ग्रामीण रोजगार को कल्याण से आगे ले जाकर दीर्घकालिक विकास का माध्यम बनाएगा.

बता दें कि विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के भारी विरोध के बीच पारित किया गया था. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे ग्रामीण गरीबों के अधिकारों पर हमला बताया. हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया कि रोजगार का अधिकार मजबूत हुआ है और परिसंपत्ति निर्माण पर फोकस से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा.

फंड के न्यायपूर्ण वितरण का प्रावधान

इस संबंध में बीते दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि सरकार ने एक संपूर्ण योजना बनाई है. इसमें विकसित गांव का स्वरूप बताया गया है. जल संरक्षण, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी भवन, आजीविका से जुड़े काम आदि शामिल हो गए हैं. इसके साथ ही प्राकृतिक आपदा में नुकसान कैसे रोका जाए, उसके इंतजाम भी किए गए हैं. सबसे बड़ा सुधार फंड के न्यायपूर्ण वितरण का प्रावधान है, क्योंकि फंड का वितरण समान रूप से हो, इसके लिए तीन ग्रेड बनाए गए हैं. कम विकासित गांवों को ज्यादा धन और ज्यादा विकासित गांवों को कम धन दिया जाए. इसमें विपक्षी पार्टियों को क्या आपत्ति है?

मजदूरी भुगतान और बेरोजगारी भत्ता

केंद्रीय मंत्री ने आगे जानकारी दी थी कि बेरोजगारी भत्ता देने के प्रावधान को और पुख्ता किया गया है. 15 दिन के अंदर अगर मजदूरी नहीं मिलती तो 0.05 प्रतिशत रोज के हिसाब से अलग से देना पड़ेगा. कमजोर वर्गों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है.

कमजोर वर्गों पर विशेष फोकस

वहीं अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य कमजोर वर्ग, और दिव्यांग बुजुर्गों के लिए रोजगार गारंटी कार्ड मिलेंगे. उनको कम काम पर भी ज्यादा मजदूरी मिलेगी.

कृषि और पीएम गति शक्ति से तालमेल

उन्होंने आगे कहा था कि जब यूपीए की सरकार थी, तब शरद पवार कृषि मंत्री थे. नरेगा पर चर्चा के दौरान इसको रेखांकित किया गया था कि कृषि कार्य प्रभावित न हों, इसके लिए भी धन देना चाहिए. शरद पवार ने भी इस पर चिंता जताई थी. 36 प्रतिशत हमारे किसान सीमांत और लघु हैं.

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चौहान ने कहा कि पीएम गति शक्ति को जोड़कर यह प्रयास किया गया है कि काम का दोहराव न हो. आवश्यकता और उपयोगिता पर जोर दिया गया है. प्रशासनिक व्यय बढ़ाकर 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत किया गया है. 13 हजार करोड़ रुपए प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए किए गए हैं, ताकि रोजगार सहायक को वेतन मिल सके. यह विकसित भारत के लिए विकसित गांव बनाने की पहल है, इसलिए यह नई योजना लाई गई है.

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