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अब नहीं करना पड़ेगा सड़क पर काम, कुम्हारों को मिलेगा निर्धारित स्थान, नायब सरकार ने शुरू की खास योजना

Haryana Yojana: शहरी निकाय विभाग ने प्रदेश के 87 शहरी निकायों को पत्र भेजकर यह जानकारी मांगी है कि किन-किन गांवों में कुम्हारों के लिए परंपरागत रूप से इस्तेमाल होने वाली आंवा, पंजावा या कुम्हारधाना वाली जमीन उपलब्ध है.

08 Dec, 2025
( Updated: 08 Dec, 2025
03:16 PM )
अब नहीं करना पड़ेगा सड़क पर काम, कुम्हारों को मिलेगा निर्धारित स्थान, नायब सरकार ने शुरू की खास योजना
Image Source: Social Media

Nayab Singh Saini: हरियाणा सरकार अब नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिकाओं की सीमा में आने वाले गांवों में रहने वाले प्रजापति (कुम्हार) समाज के लोगों को भी बर्तन बनाने और पकाने के लिए जमीन देने पर गंभीरता से विचार कर रही है. शहरी निकाय विभाग ने प्रदेश के 87 शहरी निकायों को पत्र भेजकर यह जानकारी मांगी है कि किन-किन गांवों में कुम्हारों के लिए परंपरागत रूप से इस्तेमाल होने वाली आंवा, पंजावा या कुम्हारधाना वाली जमीन उपलब्ध है. विभाग ने यह रिपोर्ट दो दिनों के भीतर मांगी है. माना जा रहा है कि जब यह रिपोर्ट सरकार के पास पहुंच जाएगी, तो मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी शहरी निकायों में शामिल गांवों के कुम्हार परिवारों को भी वही सुविधा देने का फैसला कर सकते हैं, जो हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में दी गई थी.

गांवों में पहले ही जमीन मिल चुकी, अब शहरों की बारी

हरियाणा सरकार ने अगस्त महीने में प्रदेश के सभी गांवों में रहने वाले कुम्हार समाज के लोगों को मिट्टी के बर्तन बनाने और पकाने के लिए जमीन आवंटन पत्र बांटे थे. इस फैसले के बाद नगर निगम में शामिल गांवों में रहने वाले कुम्हार परिवारों ने भी मांग उठाई थी कि उन्हें भी इसी तरह की सुविधा दी जाए. कारण यह है कि इन गांवों में रहने वाले कई कुम्हार परिवार शहर की सीमा में आने के बावजूद परंपरागत काम करते हैं, लेकिन उनके पास अपना कोई निर्धारित स्थान नहीं है.


राजीव जैन ने मुद्दा उठाकर सरकार का ध्यान खींचा

मुख्यमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार और वर्तमान में सोनीपत के मेयर राजीव जैन ने इस विषय पर मुख्यमंत्री को विस्तृत पत्र लिखकर समस्या को सामने रखा था. उन्होंने 18 अगस्त को भेजे गए पत्र में कहा था कि शहरों और कस्बों में रहने वाले कई कुम्हार परिवार अब भी मिट्टी के बर्तन बनाने और पकाने का काम करते हैं, लेकिन उनके पास कोई निश्चित जगह नहीं है, इसलिए उन्हें यह काम सड़कों पर करना पड़ता है. इससे एक तरफ धुआँ और धूल के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है, वहीं दूसरी तरफ सड़क पर काम होने से ट्रैफिक में बाधा भी होती है. 

मिट्टी के बर्तनों की बढ़ती मांग से बढ़ी उम्मीद

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राजीव जैन ने अपने पत्र में यह भी बताया था कि पहले मिट्टी के बर्तनों का काम करने वाले कई परिवार मजबूरी में अपना काम छोड़ चुके थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के बाद मिट्टी के बर्तनों की मांग फिर बढ़ी है. इसी वजह से कुम्हार समाज इस कार्य से दोबारा जुड़ रहा है और उन्हें अपने काम के लिए जमीन की आवश्यकता है. जैन ने बताया कि मनोहर लाल सरकार के समय भी उन्होंने यह मांग रखी थी, जिसके बाद प्रक्रिया शुरू हुई और जहां-जहां जमीन उपलब्ध थी, वहां दे भी दी गई.  लेकिन शहरी निकायों में शामिल गांवों के कुम्हार परिवार अब तक नीति न होने के कारण इस सुविधा से वंचित रहे थे.
अब सरकार द्वारा मांगी गई रिपोर्ट से यह उम्मीद बढ़ गई है कि शहरों में बसे कुम्हार परिवारों को भी अपना पारंपरिक काम करने के लिए अधिकृत जगह मिल सकेगी.

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