छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के विरोध में खड़ा हुआ आंदोलन! ग्रामीणों ने बैन की पादरियों की एंट्री, गांवों में लगे बोर्ड
छत्तीसगढ़ के कई गांवों ने ऐतिहासिक फैसला लिया है. ग्रामीणों ने अपनी आदिवासी संस्कृति को बचाने और धर्मांतरण को रोकने के लिए खुद ही एक बड़ी पहल की है. इसके तहत गांव के गांव अपने यहां पादरियों की एंट्री पर रोक लगाने को लेकर बोर्ड लगा रहे हैं और लिख रहे हैं कि इस गांव में पादरी-पास्टर की नो एंट्री है.
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छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा सहित वैसे राज्य जहां पर आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है, ग्रामीण क्षेत्र हैं, गरीबी है, वहां पर धर्मांतरण का सबसे ज्यादा खतरा है. कई राज्य जबरन कन्वर्जन गैंग के शिकार हो गए और गांव के गांव कन्वर्ट हो चुके हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों ने इससे बचाव के लिए नायाब तरीका निकाला है. दरअसल राज्य के कांकेर जिले में धर्मांतरण को लेकर लोगों के बीच आक्रोश फैलता जा रहा है. इसी बीच करीब दर्जनभर से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने अपने यहां पादरियों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है. लोगों ने गांव की सीमा या शुरुआत में पादरियों की नो एंट्री के बोर्ड लगा दिए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक बस्तर संभाग के कांकेर जिले में धर्मांतरण को लेकर पैदा हुआ तनाव अब कई गांवों में फैल गया है.
क्या है पादरियों की नो एंट्री वाला मामला?
आपको बता दें कि ये मुहिम भानुप्रतापपुर विकासखंड के कुड़ाल गांव से शुरू हुई. ये अब जिले के करीब 14 से अधिक गांवों तक पहुंच चुकी है. इसके तहत ग्रामीण अपने-अपने गांवों की सीमा पर पादरियों के प्रवेश पर प्रतिबंध वाला बोर्ड लगा रहे हैं. मालूम हो कि संभाग की 67 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी है, जिनमें से लगभग सात प्रतिशत लोगों का मतांतरण हो चुका है.
माहरा जाति में 95 प्रतिशत लोगों का धर्मांतरण!
वहीं माहरा जाति अनुसूचित जाति वर्ग के तहत आती है, उसकी करीब तीन लाख आबादी में से 95 प्रतिशत लोगों का धर्मांतरण हो चुका है. कहा जा रहा है कि ये विवाद आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़ेतेवड़ा गांव में एक अंतिम संस्कार के दौरान हिंसा और तोड़फोड़ के बाद और तेज हुआ है.
ग्रामीणों ने क्यों लिया पादरियों की एंट्री बैन करने का फैसला?
ग्रामीणों और सरपंचों ने इस फैसले को लेकर कहा कि वो किसी धर्म के विरोधी नहीं और ना ही किसी के विरोध में ये निर्णय लिया गया है, बल्कि आदिवासियों को लोभ-लालच देकर कराए जा रहे धर्मांतरण को रोकने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने आगे कहा कि बाहरी लोगों के हस्तक्षेप से उनके पुराने रीति-रिवाज और सामाजिक तानाबाना को खतरा है. खबर के मुताबिक अब तक कुड़ाल, मुसुरपुट्टा और कोड़ेकुर्रो जैसे 14 से अधिक गांवों में बोर्ड लगाए जा चुके हैं, जबकि दर्जनों अन्य गांवों में ऐसे ही प्रस्ताव लाने की तैयारी है.
किस कानून का ग्रामीणों ने लिया सहारा?
दरअसल ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 के तहत यह कदम उठाया है. उन्होंने बोर्ड लगाकर साफ कर दिया कि इन गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन प्रतिबंधित होंगे. वहीं बीते दिनों छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने स्वीकार किया था कि जबरन या प्रलोभन देकर मतांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम है.
मसीही आयोजनों ने बढ़ाई ग्रामीणों की चिंता!
रिपोर्ट के मुताबिक जिले के कुड़ाल गांव में अगस्त 2025 में ग्राम सभा की एक बैठक बुलाई गई थी. इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया था. इसके तहत ही पादरियों के प्रवेश पर रोक को लेकर बोर्ड लगाया गया. इसके बाद यही कुछ परवी, जनकपुर, भीरागांव, घोड़ागांव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलंगी, टेकाठोडा, बांसला, जामगांव, चारभाठा और मुसुरपुट्टा आदि गांवों में भी हुआ.
इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता गौरव राव ने आरोप लगाया कि धर्मांतरण के जरिए स्थानीय सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि चंगाई सभाओं के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली जाती, छोटे घरों में प्रार्थना सभाएं हो रही हैं. मतांतरण के बाद नाम नहीं बदले जा रहे, जो नियम विरुद्ध है.
क्या लिखा है बोर्ड पर?
आपको बता दें कि ग्रामीणों ने बोर्ड पर लिखा है कि गांव में आदिवासियों को प्रलोभन देकर मतांतरण करना उनकी सांस्कृतिक पहचान को संकट में डाल रहा है. इससे आदिम संस्कृति को खतरा है. अतः ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर पास्टर, पादरी एवं मतांतरित व्यक्तियों के धार्मिक आयोजन के उद्देश्य से प्रवेश पर रोक लगाते हैं.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने क्या कहा था?
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बीते महीने जबरन, प्रलोभन, या छल के आधार पर हो रहे धर्मांतरण पर बड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कम से कम आठ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध को लेकर लगाए गए होर्डिंग्स को हटाने की मांग खारिज कर दी थी. कोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए लगाए गए इन होर्डिंग्स को असंवैधानिक मानने से भी इनकार कर दिया था.
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने 28 अक्टूबर को दिए गए आदेश में कहा था कि, “ऐसा प्रतीत होता है कि ये होर्डिंग्स संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा आदिवासी समुदाय और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए एक सतर्कता कदम के रूप में लगाए गए हैं.”
क्या है PESA नियम?
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अतिरिक्त अधिवक्ता सामान्य वाई.एस. ठाकुर ने अदालत के समक्ष दलील दी कि PESA नियम ग्राम सभा को स्थानीय सांस्कृतिक विरासत, जैसे देवी-देवताओं के स्थल, पूजा प्रणाली, संस्थान (जैसे गोतुल, धुमकुडिया) और मानवीय सामाजिक प्रथाओं को किसी भी प्रकार के विनाशकारी व्यवहार से बचाने का अधिकार देता है.
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