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केरल के पूर्व सीएम व वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता वी. एस. अच्युतानंदन का निधन, 101 वर्ष में ली अंतिम सांस

केरल के पूर्व सीएम और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता वी. एस. अच्युतानंदन का 101 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वह साल 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने 15 वर्षों तक केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में बड़ी भूमिका निभाई.

22 Jul, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
05:01 AM )
केरल के पूर्व सीएम व वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता  वी. एस. अच्युतानंदन का निधन, 101 वर्ष में ली अंतिम सांस

केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता वी. एस. अच्युतानंदन का 21 जुलाई को सुबह निधन हो गया. 101 वर्षीय वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता लंबे समय से बीमार चल रहे थे. बता दें कि पिछले महीने दिल का दौरा पड़ने के बाद से उनका इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा था. उनके निधन से कुछ देर पहले मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कई नेता उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे थे. 

कौन थे केरल के पूर्व सीएम वी.एस. अच्युतानंदन?

बता दें कि वी.एस. अच्युतानंदन का पूरा नाम वेलिक्ककथु शंकरन अच्युतानंदन था. वह वामपंथी दल सीपीएम के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. साल 2006 से 2011 तक वह केरल के मुख्यमंत्री पद पर बने रहे. उन्होंने 15 वर्षों तक केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में बड़ी भूमिका निभाई. अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कम्युनिस्ट नेता के तौर पर शुरू किया था. 1939 में ट्रेड यूनियन के जरिए राजनीति में कदम रखने के बाद साल 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए थे. 

1970 में पहली बार पहुंचे विधानसभा 

बता दें कि 1970 के दशक में वह पहली बार केरल विधानसभा के सदस्य चुने गए. उसके बाद वह कई बार विधायक बने और पार्टी में एक मजबूत नेता के रूप में उभरे. उन्होंने राज्य में सामाजिक न्याय और विकास के लिए महत्वपूर्ण काम किए. 

24 साल तक सीपीएम पोलित के ब्यूरो सदस्य रहे 

केरल के पूर्व सीएम वी. एस. अच्युतानंदन साल 1985 से लेकर 2009 तक सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रहे थे. उसके बाद उन्हें पार्टी की सेंट्रल कमेटी में भेज दिया गया. उन्होंने मजदूरों के लिए काफी संघर्ष किया. अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने कॉयर फैक्ट्री के मजदूरों, ताड़ी निकालने वालों और खेती करने वाले मजदूरों के लिए कई बड़े काम किए.  

आंदोलन के कारण 5 साल तक जेल में रहे

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वह कई आंदोलनों में भी शामिल रहे. साल 1946 में हुए पुन्नपरा-वायलार विद्रोह में मुख्य नेता की भूमिका निभाई थी. आंदोलन के कारण ही वह 5 साल से ज्यादा समय तक जेल में रहे.

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