सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील... राष्ट्रपति के खिलाफ सरकार दायर नहीं कर सकती याचिका, जानें वजह
केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि न तो कोई राज्य और न ही केंद्र सरकार राष्ट्रपति और राज्यपाल की विधेयकों पर कार्रवाई के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू यह जानना चाहती हैं कि क्या राज्यों को अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचार का अधिकार) के तहत मूल अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देकर याचिका दायर करने का अधिकार है. चीफ जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. यह संदर्भ राष्ट्रपति ने उस समय भेजा था जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समय सीमा तय की थी।
क्या राज्य सरकार केंद्र के खिलाफ याचिका लेकर कोर्ट आ सकती हैं?
राष्ट्रपति के संदर्भ पर पांचवें दिन की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रपति के भेजे संदर्भ में उठाए गए उन सवालों पर ज़ोर देना चाहते हैं, जो इस बात से संबंधित हैं कि क्या किसी राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई रिट याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं.
इससे पहले संविधान पीठ ने इस मुद्दे का उत्तर देने से परहेज़ करने का प्रस्ताव दिया था. यह कहते हुए कि संदर्भ में उठाए गए वास्तविक मुद्दे भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को स्वीकृति देने से जुड़े हैं. सुझाव दिया गया था कि इस मुद्दे को भविष्य के किसी मामले के लिए खुला छोड़ा जा सकता है. तब कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा था कि वे केंद्र सरकार से यह निर्देश लें कि क्या इस मुद्दे पर राष्ट्रपति की ओर से जोर दिया जा रहा है.
बता दें कि इसी का जवाब देते हुए तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर उत्तर मांगने के निर्देश मिले हैं. उन्होंने कहा कि मैंने निर्देश ले लिए हैं. सभी प्रश्नों में से मुझे दो प्रश्नों पर निर्देश लेने थे. क्या संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत राज्य सरकार रिट याचिका दायर कर सकती है? और दूसरा ये कि अनुच्छेद 361 का दायरा और सीमा क्या है? माननीय राष्ट्रपति अदालत की राय चाहते हैं. इसके कारण भी हैं, क्योंकि राय तभी मांगी जाती है जब कोई ऐसी असहज स्थिति उत्पन्न हो गई हो या होने वाली हो. इन्हीं परिस्थितियों में राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से राय ले सकते हैं.
Solicitor General of India Tushar Mehta told the Supreme Court on Thursday (August 28) that the President of India wants to press the questions raised in the Presidential Reference relating to the maintainability of a writ petition filed by a State Government against the Union… pic.twitter.com/MKXvlwWXnV
— Live Law (@LiveLawIndia) August 28, 2025
संविधान पीठ के समक्ष क्या कहा गया?
सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो बार-बार अलग-अलग मामलों में उठता रहता है. तर्क है कि राज्य सरकार कोई ऐसी इकाई नहीं है, जिसके पास मौलिक अधिकार हों इसलिए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा हेतु लागू अनुच्छेद 32 राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवादों का निपटारा संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत मूल वाद के रूप में होना चाहिए.
एसजी ने कहा कि इसलिए अनुच्छेद 131, अनुच्छेद 32 के तहत राज्य की याचिका को रोकता है. राज्य यह दावा करके भी ऐसी रिट याचिका बनाए नहीं रख सकता कि वह जनता के अधिकारों का संरक्षक है. राज्य एक इकाई के रूप में कोई मौलिक अधिकार नहीं रखता. वह यह तर्क नहीं दे सकता कि उसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है.
एसजी तुषार मेहता ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत राज्यपाल के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. राज्यपाल के पद की प्रकृति और कार्यों को देखते हुए उनके खिलाफ अदालती आदेश नहीं मांगा जा सकता. CJI बीआर गवई ने पूछा कि राज्यपाल को केंद्र सरकार का प्रतिनिधि क्यों नहीं माना जा सकता? वह भारत सरकार का प्रतिनिधित्व कैसे नहीं करते? भारत सरकार ही राज्यपाल को अधिकार सौंपती है. संविधान सभा की बहस के अनुसार, राज्यपाल राज्यों और केंद्र के बीच का महत्वपूर्ण सेतु है.
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इस पर एसजी तुषार मेहता ने जवाब दिया कि राज्यपाल राज्य सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह और सहायता पर कार्य करते हैं न कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की, हालांकि वे राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं. अधिकांश मामलों में राज्य सरकार ही राज्यपालों की ओर से उपस्थित होकर उनका बचाव करती है. संवैधानिक योजना के अनुसार, अनुच्छेद 154 कहता है कि राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है. अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल राष्ट्रपति के आज्ञापत्र यानी वॉरंट पर नियुक्त किए जाते हैं.
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