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'सच्चा हिंदू होने का मतलब किसी का विरोध करना नहीं है...', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कट्टर सनातनी होने का मतलब समझाया

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने RSS से ही जुड़े 'शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास' की ओर से आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' को संबोधित करते कहा कि 'कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म का असली मतलब सभी को गले लगाना है.'

29 Jul, 2025
( Updated: 29 Jul, 2025
02:53 AM )
'सच्चा हिंदू होने का मतलब किसी का विरोध करना नहीं है...', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कट्टर सनातनी होने का मतलब समझाया

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को आयोजित एक राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में सभा को संबोधित करते हुए कट्टर हिंदू होने का असली मतलब समझाया है. अपने संबोधन में भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों के मन में गलतफहमी होती है कि कट्टर हिंदू होने का मतलब लोगों को गाली देना है. इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि संसार में असली विद्वान कौन है? 

'कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है'

मोहन भागवत ने आरएसएस से जुड़े 'शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास' की ओर से आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' को संबोधित करते कहा कि 'कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म का असली मतलब सभी को गले लगाना है. अक्सर यह गलतफहमी होती है कि कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों को गाली देना है, न ही इसका मतलब यह है कि हमें यह कहकर जवाब देना होगा कि हम हिंदू नहीं हैं. ऐसी गलतफहमी हो सकती है. जो कोई हिंदुओं को एकजुट करना चाहता है, उसे इस सार का ध्यान रखने की जरूरत है.'

'दुनिया में दो प्रकार का ज्ञान और भारत दोनों को मानता है'

RSS प्रमुख ने आगे यह भी कहा कि 'इस संसार में दो प्रकार के ज्ञान हैं. इनमें पहला विद्या जो सच्चा ज्ञान है, दूसरा अविद्या यानी अज्ञान है. यह दोनों ही व्यक्ति के भौतिक और आध्यात्मिक खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारत दोनों के महत्व को समझता है. भारत आध्यात्मिकता की भूमि है और इस देश की राष्ट्रवाद की भावना अत्यंत पवित्र है.'

संसार का सच्चा विद्वान कौन है? 

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मोहन भागवत ने आगे यह भी बताया कि एक सच्चा विद्वान कौन है? उन्होंने कहा कि 'एक सच्चा विद्वान वह नहीं है, जो केवल एक कमरे में बैठकर चिंतन करता है, बल्कि वह है जो विचार को कार्य में परिणाम स्वरूप बदलता है और अपने अनुभव के आधार पर उसे प्रदर्शित करता है. भागवत ने कहा कि मैकाले द्वारा प्रचारित औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल आज के भारत के लिए उपयुक्त नहीं है.' 

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