बदलती डेमोग्राफी पर असम के CM की सख्त चेतावनी, बोले- 50% पार हुई आबादी तो राज्य को बांग्लादेश में मिलाने की हो सकती है साजिश
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बीजेपी बैठक में चेतावनी दी कि राज्य में बांग्लादेशी मूल की आबादी 40 प्रतिशत पार कर चुकी है और यदि यह 50 प्रतिशत से ऊपर गई तो असम की अस्मिता और अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है.
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असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार को बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में एक बार फिर राज्य की बदलती जनसांख्यिकी को लेकर गंभीर चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि यदि राज्य में बांग्लादेशी मूल के लोगों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तो असम को बांग्लादेश का हिस्सा बनाने के प्रयास शुरू हो सकते हैं. मुख्यमंत्री सरमा ने इसे असम की अस्मिता और संस्कृति के लिए बड़ा खतरा बताया और कहा कि यह समस्या अब केवल भविष्य की नहीं, बल्कि वर्तमान की वास्तविकता बन चुकी है.
CM सरमा ने दिया आंकड़ों का हवाला
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में बांग्लादेशी मूल के लोगों की आबादी 40 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर चुकी है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मौजूदा हालात सभी के सामने हैं और यदि यह संख्या 50 प्रतिशत से ऊपर पहुंची, तो असम की पहचान और अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने बांग्लादेश में हाल ही में हुई ‘दीपू दास’ की मॉब लिंचिंग की घटना का हवाला देते हुए लोगों को सतर्क किया. उन्होंने कहा कि जब पड़ोसी देश में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, तो यह सोचने की जरूरत है कि आने वाले 20 वर्षों में असम की स्थिति कितनी चुनौतीपूर्ण हो सकती है.
असम में सभ्यता की लड़ाई
मुख्यमंत्री ने यह सवाल भी उठाया कि घुसपैठियों की वफादारी पर भरोसा कैसे किया जा सकता है. उन्होंने कहा, 'अगर भारत और बांग्लादेश के बीच युद्ध हुआ, तो ये लोग किसका साथ देंगे?' इस बीच उन्होंने आगामी विधानसभा चुनावों को सिर्फ राजनीतिक मुकाबला न मानते हुए इसे 'सभ्यता की लड़ाई' करार दिया. उन्होंने कांग्रेस पर दशकों तक तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया और बताया कि इससे राज्य में एक 'नई सभ्यता' विकसित हो गई है, जिसकी संख्या लगभग 1.5 करोड़ तक पहुंच चुकी है.
कैसे बदल रहे असम के हालात?
सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर उन्होंने बताया कि 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 34 प्रतिशत थी, जिसमें बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम 31 प्रतिशत और स्थानीय मुस्लिम मात्र 3 प्रतिशत थे. 2027 तक यह संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि स्वदेशी आबादी घटकर 60 प्रतिशत रह जाएगी और इसमें और गिरावट की आशंका है. सरमा ने भावुक होकर कहा कि उनके जीवनकाल में घुसपैठियों की आबादी 21 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है और उनके बच्चों के समय तक असमिया समुदाय मात्र 30 प्रतिशत रह सकता है.
सांस्कृतिक पहचान पर स्पष्ट संदेश
सांस्कृतिक पहचान पर मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने असम को 'शंकर-अजान' (वैष्णव संत शंकरदेव और सूफी संत अजान फकीर) की धरती बताने वाली धारणा को सिरे से खारिज किया. सरमा ने स्पष्ट किया कि असम केवल 'शंकर-माधव' (शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव) की भूमि है और कोई भी प्रयास हमारी सांस्कृतिक पहचान को कमजोर नहीं कर सकता. अपने संबोधन के अंत में मुख्यमंत्री ने अहोम सेनापति लाचित बोरफुकन का स्मरण किया, जिन्होंने बीमार होने के बावजूद मुगलों को हराया था. उन्होंने संकल्प जताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में असम की पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए लगातार लड़ाई जारी रखी जाएगी और जीत हासिल की जाएगी.
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बताते चलें कि इस प्रकार मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य की बदलती जनसांख्यिकी, सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर बेहद स्पष्ट संदेश दिया. उन्होंने कहा कि असम की जमीन, संस्कृति और अस्मिता बचाने की लड़ाई अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सभ्यता की लड़ाई है, जिसमें हर असमिया नागरिक का योगदान अनिवार्य है.
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