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कुंभ क्या है ? कुंभ क्यों है ? कुंभ कब से है ? और कुंभ किसलिए है ? कुंभ पर details Documentry.

त्रिवेणी जहाँ गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है । त्रिवेणी जहाँ पृथ्वी का सबसे बड़ा लोकपर्व है । त्रिवेदी जहाँ उत्सव है, वैश्विक समागम है और सृष्टि का सबसे बड़ा मंच है । इसी त्रिवेणी पर त्याग, तप, हठ, योग को सम्भालने वालों का जमावड़ा है । नाम कुम्भ है, जो समरसता के लिए ब्रह्माण्ड भर में सबसे बड़ी धरा है । 144 साल बाद महाकुंभ हो रहा है। जीवित मनुष्य के पहला और आख़िरी महाकुंभ है.

त्रिवेणी जहाँ गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है । त्रिवेणी जहाँ पृथ्वी का सबसे बड़ा लोकपर्व है । त्रिवेदी जहाँ उत्सव है, वैश्विक समागम है और सृष्टि का सबसे बड़ा मंच है। इसी त्रिवेणी पर त्याग, तप, हठ, योग को सम्भालने वालों का जमावड़ा है । नाम कुम्भ है, जो समरसता के लिए ब्रह्माण्ड भर में सबसे बड़ी धरा है । 

144 साल बाद महाकुंभ हो रहा है। जीवित मनुष्य के पहला और आख़िरी महाकुंभ है। प्रयागराज की धरा पर करोड़ों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा है। जिधर नज़र घुमायेंगे आपको नरमुण्ड नज़र आयेंगे। ना सिर्फ़ भारत बल्कि विश्व के हर कोने से लोग कुंभ आते हैं और स्नान, ज्ञान, व्रत, त्याग, कथा का लाभ पाते हैं। कुंभ ऐसा प्रयोजन है जिसमें श्रद्धालु लाभार्थी हैं। संत साधु वैरागी साक्षी हैं। व्यापारी सहभागी हैं ।

अब सवाल है कि इतना विहंगम जुटान क्यों? जवाब है अमृत । जो कि समुद्र मंथन से निकला। इसकी बूंदे प्रयागराज में छलक कर गिरीं । और सबसे बड़ी यही वजह है कि अमरता का लालच लोगों को कुम्भ की ओर खींचकर ला रहा है। साधु, संत, महंत, बैरागी, बाबा, योगी, आचार्य, महामंडलेश्वर और शंकराचार्य सभी कुंभ में विराजित हो गए हैं। जरा सोचिए अमृत की महत्ता, जिसने घर छोड़ दिया, समाज त्याग दिया, धन दौलत का परित्याग कर दिया, राज पाठ से मुंह मोड़ लिया, सत्ता का मोह छोड़ दिया, उसे भी अमृत की लालसा है ।सनातन में कहा गया है कि चाह, इच्छा और लालसा से करोड़ों गुना आगे है सन्तत्व. एक ऐसे लोगों का समूह जो व्यक्ति के तौर पर मर चुके हैं।जो अपना पिंड दान स्वयं करके संत बने हैं। जिनमें बँटोरने की चाहत ख़त्म हो जाती है । जो सिर्फ़ मनुष्य का दर्द बँटोरते हैं और उसे कम करने के लिए तमाम कोशिशें करते हैं । ज़िन्हें सिर्फ़ मोक्ष चाहिए उनमें अमृत के लिए ऐसी होड़ क्यों ? आख़िर कैसे गृहहीन साधु संत इच्छायों के घोड़े पर सवार हो जाते हैं ? 

कुंभ के ऐसा महापर्व है जहाँ बिना किसी न्योते के, बिना किसी अपील के और बिना किसी शासनादेश के जाति और धर्म को दरकिनार करके लोग सहस्त्राब्दियों से इकट्ठा होते आ रहे हैं। जो हर 6 साल में लग रहा है वो अर्ध कुंभ है। ये अर्ध कुंभ सिर्फ़ प्रयागराज और हरिद्वार में लगता है। हर 12 साल में लगने वाले को पूर्ण कुंभ कहते हैं।जो प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है। पूर्ण कुंभ के बाद यानि 144 साल पर महाकुंभ का आयोजन होता है।2025 में प्रयागराज में इसी महाकुंभ में अब तक करोड़ों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगा ली है।

40 से 60 वर्ग किलोमीटर में रेत पर बसाए गए शहर में नए नदी किनारे आस्था का जनसमुद्र उमड़ पड़ा है।नरमुंडों का झुंड चलता फिरता नजर आ रहा है। साधुओं का जमघट है. नागाओं का करतब है।अजब ग़ज़ब बाबाओं का हुजूम है।

एक डुबकी मात्र के लिए गृहस्थी की गठरी सिर पर लादे करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज आ रहे हैं। बेफिक्र का आलम समझिए, ना रहने का ठिकाना, ना सोने के लिए छत और ना ही पेट की भूख शांत करने की कोई व्यवस्था। बावजूद इसके अमृत स्नान के लिए सब दौड़े दौड़े चले आ रहे हैं 

कुंभ मेला है। भक्तों का समागम है। अखाड़ों के जुटान की बेला है। यहाँ शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, आचार्य, पीठाधीश्वर के ज्ञान का समावेश होता है। इंसान से इंसान की जुड़ने की भावना होती है।

कुंभ का लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेनसांग ने सबसे पहले दिया है। उन्होंने अपनी यात्राओं को कागजों की शक्ल दी थी। 
वेद और पुराण में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन कुंभ को पुराणों से जोड़ा जरूर जाता है। 

एक पौराणिक कथा है. देवताओं के राजा इंद्र ने घमंड में आकर ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया। गुस्से में ऋषि दुर्वासा ने श्राप दे दिया। श्राप ऐसा कि देवताओं का धन दौलत और ऐश्वर्य सब नष्ट होने लगा। देवता परेशान हो गए। भागकर भगवान विष्णु के पास गए। बोले बचा लीजिए वरना कंगाल हो जाएँगे। भगवान विष्णु ने श्राप से मुक्त होने का उपाय सुझाया। उपाय ये था कि दैत्यों के साथ मिलकर समुन्द्र मंथन करना होगा। उस मंथन से कई दिव्य रत्न निकलेंगे। उसी से अमृत भी निकलेगा।अमृत पीने से देवता अमर हो जाएँगे और स्वर्ग का वैभव भी लौट आयेगा। इंद्र तैयार हो गए. तुरंत दैत्य राज बलि से संपर्क किया। बलि भी अमृत की लालसा में समुंद्र मंथन को तैयार हो गए। फिर मंथन शुरू हुआ जिसके लिए वासुकि नाग की रस्सी बनाई गई और मदरांचल पर्वत को मथानी। जैसे समुंदर मंथन शुरू हुआ, एक एक करके 14 रत्न निकले और अंत में अमृत कलश लेकर भगवान धन्वंतरि सामने आए।

समुंद्र मंथन से अमृत के बाहर आते ही देवता और दैत्य में होड़ लग गई। अमृत को लेकर युद्ध शुरू हो गया। इंद्र देव ने बेटे जयन्त को अमृत देकर देवलोक भेजा। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने जयंत को जाते देख लिया। जयंत से दानवों की झड़प हुई। जयंत सकुशल अमृत लेकर देवलोक तो पहुँच गए मगर छिना झपटी में पृथ्वी पर चार जगह अमृत की बूँदें गिरी। ये बूँदें प्रयाग के संगम तट पर, उज्जैन के क्षिप्रा तट पर, हरिद्वार में गंगा के किनारे और नासिक में गोदावरी तट पर गिरी।12 दिन तक सुर असुर के बीच भयंकर जंग हुई। इस युद्ध में कुम्भ यानी अमृत कलश की सुरक्षा की जिम्मेदारी बृहस्पति, चंद्रमा, सूर्य और शनि की थी। चंद्रमा को अमृत गिरने से, बृहस्पति को उसे दानवों से बचाने, शनि को देवताओं की हिफाजत और सूर्य के पास कुंभ को टूटने से बचाने का जिम्मा था। तब से जब भी सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में आता है, तो प्रयाग में महाकुंभ लगता है।

2025 का महाकुंभ भव्य है, दिव्य है, अद्भुत है, विहंगम है। करीब 45 करोड़ लोगों का जमघट होना है।लिहाज़ा तैयारियां सफ़ाई से लेकर सुरक्षा, स्वास्थ्य और ट्रैफिक की बेहतरीन है। एक छोटा सा शहर जिसकी ख़ुद की आबादी मात्र 70 लाख है वहाँ 45 करोड़ लोगों का हुजूम आ जाए तो व्यवस्था देखते बनती है। जमीन से आसमान तक, संगम से तट तक, शहर से गलियों तक, नाव से गाड़ियों तक। रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, गाड़ियां, रेलगाड़ियां शायद ही ऐसी कोई चीज हो जो सुरक्षा एजेंसियों की पैनी निगाहों से बच या छुप जाए।

सबसे पहले आप सुरक्षा घेरा समझिए :


करीब 100000 सुरक्षा कर्मी। 70 जिलों की 50 हजार पुलिस। यूपी होमगार्ड्स। पीएसी।एटीएस। 3000 CCTV। NSG के 100 कमांडो। एंटी टेरर स्कॉड (ATS)। स्पेशल टास्क फोर्स (STF)।नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (NDRF)। स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF)।
4,300 फायर सेफ्टी यूनिट।56 थाने। 155 चौकी। 10 पिंक बूथ। 3 एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट। 400 महिला पुलिसकर्मी। 30 स्पाटर्स (गुप्तचर) की टीम। 123 वॉच टावर। फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर। आसमान और पानी वाले ड्रोन। डिजिटल वॉरियर्स।

आज के महाकुंभ में व्यवस्था के बाद एक फिर से कुंभ पर लौटते हैं।

जरा सोचिए एक ऐसा पर्व जिसका कोई वैदिक प्रमाण ना हो, फिर भी दिन तारीख़ और मुहूर्त देखकर करोड़ों लोगों का, संतों का, वैरागियों का, नागाओं का, जमा हो जाना आश्चर्य का लबादा नहीं तो और क्या है ? 

ऋग्वेद, वाराह पुराण, नारदीय पुराण समेत कई ग्रंथों में कुंभ शब्द आपको लिखा जरूर मिलेगा लेकिन उसका जल प्रवाह से कोई संबंध नहीं है। अब ऐसे में सवाल है कि कुंभ का अतीत फिर देखा कैसे जाए? तो आपको बताए कि आज के कुंभ का मिलान आपको सम्राट हर्षवर्धन के काल खंड से मिलेगा जिनके शासन के दरम्यान ही चीनी यात्री ह्वेनसांग छठी शताब्दी ईस्वी में भारत आए थे। उन्होंने सम्राट हर्ष द्वारा दान देने की 75 दिनों की पूरी प्रक्रिया का वर्णन किया। हर्षवर्धन का राज 606 से 647 ईसवी तक माना गया है। लगभग 2000 साल पहले। सम्राट हर्ष की चर्चा पूरे विश्व में थी कि वो हर कुंभ वस्त्र छोड़कर सब दान करके चले जाते है। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में इसका विस्तार से जिक्र किया है।

अब सवाल सबके मन में है कि कुंभ में अखाड़ों का, शंकराचार्य का और महामंडलेश्वर का क्या महत्व है ?

आपको बता दें कि चार पीठ होते है और उन पीठों की रक्षा के तेरह अखाड़े। ये सभी अमृत स्नान पर सबसे पहले गाजे बाजे के साथ स्नान करते हैं। पीठ प्रमुख को शंकराचार्य कहते हैं। अखाड़ों को वैचारिक और आध्यात्मिक आधार देने का काम महामंडलेश्वर का होता है। महामंडलेश्वर एक से ज़्यादा होते हैं मगर मुख्य महामंडलेश्वर को आचार्य की उपाधि दी जाती है।

हिंदू धर्म की ध्वजा लहराती रहे इसके लिए आदि गुरु शंकराचार्य आठवीं नौवीं शताब्दी के दौरान अखाड़ों की स्थापना की।

उत्तर में बद्रिकाश्रम, पश्चिम में द्वारका, पूर्व में पुरी और दक्षिण में शृंगेरी मठों के नाम पड़े ज्योतिष पीठ, शारदा पीठ, गोवर्धन पीठ और शृंगेरी पीठ। इन मठों की रक्षा और हिंदू धर्म पर बढ़ते इस्लाम के खतरे से निपटने के लिए अखाड़े बनाए गए। जिसका मकसद सीधा सा था। शास्त्र के साथ शस्त्र का ज्ञान देना। मुग़ल आक्रांताओं को मिट्टी में मिलाने के लिए शेर दिल सेना को तैयार रखना।


जब अखाड़ों का निर्माण हुआ तो सिर्फ़ चार ही थे। लेकिन विचारों में अंतर होने की वजह से धीरे धीरे बँटवारा होता गया और आज 13 अखाड़ें हैं। इन अखाड़ों में दो सम्प्रदाय हो चुके हैं। जो शिव की आराधना करते हैं, जो नागा कहलाते हैं और जिनकी संख्या 6 है वे शैव अखाड़ा कहलाने लगे। वही जो विष्णु को पूजते हैं, जो खुद को वैरागी कहते हैं और जिनकी संख्या 7 है वे वैष्णव अखाड़े कहलाए। कुल मिलाकर इन्हीं तेरह अखाड़ों के भरोसे ही हिंदू धर्म की ध्वज पताका हमेशा लहराती रहती है।

एक सवाल ज़ेहन में सबके रहता है कि आख़िर कुंभ से पहले नागा रहते कहाँ और कुंभ में अचानक से लाखों नागाओं का हुजूम कैसे प्रकट हो जाता है ?

इस सवाल का जवाब है कोतवाल। जो कि हर एक 13 अखाड़ों में होते हैं। जब भी दीक्षा लेने के बाद नागा साधु अखाड़ा छोड़कर जंगल या पहाड़ में जाते हैं तो कोतवाल ही अखाड़े और नागाओं के बीच कड़ी बनते हैं। कुंभ या अर्धकुंभ पर नागाओं को कोतवाल ही सूचना भिजवाते हैं। यानी कोतवाल का मेसेज मिलते ही नागा कुंभ स्थल की ओर रवाना हो जाते हैं ।

2025 का कुंभ हाईटेक है। इसे नाम दिया हुआ है डिजिटल महाकुंभ। यहाँ साधु भी आपको लेटेस्ट आईफ़ोन, स्मार्ट वॉच, लैपटॉप के साथ नज़र आयेंगे। शंकराचार्य हो या फिर महामंडलेश्वर या फिर कथा वाचक सबके आगे पीछे कैमरा लिए दो चार लोग नज़र ज़रूर आयेंगे जो इनकी तस्वीरें और वीडियो को सोशल मीडिया पर शानदार तरीक़े से एडिट करके डालने में माहिर होंगे। महाकुंभ में त्याग और तपस्या के साथ वैभव और विलास भी दिखेगा। डेढ़ लाख का टेंट कभी आपने सुना था। इस बार उसकी बुकिंग भी फुल है। संगम में याट से स्नान करने वाली व्यवस्था आपको पहली बार दिखेगी। आधुनिक स्विस कॉटेज आपको मेला क्षेत्र में दिखेंगे। शास्त्रार्थ की धरती पर आप देखेंगे भव्य पंडाल की होड़। किसका पंडाल कितना आधुनिक और सुसज्जित है, इस बार आपको जरूर दिखाई देगा।

2025 के महाकुंभ अपने पहनने का कपड़ा मात्र लेकर अगर आप पहुँच जाएँगे तो ना रहने की समस्या और ना खाने की। करोड़ों को भीड़ के बाद अस्थाई सड़क चमचमाती नज़र आएगी। हर चौराहों पर सफ़ाईकर्मियों का सैलाब दिखेगा। हर सेक्टर में थाने और उनके हजारों पुलिसवाले सुरक्षा पहरा करते नज़र आयेंगे। इस बार के कुंभ में अगर भाई से भाई बिछड़ा तो तुरंत खोया पाया से वापस भी मिल जाएगा। सड़क किनारे हर सौ मीटर पर लाइन से डस्टबिन रखा दिखेगा। मसलन सफ़ाई, सुरक्षा और व्यवस्था एकदम चौकस है।

इस रिपोर्ट में जाते जाते सिर्फ़ इतना कि कुंभ का अर्थ है घट, कलश, कमंडल जो कि संचय का पात्र है। तो आप संचय करने के मूड में ही जाए। वैर से उठें, भेद से उठें, भ्रम से उठें, स्वार्थ से उठें।  यही कहता है कुंभ। यही कहता है समय। यही कहती हैं त्रिवेणी।

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