कुँवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं को मासिक शिवरात्रि व्रत रखने से होते हैं ये बड़े लाभ, जानें व्रत की पूजा विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन कुंवारी कन्याओं को व्रत रखने से महादेव की असीम कृपा रहती है, और अच्छे वर की प्राप्ति होती है, और विवाहित महिलाओं के व्रत रखने से उनके वैवाहिक जीवन बेहतर बना रहता है.
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प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. 18 नवंबर को मासिक शिवरात्रि के साथ आडल योग भी बन रहा है. इस दिन जातक भोलेनाथ की अराधना करते हैं और कुछ लोग व्रत भी रखते हैं.
सूर्य-चंद्र की स्थिति और शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 2 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर शाम 4 बजकर 6 मिनट तक रहेगा.
व्रत और पूजा का महत्व
मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन कुंवारी कन्याओं को व्रत रखने से महादेव की असीम कृपा रहती है, और अच्छे वर की प्राप्ति होती है, और विवाहित महिलाओं के व्रत रखने से उनके वैवाहिक जीवन बेहतर बना रहता है.
पुराणों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता है. शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती तथा रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था. जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते हैं, वे इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ करके एक वर्ष तक निरन्तर कर सकते हैं.
व्रत की पूजा और विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें. एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें, गंगाजल से अभिषेक करें और बिल्वपत्र, चंदन, अक्षत, फल और फूल चढ़ाएं. भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र के जाप से भी लाभ मिलता है. 11 बार रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें. शिवलिंग के सम्मुख बैठकर राम-राम जपने से भी भोलेनाथ की कृपा बरसती है.
क्या है आडल योग?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, आडल योग एक अशुभ योग माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है. ऐसे में बचने के लिए धर्मशास्त्रों में सूर्य पुत्र की पूजा की विधि बताई गई है, जिसके करने से उनकी कृपा बनी रहती है और दुष्प्रभाव भी खत्म होते हैं.
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