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केदारनाथ डोली यात्रा 2025: पंचमुखी डोली से खुलते हैं बाबा केदार के कपाट, जानिए इस पवित्र परंपरा की पूरी कहानी

केदारनाथ मंदिर के कपाट इस साल 2 मई 2025 को भक्तों के लिए खोले जाएंगे, लेकिन इससे पहले हर साल की तरह पंचमुखी डोली यात्रा की पवित्र परंपरा निaभाई जा रही है। यह यात्रा ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से शुरू होती है, जहां शीतकाल के दौरान भगवान केदारनाथ की भोगमूर्ति छह महीने तक विराजमान रहती है। कपाट खुलने से पहले डोली को विधिवत पूजा-पाठ के बाद केदारनाथ धाम तक ले जाया जाता है।

17 Apr, 2025
( Updated: 17 Apr, 2025
07:39 AM )
केदारनाथ डोली यात्रा 2025: पंचमुखी डोली से खुलते हैं बाबा केदार के कपाट, जानिए इस पवित्र परंपरा की पूरी कहानी
ऊखीमठ की शांत वादियों में जब नगाड़ों की आवाज़ गूंजती है, तो यह सिर्फ़ एक धार्मिक आयोजन नहीं होता, यह होता है बाबा केदार की डोली यात्रा की शुरुआत. हर साल की तरह इस साल भी केदारनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले पंचमुखी डोली यात्रा की परंपरा निभाई जा रही है, जो हजारों श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का केंद्र बन चुकी है.
2025 में केदारनाथ के कपाट 2 मई को खुलेंगे, लेकिन इससे पहले जो भव्य यात्रा शुरू होती है ऊखीमठ से केदारनाथ तक, वह भगवान शिव के जीवंत स्वरूप को भक्तों के बीच ले जाती है.
डोली यात्रा, परंपरा से जुड़ी भावनाओं का तीर्थ


बात 2 मई 2025 की नहीं, बल्कि उस अनदेखे और अनछुए अध्यात्म की है जो बाबा केदार की डोली यात्रा में समाया होता है. जब ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से पंचमुखी डोली निकलती है, तो ऐसा लगता है जैसे साक्षात शिव स्वयं कैलाश से उतरकर भक्तों के बीच यात्रा पर निकल पड़े हों. यह सिर्फ़ कोई मूर्ति नहीं होती, बल्कि वह भोग मूर्ति होती है — चांदी से निर्मित, पंचमुखी स्वरूप में, जिसमें बाबा केदारनाथ छह महीने ऊखीमठ में और छह महीने केदारनाथ में विराजते हैं.
क्यों होती है डोली यात्रा?


साल में जब अक्टूबर-नवंबर के बीच केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं, तब बाबा केदारनाथ की भोगमूर्ति को शीतकालीन गद्दीस्थल ऊखीमठ लाया जाता है. यहां ओंकारेश्वर मंदिर में छह महीने तक पूजा होती है. फिर अप्रैल-मई में जब केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि तय होती है, तो पंचमुखी डोली यात्रा के साथ बाबा की भोगमूर्ति को वापस धाम ले जाया जाता है.
यही डोली यात्रा दरअसल कपाट खुलने की आधिकारिक शुरुआत होती है. यह यात्रा सिर्फ शारीरिक दूरी नहीं तय करती, यह भक्त और भगवान के बीच की आध्यात्मिक दूरी को भी खत्म करती है.

कैसे होती है ये यात्रा?

इस पवित्र यात्रा की शुरुआत से पहले बाबा भैरवनाथ की पूजा की जाती है, जिन्हें केदारनाथ धाम का रक्षक देवता माना जाता है. इसके बाद पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और स्थानीय लोगों की अगुवाई में डोली यात्रा शुरू होती है.

डोली यात्रा का मार्ग:

ऊखीमठ से गुप्तकाशी

गुप्तकाशी से फाटा

फाटा से गौरीकुंड


गौरीकुंड से पैदल मार्ग से केदारनाथ धाम

पूरे रास्ते में भक्त 'जय बाबा केदार' के नारों से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं. जगह-जगह फूलों से स्वागत होता है, ढोल-नगाड़ों की आवाज़ से देवभूमि गूंज उठती है.
इस डोली को 'पंचमुखी' इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें भगवान शिव के पांच अलग-अलग मुखों का प्रतीकात्मक रूप होता है. हर मुख शिव के एक रूप को दर्शाता है ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव, और सद्योजात. इन रूपों का दर्शन भक्तों को अध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है.
डोली में विराजमान भोगमूर्ति पूरी तरह चांदी से निर्मित होती है, जिसे विशेष पुजारी और पवित्र ध्वजों के साथ ले जाया जाता है.
चार धाम यात्रा की शुरुआत भी साथ


2025 में चारधाम यात्रा की शुरुआत 30 अप्रैल से हो रही है, जब गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे. इसके बाद 2 मई को केदारनाथ, और फिर 4 मई को बद्रीनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. चारधाम यात्रा की विधि के अनुसार पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री, इसके बाद केदारनाथ, और अंत में बद्रीनाथ का दर्शन किया जाता है. डोली यात्रा में शामिल होना एक आध्यात्मिक अनुभव होता है. जब हजारों लोग एकसाथ नंगे पांव, चिलचिलाती धूप या ठंडी हवाओं में बाबा केदार की डोली के साथ चलते हैं, तो वह दृश्य सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मिक होता है.


टेक्नोलॉजी और आस्था का मेल

इस बार डोली यात्रा और कपाट खोलने का सीधा प्रसारण ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और टीवी चैनलों पर किया जाएगा, जिससे दुनिया भर में बैठे शिवभक्त इसका लाभ ले सकें. उत्तराखंड सरकार ने तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए हेल्थ चेकअप कैंप, मोबाइल टॉयलेट, ई-टिकटिंग और लाइव GPS ट्रैकिंग जैसी सेवाएं शुरू की हैं.
हर साल लाखों श्रद्धालु केदारनाथ धाम की यात्रा करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग उस डोली यात्रा की गहराई और महत्व को समझते हैं, जो बाबा को सर्दियों में ओंकारेश्वर लाती है और गर्मियों में वापस हिमालय की गोद में ले जाती है.

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