Advertisement

दिन में दो बार 'गायब' क्यों हो जाता है महादेव का ये अद्भुत मंदिर? क्या है इसका रहस्य?

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उच्च ज्वार (High Tide) के समय यह पूरी तरह से पानी में डूब जाता है और दिखाई देना बंद हो जाता है. जैसे ही ज्वार उतरता है (Low Tide), मंदिर फिर से पूरी तरह से प्रकट हो जाता है. यह प्रक्रिया दिन में दो बार होती है – सुबह और शाम. जब पानी मंदिर को ढक लेता है, तो ऐसा लगता है मानो मंदिर समुद्र में समा गया हो. स्थानीय लोग इसे 'गायब होना' और 'प्रकट होना' कहते हैं, जो सचमुच एक अद्भुत अनुभव है. लोगों का मानना है की समुद्र देवता महादेव का जलाभिषेक स्वयं करते हैं. इस अद्भुत नज़ारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं.

भारत अपने अद्भुत मंदिरों और उनसे जुड़ी रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है. इन्हीं में से एक है गुजरात के वडोदरा जिले में स्थित भगवान शिव का स्तंभेश्वर महादेव मंदिर. यह मंदिर अपनी एक अविश्वसनीय विशेषता के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है – यह दिन में दो बार, कुछ घंटों के लिए, समुद्र में 'गायब' हो जाता है और फिर वापस प्रकट हो जाता है! यह अनोखा नज़ारा देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु और जिज्ञासु लोग यहाँ आते हैं. आइए जानते हैं इस चमत्कारिक मंदिर से जुड़ी दिलचस्प कहानी और इसके पीछे का विज्ञान.

कहां स्थित है यह रहस्यमयी मंदिर?

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के वडोदरा में, अरब सागर के किनारे स्थित है. यह खंभात की खाड़ी के तट पर मौजूद है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और सदियों से यहाँ पूजा-अर्चना की जाती रही है.

दिन में दो बार 'गायब' होने का रहस्य

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उच्च ज्वार (High Tide) के समय यह पूरी तरह से पानी में डूब जाता है और दिखाई देना बंद हो जाता है. जैसे ही ज्वार उतरता है (Low Tide), मंदिर फिर से पूरी तरह से प्रकट हो जाता है. यह प्रक्रिया दिन में दो बार होती है – सुबह और शाम. जब पानी मंदिर को ढक लेता है, तो ऐसा लगता है मानो मंदिर समुद्र में समा गया हो. स्थानीय लोग इसे 'गायब होना' और 'प्रकट होना' कहते हैं, जो सचमुच एक अद्भुत अनुभव है. लोगों का मानना है की समुद्र देवता महादेव का जलाभिषेक स्वयं करते हैं. इस अद्भुत नज़ारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. 

क्या है इसके पीछे की दिलचस्प कहानी?

इस अनोखे मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ताड़कासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था और उनसे वरदान प्राप्त किया था कि उसका वध भोलेनाथ के पुत्र ही कर सकते हैं, और वह भी सिर्फ छह दिन की उम्र में. इस वरदान के कारण ताड़कासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था. देवताओं के अनुरोध पर, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने जन्म के छठे दिन ही ताड़कासुर का वध कर दिया. 

ताड़कासुर का वध करने के बाद, कार्तिकेय को यह जानकर बहुत दुख हुआ कि उन्होंने एक शिव भक्त का वध किया है. जब वे दुखी होकर भगवान विष्णु के पास गए, तो भगवान विष्णु ने उन्हें पश्चाताप के लिए एक शिवलिंग स्थापित करने की सलाह दी. तब भगवान कार्तिकेय ने यहीं इस शिवलिंग की स्थापना की. इस शिवलिंग को 'स्तंभेश्वर' नाम दिया गया, जिसका अर्थ है 'स्तंभ के देवता'. चूंकि समुद्र स्वयं इस शिवलिंग का अभिषेक करता है, इसलिए इसे 'गायब' होने वाला मंदिर माना जाता है, जहाँ शिव का अभिषेक स्वयं प्रकृति करती है.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement

LIVE