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पढ़ाई में अव्वल, केमिस्ट्री टॉपर… वो गैंगस्टर जिससे कांपता था अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद, आशिकी ने ली जान!

एक समय था जब दाऊद इब्राहिम मायानगरी में अपने आप में खौफ, डर और दहशत का दूसरा नाम बन गया था. लेकिन एक शख़्स था जिससे एक्सटॉर्शन और काले कारनामों से अरबों का साम्राज्य खड़ा करने वाला ये ख़ूंखार डॉन भी कांपता था. वो शख़्स जिसके अपराध की दुनिया में क़दम रखने की वजह उसकी वर्दी से नफ़रत थी.

26 Aug, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
05:47 PM )
पढ़ाई में अव्वल, केमिस्ट्री टॉपर… वो गैंगस्टर जिससे कांपता था अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद, आशिकी ने ली जान!
Image Credit: Social Media

अंडरवर्ल्ड की दुनिया का बेताज बादशाह दाऊद इब्राहिम, जिसने अपराध की दुनिया में बचपन में ही कदम रख लिया था और फिर बेहद कम समय में अंडरवर्ल्ड की दुनिया में अपनी धाक जमा ली. एक समय में दाऊद इब्राहिम मायानगरी में खौफ, डर, दहशत का पर्यायवाची बन गया था, लेकिन एक्सटॉर्शन और काले कारनामों से अरबों का साम्राज्य खड़ा करने वाला दाऊद भी एक शख़्स के नाम से कांपता था. वो शख़्स था मान्या सुर्वे. मान्या सुर्वे वो नाम है जिसकी अपराध की दुनिया में क़दम रखने की वजह उसकी वर्दी से नफ़रत थी. जानते हैं कैसे केमिस्ट्री का ब्राइट स्टूडेंट मनोहर अर्जुन सुर्वे बन गया डॉन मान्या सुर्वे. 

8 अगस्त 1944 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के रणपत गांव में एक लड़के ने जन्म लिया. जिसका नाम रखा गया मनोहर अर्जुन सुर्वे. उस वक्त रत्नागिरी मुंबई प्रेसिडेंसी का ही हिस्सा हुआ करता था. साल 1952 में अर्जुन अपनी मां के साथ रत्नागिरी से मुंबई आ गया. यहां अर्जुन का सौतेला पिता भी रहता था. अब पूरा परिवार एक साथ रहने लगा था. अर्जुन सुर्वे शुरूआत से ही पढ़ाई में काफ़ी तेज़ था. उसने मुंबई के कीर्ति एम डंगर कॉलेज में एडमिशन लिया. यहां 78 फ़ीसदी के साथ मनोहर अर्जुन सुर्वे ने ग्रेजुएशन किया. अर्जुन बचपन से ही पढ़ लिखकर अपनी मां के सपनों को पूरा करना चाहता था लेकिन क़िस्मत ने अजीब खेल खेला और सीधा शरीफ अर्जुन, डॉन मान्या बन गया. 

सौतेले भाई की अंडरवर्ल्ड से यारी 

दरअसल, मनोहर अर्जुन सुर्वे जहां एक भोला-भोला होशियार छात्र था तो दूसरी ओर उसका सौतेला भाई भार्गव दादा बदमाश था. अपराध की दुनिया में भार्गव की गहरी पैठ जम गई थी. भार्गव के साथ उसका दोस्त सुरेश देसाई भी कुख्यात अपराधी था, लेकिन दोनों अर्जुन को काफ़ी मानते थे. भार्गव दादा और उसका दोस्त सुरेश दोनों ही चाहते थे कि अर्जुन पढ़ लिखकर नाम कमाए. दोनों अर्जुन की पढ़ाई के खर्चे में उसकी मदद भी करते थे. भार्गव दादा हमेशा अर्जुन से ये ही कहते थे कि, ‘पढ़ाई के लिए तुम्हें जितने पैसे चाहिए मांग लेना, दुनिया की फिक्र मत करना, तुम्हारा ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर होना चाहिए’.

भाई का राजदार, पुलिस ने माना गुनहगार 

दिन बीतते गए फिर आया साल 1969. जब भार्गव दादा की डांडेकर नाम के एक शख्स से बहस हो गई थी. उस वक्त वहां भार्गव दादा के दोस्त सुरेश देसाई के साथ साथ मनोहर अर्जुन सुर्वे यानी मान्या भी मौजूद था. भार्गव और डांडेकर के बीच बहस इतनी बढ़ गई थी कि, डांडेकर की हत्या कर दी गई. इस मामले में पुलिस ने भार्गव दादा, सुरेश देसाई के साथ अर्जुन को भी अपराधी करार दे दिया. जबकि हत्या अर्जुन ने नहीं उसके भाई भार्गव ने की थी, लेकिन पुलिस की नज़र में वो अपराधी बन चुका था. यहीं से शुरू हुई मनोहर अर्जुन सुर्वे के मान्या सुर्वे बनने की कहानी. 

डांडेकर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार मान्या को कोर्ट से सज़ा सुनाने के बाद जेल भेज दिया गया. जेल में मान्या के साथ पुलिस बेहद सख़्ती से पेश आई. उसे मारा पीटा गया, पुलिस के टॉर्चर ने उसके आपराधिक प्रवृति का बना दिया. 

जेल गया था मासूम छात्र, बनकर निकला गैंगस्टर 

पुणे की यरवड़ा सेंट्रल जेल में रहते हुए मान्या की मुलाक़ात दूसरे गैंगस्टर से हुई. जेल में अक्सर गैंगवार होता था, जिसमें मान्या का ही नाम सबसे ऊपर होता था. बढ़ते गैंगवार को देखते हुए जेल प्रशासन ने मान्या को यरवडा से रत्नागिरी जेल शिफ्ट करने का फ़ैसला लिया. जो मान्या को बिल्कुल मंज़ूर नहीं था. उसने जेल के अंदर ही पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया वह भूख हड़ताल पर बैठ गया. कई दिनों तक भूखे रहने से उसका वजन क़रीब 20 किलो तक कम हो गया और हालत ख़राब होती गई. इसके बाद मजबूरन पुलिस को उसे अस्पताल में शिफ़्ट करवाना पड़ा. 9 साल जेल में रहने के बाद इलाज के दौरान ही साल 1979 में मान्या हॉस्पिटल से फ़रार हो गया. इसके बाद मुंबई की सड़कों पर शुरू हुआ मौत का तांडव. अब मान्या पहले वाला मासूम छात्र नहीं था वह गैंगस्टर बनकर लौटा और आते ही खुदका बड़ा गैंग खड़ा किया. एक समय ऐसा भी आया जब नशे के कारोबार में मान्या का मुंबई में एकछत्र राज था. वह अमीरों से हफ़्ता वसूली करता और लूट की बड़ी वारदात को अंजाम देता था. 

पुलिस को चकमा देने में माहिर 

मान्या सुर्वे ने शेख मुनीर और विष्णु पाटिल जैसे गैंगस्टर के साथ मिलकर मुंबई में बड़े बड़े अपराध को अंजाम देना शुरू कर दिया. 15 अप्रैल 1980 यह दिन मुंबई के अंडरवर्ल्ड में एक नए खूनी अध्याय की शुरुआत थी. इस दिन मान्या सुर्वे और उसकी टीम ने शेख मुनीर के दुश्मन अजीज को मौत के घाट उतार दिया. फिर एक के बाद एक कई मर्डर किए. पुलिस की नजरें इस गैंग पर टिक गई थीं लेकिन मान्या हर बार बच निकलता. 

पुलिस से सीधा पंगा 

30 अप्रैल 1980 इस दिन मान्या और उसके गैंग के लोगों ने पुलिस पर हमला बोल दिया. अब मान्या ने पुलिस से सीधा पंगा ले लिया था. उसके निशाने पर सब इंस्पेक्टर दाभोलकर भी था. दाभोलकर वही पुलिसकर्मी था जिसने जेल में मान्या पर सबसे ज्यादा जुल्म किए थे. मान्या अक्सर दाभोलकर के घर भी पहुंच जाता और खुलेआम धमकी देता. अपने शातिर दिमाग और जबरदस्त ताकत के दम पर उसने खुद को मुंबई का सबसे खतरनाक गैंगस्टर बना लिया था. उसके नाम से ही पुलिस और बाकी गैंग कांपने लगे थे. 

दाऊद के भाई को ठिकाने लगाया

यह तो सिर्फ शुरुआत थी मान्या सुर्वे की असली कहानी अभी बाकी थी. उसने मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद को भी ख़ौफ़जदा कर दिया था. अपराध और तस्करी की दुनिया में दाऊद का नाम उभरने लगा था. दाऊद इब्राहिम से पहले तस्करी में डॉन करीम लाला का दबदबा था. दरअसल, दाऊद जब मुंबई में डॉन के रूप में अपनी पहचान बना रहा था. तब उसके सामने दो बड़े नाम पहले से जरायम की दुनिया में क़ाबिज़ थे. पहला करीम लाला और दूसरा हाजी मस्तान, लेकिन दाऊद की दुश्मनी करीम लाला से ही थी. जबकि हाजी मस्तान के लिए दाऊद ने कई बार काम किया. मुंबई में दाऊद को पहचान दिलाने में हाजी मस्तान का भी अहम रोल था. वहीं, करीम लाला को दाऊद अपना दुश्मन मानता था. दाऊद और करीम लाला की दुश्मनी बढ़ने लगी थी. दाऊद के पैर पसारने से करीम लाला को नुक़सान होने लगा. दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई थी. दोनों की इस जंग में डॉन हाजी मस्तान को नुक़सान हो रहा था. हाजी मस्तान ने कई बार दोनों को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नाकामयाब रहा. इधर करीम लाला ने दाऊद इब्राहिम को सबक सिखाने की ठान ली और मान्या सुर्वे से हाथ मिला लिया. दाऊद का दबदबा कम करने के लिए मान्या ने भी करीम लाला की पठान गैंग से करीबी बढ़ा ली. 

(Photo: करीम लाला)

अब मान्या को भी एहसास हो चुका था कि अगर उसे मुंबई का नया डॉन बनना है तो उसे दाऊद इब्राहिम से टकराना ही होगा. फिर मान्या ने दाऊद के बड़े भाई शब्बीर कासकर को खत्म करने का प्लान बना लिया. वह शब्बीर के हर मूवमेंट पर नज़र रखने लगा. शब्बीर के साथ-साथ मान्या सुर्वे की नजर उसकी प्रेमिका पर भी थी. मान्या को पता था शब्बीर अपनी प्रेमिका से मिलने ज़रूर आएगा. 

12 फरवरी 1991 की रात शब्बीर गर्लफ़्रेंड के साथ लॉन्ग ड्राइव पर निकला. शब्बीर की कार पेडर रोड से आगे बढ़ी लेकिन अचानक उसे एहसास हुआ कि गाड़ी में पेट्रोल कम है. वह यू-टर्न लेकर पेट्रोल पंप पहुंचा. इस दौरान एक एंबेसडर कार शब्बीर का लगातार पीछा कर रही थी. इस कार में मान्या अपने 5 साथियों के साथ सवार था. शब्बीर को इसकी भनक लग चुकी थी, उसने अपनी कार में रखी गन उठाकर मान्या पर फ़ायरिंग की कोशिश की ही थी कि, सामने से मान्या सुर्वे ने ही उस पर ताबड़तोड़ कई राउंड फ़ायरिंग कर दी. गोली खाने के बाद भी शब्बीर कासकर जिंदा रहा. तब मान्या ने चाकू निकाला और उस पर कई वार कर दिए. इसके बाद शब्बीर ने मौक़े पर ही दम तोड़ दिया. दाऊद इब्राहिम को जैसे ही खबर मिली वह रात 2 बजे भाई की लाश के पास पहुंचा जैसे ही उसने अपने बड़े भाई का लहूलुहान शरीर देखा उसकी आंखों में गुस्से की आग जल उठी. उसने वही मान्या को ख़त्म करने की क़सम खा ली. लेकिन मान्या लगातार दाऊद को चैलेंज करता रहा. मान्या दाऊद इब्राहिम और पुलिस दोनों के ही निशाने पर था. मुंबई पुलिस ने दबिश दी. कई टीमें लगाईं लेकिन मान्या का कोई सुराग नहीं मिला. 

प्यार में मारा गया कुख्यात मान्या!

शब्बीर कासकर की हत्या ने मुंबई पुलिस की साख और लॉ एंड ऑर्डर पर बड़े सवाल खड़े कर दिए. अंडरवर्ल्ड में अब एक नई जंग छिड़ चुकी थी. कासकर की हत्या ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान को भी सकते में डाल दिया. उन्होंने मान्या को जल्द से जल्द पकड़ने के लिए पुलिस को सख़्ती बरतने के निर्देश दिया. इसके बाद 
मुंबई पुलिस ने मान्या को पकड़ने के लिए स्पेशल टीम बनाई. जिसमें 30 पुलिसकर्मी शामिल थे. लेकिन पुलिस भी जानती थी मान्या को पकड़ना इतना आसान नहीं. उसे पकड़ने के लिए उसका ही तरीक़ा अपनाना होगा. इस बीच पुलिस मान्या की बड़ी कमजोरी हाथ लग गई थी. पुलिस को पता चला कि, मान्या सुर्वे की एक गर्लफ़्रेंड है जिसे वह कॉलेज के दिनों से प्यार करता है. वह चोरी छिपे उसे मिलने जाता था. 

मान्या और उसकी मुलाक़ात मुंबई के वडाला इलाक़े में होती थी. पुलिस को पक्की सूचना मिली कि 11 जनवरी 1982 को मान्या सुर्वे अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने वडाला आएगा. यहां सादी वर्दी में पुलिस तैनात हो चुकी थी, गन लोड हो चुकी थी, पुलिस ने ऐसी घेराबंदी कर दी थी कि मान्या को भागने का कोई रास्ता न मिल सके. 

सुबह के क़रीब 10.30 बजे का वक़्त था. वडाला के अंबेडकर नगर बस स्टॉप के पास एक लड़की आकर खड़ी हुई. क़रीब 10 मिनट बाद एक गाड़ी वहां आकर रुकती है और इसमें से उतरता है मान्या सुर्वे. सीनियर सब इंस्पेक्टर यशवंत ने टीम को एक्शन का इशारा कर दिया. पुलिस से बचने के लिए मान्या ने मोज़े में छुपी रिवॉल्वर निकालने की कोशिश की,  लेकिन टीम ने फ़ायरिंग शुरू कर दी थी. सीनियर इंस्पेक्टर इसाक बागबान की पहली गोली सीधा मान्या के सीने में उतरी. पीछे से टीम ने भी उस पर ताबड़तोड़ फ़ायरिंग कर दी. लहूलुहान मान्या ने पुलिस पर कार में रखी एसिड की बोतल फेंकने की भी कोशिश की. लेकिन एसिड का कुछ हिस्सा मान्या पर ही गिर गया था. पुलिस ने मान्या को पकड़ लिया लेकिन अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. 

मान्या का अंत, दाऊद का उदय 

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दावा किया जाता है कि मान्या की मुखबिरी दाऊद इब्राहिम ने ही की थी. क्योंकि वह मान्या से भाई की मौत का बदला लेना चाहता था. हालांकि आज तक पुलिस के मुखबिर के बारे में आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई. मान्या का मर्डर मुंबई पुलिस का पहला एनकाउंटर था. मान्या सुर्वे का एनकाउंटर देश का पहला एनकाउंटर माना जाता है. मान्या के ख़ात्मे के बाद मुंबई में दाऊद इब्राहिम का एकछत्र राज हुआ और उसने करीम लाला की पठान गैंग को भी ख़त्म कर डाला. मान्या सुर्वे पर बॉलीवुड में एक फ़िल्म ‘शूटआउट एट वडाला’भी बनी. साल 2013 में आई इस फ़िल्म में मान्या सुर्वे का किरदार जॉन अब्राहम ने निभाया था. जिस गैंगस्टर ने अपने ख़ौफ़ से पूरी मुंबई को नचाया उसकी मौत का कारन उसकी मोहब्बत ही बन गई. 

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