देश को आज़ादी Gandhi Ji ने दिलाई या फिर Subhash Chandra Bose ने?
महात्मा गांधी सुभाष चंद्र बोस की राजनीति से क्यों चिढ़ते या फिर उसका विरोध क्यों करते थे ? दरअसल गांधी और बोस के बीच की राइवलरी पॉलिटिकली ही नहीं बल्कि आइडियोलॉजिकली भी थी। आज इस रिपोर्ट में हम इसी पर चर्चा करेंगे, साथ ही ये भी समझने की कोशिश करेंगे कि क्या वाक़ई देश को आज़ादी गांधी जी की वजह से मिली या फिर बोस की वजह से मिली ?

अगर मैं आपसे पूछूं कि देश को आज़ादी कैसे मिली ? आपमें से ज़्यादातर लोग आज भी महात्मा गांधी का नाम लेंगे और अहिंसा का जो रास्ता उन्होंने दिखाया था उसका ज़िक्र करेंगे। लेकिन क्या वाक़ई देश को आज़ादी अहिंसा के रास्ते पर चलने से ही मिली ? महात्मा गांधी के सिद्धांतों ने ही देश को आज़ाद कराया या फिर उन स्वतंत्रता सेनानियों का भी इसमें योगदान माना जाये जो 23 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गये ? जिन्होंने अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। अहिंसा और गांधी जी के सिद्धांत आज़ादी मिलने के कई कारणों में से एक कारण हो सकते हैं, लेकिन 100 परसेंट हमें इसी वजह से Independence मिली ये कहना अतिशयोक्ति होगी।
15 अगस्त 1947। इसी दिन भारत को आधिकारिक तौर पर आज़ादी मिली लेकिन इस आज़ादी की जंग कई सालों से लड़ी जा रही थी। आज इस रिपोर्ट में हम कुछ सवाल उठायेंगे, उनके जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे क्योंकि ये सवाल अमूमन पूछने और डिस्कस करने से लोग बचते हैं।लोग बचते हैं इसका मतलब ये नहीं कि ये सवाल पूछे ही ना जाये।
पहला सवाल ये कि क्या वाक़ई आज़ादी अहिंसा यानि Non Violence से मिली ? या फिर सुभाष चंद्र बोस ने जापान के साथ मिलकर जो आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई थी उसकी वजह से ?
1942 में गांधी जी ने Quit India मूवमेंट शुरू किया जिसमें उनका लक्ष्य साफ़ था कि अंग्रेजों भारत छोड़ो, जबकि सुभाष चंद्र बोस ने प्रण लिया कि अंग्रेजों को खदेड़कर ही मानेंगे।इसी साल बोस ने Azad hind फौज खड़ी कर दी। दोनों में से कौन ज़्यादा सफल हुआ आप इसका अंदाज़ा लगा सकते हैं। अब बात करते हैं साल 1944 की। 1944 में गांधी जी ने अंग्रेजों के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि अगर आप अभी भारत छोड़ देंगे तो हम तुरंत Civil disobedience movement खत्म कर देंगे। दरअसल इस आंदोलन में नमक कानून तोड़ना, ब्रिटेन से आयातित सामान खरीदने से इनकार करना, कोई कर नहीं देना और स्कूल कॉलेज जैसी संस्था का बहिष्कार करना शामिल था। हैरानी की बात ये रही की अंग्रेजों ने गांधी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उन्हें वापस भेज दिया। उस वक्त Viceroy On India Lord Wavell हुआ करते थे।
उन्होंने गांधी से कहा कि बात का शुरुआत इस मुद्दे से करने का भी कोई मतलब नहीं है। दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस इस बार भी ज़्यादा सफल साबित हुए। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का नारा देने वाले बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। दिल्ली चलो का नारा देकर उन्होंने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार जीत लिया।
1944 में बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया और हिंदुस्तान की धरती पर आज़ाद हिंद फ़ौज का आगमन हुआ।
बोस के निधन के बाद जो जापान आज़ाद हिंद फ़ौज के साथ था, ब्रिटेन उससे भी बदला लेने की साज़िश रचने लगा था, लेकिन इसी बीच वो हुआ जिसके बारे में अंग्रेजों ने कभी सोचा भी नहीं था। 1946 में मुंबई में ब्रिटिश नाविकों ने विद्रोह कर दिया। आप सोचिये भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए ये अंतिम प्रहार साबित हुआ था। चेन्नई और पुणे में भी ऐसा विरोध हुआ कि कराची में दंगे होने लगे और अंग्रेज पूरी तरह से हिल चुके थे। अब अंग्रेजों को पछतावा हो रहा था कि Civil Disobedience तो झेल सकते थे लेकिन अब तो आर्मी ने ही विद्रोह करना शुरू कर दिया था।
इसी बात का ज़िक्र 1955 में बीआर अंबेडकर ने किया था। उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों को इस बात का आभास हो गया था कि अगर उन्हें Rule करना है तो Army को ही मेटेंन करना होगा, उनके बिना कुछ नहीं हो पायेगा। अंग्रेजों को एक नुकसान सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान भी हुआ था। दरअसल ब्रिटेन ने 3 लाख 84 हजार सैनिकों को इस युद्ध में खो दिया था। 21 बिलियन पाउंड का ब्रिटेन के सिर पर कब्जा हो चुका था। ब्रिटिशर्स का भारत में रहना या उस पर कब्जा करके रखना अब उसके गले की फांस बनता जा रहा था। तो फिर उन्होंने क्या किया ? अपना बोरिया बिस्तर उठाया और भारत छोड़ने की तैयारी कर ली।
दिलचस्प बात ये रही कि इससे सिर्फ़ भारत को ही फ़ायदा नहीं हुआ बल्कि 1946 में जॉर्डन, 1949 फिलीस्तीन और श्रीलंका और म्यमांर से भी क़ब्ज़ा हट गया। यानि ग्लोबली अंग्रेजों का दबदबा पूरी तरह से ख़त्म हो चुका था लेकिन सवाल—आख़िर ये सब किस वजह से मुमकिन हो पाया ? Clement Attlee जो कि UK के पूर्व पीएम थे, उन्होंने राज खोला कि वो Independence देने के लिए क्यों तैयार हुए ? बहुत सारे कारणों में से एक कारण था कि आर्मी अंग्रेजों के लिए भरोसमंद नहीं रह गई थी। हालांकि ये बात सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी नहीं कही लेकिन हां जस्टिस पीबी चक्रवर्ती से उन्होंने ऐसा कहा था। इससे एक बात समझ लीजिये कि अंग्रेजों ने भारत इसलिए नहीं छोड़ा था क्योंकि वो अहिंसा से प्रभावित हो गये था या फिर उनका हृदय परिवर्तन हो गया था बल्कि इसलिए छोड़ा था क्योंकि वो समझ गये थे कि अब उनकी दाल गलने वाली नहीं है।
अब दूसरा सवाल ये उठता है कि महात्मा गांधी सुभाष चंद्र बोस की राजनीति से क्यों चिढ़ते या फिर उसका विरोध क्यों करते थे ? दरअसल गांधी और बोस के बीच की राइवलरी पॉलिटिकली ही नहीं बल्कि आइडियोलॉजिकली भी थी। वैसे तो दोनों कई मौक़ों पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ थे, लेकिन बात अगर 1939 की करें तो कांग्रेस क अध्यक्ष चुनाव में बोस ने गांधी के समर्थक को हरा दिया था, लेकिन लगातार गांधी की बढ़ती चिढ़ या फिर Personal Grudges के कारण उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था। हालाँकि बोस को बार बार ये कहते हुए सुना गया कि मैं इस देश के सबसे महान शख़्स का ही विश्वास अगर नहीं जीत पाया तो मेरे लिये ये काफ़ी दुखद होगा। दोनों के बीच आलोचना और सम्मान दोनों का रिश्ता रहा। बहरहाल, बोस और गांधी का राजनीति करने का तरीक़ा अलग था, ऐसे में सिर्फ़ ये कह देनी की आज़ादी गांधी जी की Non violence policy की वजह से मिली पूरी तरह से सही नहीं होगा।