भारत ने चल दी बड़ी रणनीतिक चाल, चीन के पड़ोसी देश को सैन्य ट्रेनिंग देगी भारतीय सेना, ड्रैगन की कसी जाएगी नकेल
सामरिक भाषा में कहते हैं कि कोई भी आपका पर्मानेंट दोस्त और ना ही दुश्मन होता है, आपके हित ही सर्वोपरि होता है. वहीं आचार्य चाणक्य कहा करते थे कि दुश्मन का दुश्मन आपका दोस्त होता है, उससे संबंध बेहतर भी हों, घनिष्ठ भी होने चाहिए. इसी नीति के तहत भारत ने चीन के पड़ोसी देश को सैन्य ट्रेनिंग देने का फैसला किया है.
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भारत और मंगोलिया के बीच जिस रिश्ते को रणनीतिक साझेदारी और दोस्ती का रूप प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दस साल पहले हुई यात्रा के दौरान दिया था, वो आज परवान चढ़ने लगा है. 6 साल बाद भारत के दौरे पर आए मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हुई बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला एक ऐतिहासिक समझौता हुआ.
भारत मंगोलियन आर्मी को करेगा ट्रेन
भारत और मंगोलिया के बीच हुए इस रक्षा समझौते के तहत भारत मंगोलिया की सेना को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करेगा. ये एशिया में खुद के विस्तार की नीति पर चल रहे चीन जैसे देशों के लिए भी संदेश है. भारत इसके तहत मंगोलियाई आर्मी को आधुनिक युद्ध रणनीतियां, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के लिए ट्रेन करेगा.
कहा जा रहा यह कदम दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी बढ़ाने के साथ-साथ सामरिक चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा. ये पहल 'नोमैडिक एलीफेंट' नामक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास के 18वें संस्करण के बाद विकसित हुआ है, जो जून 2025 में मंगोलिया की राजधानी उलानबातर में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था.
चीन को भारत का सख्त संदेश?
आपको बताएं कि भारत की तरफ से मंगोलियाई सेना को ट्रेन किए जाने को कूटनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है. इसे डिप्लोमेटिक लैंग्वेज में स्ट्रैटेजिक लेवरेज कहा जाता है. इसके तहत दुश्मन के दुश्मन को देश अपना दोस्त मानकर रणनीति बनाते हैं. जैसे कि चीन भारत पर अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिहाज से पाकिस्तान को फंडिंग करता आया है. वहीं भारत की मानें तो ताइवान और वियतनाम, जो चीन को मुख्य प्रतिद्वंदी है उसके साथ उसके घनिष्ठ संबंध हैं. चीन इससे चिढ़ता है. इसी के तहत भारत के धर्मशाला में तिब्बतियों की निर्वासित सरकार चल रही है. बौद्ध धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरू दलाई लामा भी यहीं रहते हैं. उन्हें भारत एक संपत्ति के तौर पर देखता है.
Happy to have welcomed President Khurelsukh and held extensive talks with him in Delhi today. His visit comes at a time when India and Mongolia are marking 70 years of diplomatic ties and a decade of our Strategic Partnership. We agreed to keep working together to further amplify… pic.twitter.com/FeIsEJxYh9
— Narendra Modi (@narendramodi) October 14, 2025
विश्लेषकों की मानें तो यह समझौता विस्तारवादी चीन के लिए एक कड़ा संदेश है. मंगोलिया न सिर्फ चीन का पड़ोसी है बल्कि उसकी संस्कृति, रहन-सहन और सैन्य संस्कृति भी उससे मेल खाती है. भारत इन सबके बावजूद उसके साथ सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है, जो भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति का हिस्सा है. इससे न केवल भारत की मंगोलिया में सैन्य और सांस्कृतिक उपस्थिति मजबूत होगी, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संतुलन भी बनेगा. एक वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, "यह घेराबंदी सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि कूटनीतिक और आध्यात्मिक भी है. भारत मंगोलिया में बौद्ध संस्कृति के माध्यम से भी जुड़ा हुआ है."
6 साल बाद भारत आए कोई मंगोलियाई राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना और उनके प्रतिनिधिमंडल का भारत आगमन पर गर्मजोशी से स्वागत किया. उनकी यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि छह वर्षों के बाद कोई मंगोलियाई राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए.
भारत-मंगोलिया के राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष
खुरेलसुख उखना की यह यात्रा उस समय हो रही है जब भारत और मंगोलिया अपने राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष और रणनीतिक साझेदारी के 10 वर्ष पूरे कर रहे हैं. इस खास अवसर पर दोनों देशों ने एक संयुक्त डाक टिकट जारी किया, जो भारत-मंगोलिया की साझा विरासत, विविधता और गहरे सभ्यतागत संबंधों का प्रतीक है.
इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा, "राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना का स्वागत करना मेरे लिए बहुत प्रसन्नता का विषय है. हमारी मुलाकात की शुरुआत 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान के तहत वृक्षारोपण से हुई. राष्ट्रपति ने अपनी स्वर्गीय माताजी के नाम एक वटवृक्ष लगाया है, जो आने वाली पीढ़ियों तक हमारी मित्रता और पर्यावरण के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता का प्रतीक रहेगा."
पीएम मोदी ने आगे कहा कि दस साल पहले मंगोलिया की अपनी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया था. उन्होंने कहा, "पिछले एक दशक में हमारी साझेदारी के हर आयाम में नई गहराई और विस्तार आया है. रक्षा और सुरक्षा सहयोग लगातार मजबूत हुआ है."
मंगोलिया के साथ भारत का आत्मिक बंधन
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत और मंगोलिया के रिश्ते केवल राजनयिक संबंधों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह आध्यात्मिक और आत्मीय बंधन पर आधारित हैं. उन्होंने कहा, "हमारे संबंधों की असली गहराई हमारे पीपल-टू-पीपल-टाइज में दिखाई देती है. सदियों से दोनों देश बौद्ध धर्म के सूत्र में बंधे हैं. इस वजह से हमें 'स्पिरिचुअल सिबलिंग' कहा जाता है.
भगवान बुद्ध शिष्यों के अवशेष मंगोलिया भेजेगा भारत
मुझे यह बताते हुए खुशी है कि अगले वर्ष भगवान बुद्ध के दो महान शिष्यों सारिपुत्र और मौद्गल्या-यन के पवित्र अवशेष भारत से मंगोलिया भेजे जाएंगे. यह कदम दोनों देशों के बीच बौद्धिक और धार्मिक संबंधों को और गहरा करेगा." इसके अलावा, भारत 'गंदन मॉनेस्ट्री' में एक संस्कृत शिक्षक भी भेजेगा, ताकि वहां बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया जा सके.
प्रधानमंत्री ने कहा, "हमारा रिश्ता राजनीतिक सीमाओं से परे है. भले ही भारत और मंगोलिया की सीमाएं आपस में नहीं जुड़ी हैं, लेकिन भारत हमेशा मंगोलिया को अपना पड़ोसी मानता है." पीएम मोदी ने कहा कि भारत मंगोलिया के साथ मिलकर विकासशील देशों की आवाज़ को वैश्विक मंचों पर और सशक्त करेगा.
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पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने इस अवसर पर मंगोलियाई नागरिकों के लिए मुफ्त ई-वीजा सुविधा देने की भी घोषणा की है, ताकि दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क और यात्राओं में आसानी हो सके. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "हमारी सीमाएं भले न जुड़ी हों, लेकिन हमारे दिल जुड़े हैं. भारत और मंगोलिया की मित्रता समय के साथ और मजबूत होगी." इस बैठक को दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और रणनीतिक सहयोग के नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है.
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