सुनने में दिक्कत, एक हाथ से पैरालाइज...इजरायल-US के लिए बने चुनौती, 44 सालों से ईरान की सत्ता के 'राजा' कैसे बने खामेनेई
इजरायल और अमेरिका के निशाने पर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई हैं. खामेनेई ईरान की सत्ता में पिछले 44 साल से काबिज हैं. वर्तमान में उनके ऊपर हमले की जो आशंका जताई जा रही है. यह कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले भी उन पर हमले हो चुके हैं. कई बड़ी चुनौतियों को पार करने के बावजूद उनकी सत्ता पर कोई आंच नहीं आई है. आखिर कैसे उन्हें ईरान की सारी शक्तियां प्राप्त हैं.
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आपको सुनने में यह कहानी थोड़ी अटपटी और हैरान कर देने वाली जरूर लगेगी, लेकिन हकीकत यही है कि एक हाथ से पैरालाइज और कानों से हल्का सुनने वाला शख्स दुनिया के दो ताकतवर देशों के लिए एक चुनौती बना हुआ है. हर रोज उसे इजरायल और अमेरिका से जान से मारने की धमकी मिल रही है. उसके बावजूद बिना डरे सहमे वह दोनों ही देश को तबाह करने की खुली चेतावनी दे रहा है. यह पावरफुल शासक कोई और नहीं बल्कि ईरान के शीर्ष नेता यानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई हैं. खामेनेई ईरान की सत्ता में पिछले 44 साल से काबिज हैं. वर्तमान में उनके ऊपर हमले की जो आशंका जताई जा रही है. यह कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले भी उन पर हमले हो चुके हैं. कई बड़ी चुनौतियों को पार करने के बावजूद उनकी सत्ता पर कोई आंच नहीं आई है, लेकिन वर्तमान में इजरायल और अमेरिका जिस तरीके से ईरान को तबाह करने में लगे हैं. ऐसा लग रहा है कि खामेनेई कहीं हमलों का शिकार न हो जाएं. क्योंकि इजरायली हमले में अब तक ईरानी सेना के 10 से ज्यादा बड़े कमांडर और इतनी ही संख्या में परमाणु साइंटिस्ट मारे जा चुके हैं. इजराइल का कहना है कि अगर हमने खामेनेई को मार दिया, तो सारा विवाद ही समाप्त हो जाएगा. खामेनेई इस समय मौत के साए में जी रहे हैं.
हाथ से पैरालाइज और एक कान से सुनने की क्षमता कम
बता दें कि इस्लामिक क्रांति के 2 साल बाद साल 1981 में खामेनेई पर जानलेवा हमला हुआ था. उस दौरान एक न्यूज़ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के दौरान सामने रखे टेप रिकॉर्डर में ब्लास्ट हो गया था, जिसकी वजह से उनका दाया हाथ पैरालाइज हो गया था और एक काम से सुनने की क्षमता भी कम हो गई थी. अपनी शारीरिक कमजोरी के बावजूद वह ईरान की सत्ता में लगातार बने हुए हैं. ईरान को एक मजहबी तानाशाही में लाने में खामेनेई और उनके गुरु रोहेल्ला खुमैनी का बड़ा योगदान माना जाता है.
कब हुआ खामेनेई का जन्म, कैसे मिला यह सरनेम
अयातुल्ला अली खामेनेई का जन्म साल 1939 में ईरान के नजफ में हुआ था. उनके पिता जावेद खामेनेई एक मौलवी थे. अयातुल्ला अपने कुल 8 भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं. वह काफी कम उम्र में मौलवी बन गए थे. उनके दो भाई भी मौलवी हैं. खुद खामेनेई एक अखबार के संपादक हैं. बता दें कि खामेनेई के पिता अजरबैजानी मूल के थे और ईस्ट अजरबैजान के खामानेह में रहने की वजह से खामनेह वाली जगह से प्रभावित होकर इस परिवार ने अपने सरनेम के आगे खामेनेई लगाना शुरू कर दिया.
44 सालों से देश की सत्ता में कायम
साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति आई. जहां अयातुल्ला खामेनेई ने अपने गुरु रोहिल्ला खुमैनी के नेतृत्व में हिस्सा लिया था. उस दौरान शाह मोहम्मद रजा पहलवी सत्ता से बेदखल हुए. उसके बाद खुमैनी का दौर आया. वह सत्ता के इतने करीब आ गए कि उन्हें राष्ट्रपति पद मिल गया. साल 1989 में खुमैनी का निधन होने के बाद अयातुल्ला खामेनेई ने उनकी जगह ली. खामेनेई ने जब शीर्ष पद संभाला, उसके बाद उन्होंने संविधान में ही संशोधन करा लिया.
राष्ट्रपति की सारी शक्तियां खामेनेई के पास
ईरान में राष्ट्रपति के पास जो भी शक्तियां होती हैं. वह शीर्ष नेता अयातुल्ला खामेनेई के नाम ट्रांसफर कर दी गई. इस तरह ईरान में सिर्फ और सिर्फ खामेनेई ही सर्वशक्तिमान के रूप में हैं. सरकार से लेकर सेना के कमांडर भी वही हैं. चाहे नीतिगत फैसला हो या सेना से जुड़ा कोई फैसला अंतिम निर्णय खामेनेई ही लेते हैं. इस्लाम के नाम पर मजहबी और संविधान से मिली ताकत ने अयातुल्ला अली खामेनेई को ईरान का सबसे ताकतवर शख्स बना दिया है. राष्ट्रपति भी कोई भी फैसला लेते हैं, तो वह सुप्रीम लीडर के इशारों पर ही अपना आखिरी मुहर लगाते हैं.
1981 से देश से बाहर नहीं गए
सबसे कमाल और हैरान कर देने वाली बात यह है कि साल 1981 में देश की सत्ता संभालने के बाद अयातुल्ला अली खामेनेई ने कोई विदेशी दौरा नहीं किया है. मतलब 44 सालों से वह अपने देश ईरान से बाहर नहीं गए हैं.
बंकरों में छिपे हैं अयातुल्ला अली खामेनेई
अमेरिका ने सीधी चेतावनी दी है कि ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने उनके निशाने पर हैं. इजरायल भी लगातार मारने की धमकियां दे रहा है. उसका कहना है कि खामेनेई की मौत होते ही सारा विवाद खत्म हो जाएगा. इस युद्ध में खामेनेई की जान अटकी हुई है. उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि अगर अगर वह बाहर आए, तो उन्हें जान से मारा जा सकता है. इसी वजह से वह राजधानी तेहरान के एक सीक्रेट बंकर में छिपे हुए हैं.
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